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शहर की आबोहवा में घुल रहा जहर, कौन अंकुश लगाए

प्रदूषण नियंत्रण के लिए तमाम उपाय, बैठकें और निर्णय तब तक सिरे नहीं चढ़ सकते, जब तक उसे लागू करने के लिए पर्याप्त स्टाफ न हो।

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 07:53 PM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 07:53 PM (IST)
शहर की आबोहवा में घुल रहा जहर, कौन अंकुश लगाए
शहर की आबोहवा में घुल रहा जहर, कौन अंकुश लगाए

संवाद सहयोगी, ऊना : प्रदूषण नियंत्रण के लिए तमाम उपाय, बैठकें और निर्णय तब तक सिरे नहीं चढ़ सकते, जब तक उसे लागू करने के लिए पर्याप्त स्टाफ न हो। बदहाल व्यवस्था की विवशता से प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड भी अछूता नहीं रह गया है। हालात ऐसे हैं ऊना व हमीरपुर जिलों के प्रदूषण संबंधी मसलों पर महज दो कर्मचारियों का जिम्मा है। प्रदूषण रोकने के लिए रक्कड़ कॉलोनी में क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्यालय बना है। यहां महज दो कर्मचारियों की नियुक्ति है। दो जिलों की करीब 900 फैक्ट्रियां और होटल इंडस्ट्री सहित आम लोगों की शिकायतों का निपटारा दो ही अधिकारियों के जिम्मे छोड़ा हुआ है। वरिष्ठ पर्यावरण इंजीनियर व वैज्ञानिकों से लेकर छोटे स्तर के कर्मियों की कमी यहां अर्से से खल रही है। अभी कुछ समय जूनियर स्तर के वैज्ञानिक यहां तैनात थे लेकिन उनका तबादला हो गया है। स्वाभाविक है एक कर्मी को चार-चार लोगों के काम करने पड़ रहे हैं। नतीजतन औद्योगिक प्रतिष्ठानों की विजिट हो या अन्य फील्ड निरीक्षण, प्रदूषण स्तर के सैंपल भरने हों या नियम तोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई, कहीं न कहीं व्यवस्थाओं पर भारी पड़ रहा है। ऐसा भी नहीं है कि कर्मियों की कमी से प्रदूषण नियंत्रण में आ रही बाधा से बोर्ड के आला अधिकारी बेखबर हों। सबकुछ जानते हुए भी कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

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प्रदूषण से शहर की आबो-हवा में जहर घुल रहा है जिससे लोग बीमार पड़ रहे हैं। इसे रोकने की जिम्मेदारी क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्यालय को दी गई है लेकिन वह भी संसाधनों के अभाव से जूझ रहा है। न तो विभाग के पास स्टाफ है और न ही प्रयोगशाला। ऐसे हालात में दो जिलों में प्रदूषण नियंत्रण की दशा और दिशा साफ समझी जा सकती है। विभाग के पास संसाधन ही नहीं हैं तो वह कैसे प्रदूषण को नियंत्रण करने की दिशा में बेहतर काम कर सकता है।

जिला में भी प्रदूषण ने दस्तक दी है। जल, वायु हो या फिर ध्वनि तीनों ही पैमानों में खतरे की घंटी अब बजने लगी है। चाहे ध्वनि हो या वायु या फिर जल प्रदूषण, दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इससे मानव जीवन और जीव जंतुओं को भारी परेशानी होती है। जिला में जनसंख्या और विकास के साथ ही यातायात और वाहनों की संख्या में भी वृद्धि हुई है जिसके कारण ध्वनि प्रदूषण भी अपना रूप दिखाने लगा है। अत्यधिक शोर की वजह से सुनने की शक्ति भी कमजोर हो रही है।

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96 पदों स्वीकृति करवाए गए हैं। आने वाले दिनों नियुक्तियां होंगी। पर्यावरण साफ रहे इसके लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

- आरके पुरथी, सदस्य सेक्रेटरी प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड


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