शौक और मेहनत के बलबूते गर्म क्षेत्र में उगा दिया सेब
'कैसे आकाश में सुराख हो नहीं सकता, इक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
नीरज पराशर, ¨चतपूर्णी
'कैसे आकाश में सुराख हो नहीं सकता, इक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।' कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है ¨चतपूर्णी निवासी मास्टर सतपाल शर्मा ने। सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने कृषि व बागवानी को शौक की तरह चुना था, लेकिन उनके जज्बे, मेहनत और लग्न के बाद मिली सफलता उन लोगों के लिए भी नजीर बन गई है, जो धार क्षेत्र में खेतीबाड़ी व बागवानी को जुआ समझकर इस धंधे से हाथ पीछे खींच चुके हैं। आज भरवाई स्थित उनके बाग में सेब के करीब तीस पेड़ फलों से लदे हैं। भरवाई का यह क्षेत्र हालांकि सेब की फसल के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने पौधों की देखरेख की है, उसे यहां एक नए सफल प्रयोग की तरह देखा जा रहा है।
20 साल पहले जब सतपाल शर्मा शिक्षा विभाग से रिटायर हुए तो उन्होंने जीवन में आराम करने के बजाय कुछ अलग करने की ठानी। बागवानी करने का शौक तो पहले से ही था, लेकिन नौकरी करते वक्त समय नहीं मिलता था। उसके बाद उन्होंने कई प्रजातियों का पौधरोपण किया और पॉलीहाउस भी लगवाया। वर्षो पुराने कुएं का जीर्णोद्धार करके वहां से पानी की व्यवस्था की। सात वर्ष पूर्व उन्होंने अपने बगीचे में सेब का पौधरोपण करने की ठानी। इसके लिए उन्होंने कई जगहों का दौरा किया और अंत में हमीरपुर के नेरी से वे माइकल प्रजाति के सेब के पौधे लेकर आए। इन पौधों को उन्होंने किसी बच्चे की तरह पाला। अब पौधे पेड़ के रूप में बदल चुके हैं। दो वर्ष पूर्व इन पेड़ों पर फल लगने शुरू हो गए थे। करीब चालीस से पचास किलोग्राम का उत्पादन होना भी शुरू हो गया। चूंकि इस वर्ष भी लगभग सभी पौधों पर फल लगे हैं, ऐसे में इस साल बंपर फसल होने की संभावना है। गर्म इलाके में सेब के पौधे उगाना और उससे फल प्राप्त करना भी शर्मा की उपलब्धि रही है।
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78 वर्ष की उम्र में भी नहीं कम हुई दिलचस्पी
सतपाल शर्मा की उम्र 78 वर्ष हो गई है और वह अपनी जमीन में अब भी अकेले ही खेती व बागवानी करते हैं। बकौल सतपाल उनकी बागवानी में दिलचस्पी बराबर बनी हुई है और वे खुद ही अपने बाग व पॉलीहाउस को संभालते हैं। पौधों व पेड़ों पर फल व फूल देखकर उन्हें सुकून मिलता है और इससे जीवन में नई ऊर्जा व स्फूर्ति भी मिलती है।
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ठंडे मौसम में ही होती है सेब की फसल
बागवानी विभाग के उपनिदेशक सुधीर ने कहा कि सेब की फसल ठंडे मौसम में ही होती है। सेब को वर्ष में 800 से 1500 घंटे तापमान शून्य से मानइस सात डिग्री का मिले तभी यह पौधा अस्तित्व में रह सकता है। चूंकि भरवाई का तापमान जिला ऊना से औसतन कम रहता है और यहां सर्दियों के मौसम में कोहरा भी पड़ता है, ऐसे में यहां सेब की फसल की थोड़ी-बहुत संभावना बनी रह सकती है। ऐसे में उक्त बागवान के प्रयासों को सराहा जा सकता है, जिसमें विपरीत हालात में भी सेब उगा दिया।