संपर्क मार्गो ने आसान की वन माफिया की राह
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संवाद सहयोगी, चितपूर्णी : विकास की रफ्तार के बीच वन्य क्षेत्र में मौजूद संपर्क मार्ग जंगलों का दायरा कम करने में भी भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे में ये मार्ग वन्य क्षेत्र के गांवों के लोगों के लिए बेशक वरदान से कम नहीं हों, लेकिन वन संपदा के लिए संपर्क मार्ग किसी अभिशाप से कम नहीं हैं। पहले ही कई कारणों से जंगल के पेड़ों में आ रही कमी के बाद अब यही संपर्क मार्ग वन माफिया का काम भी आसान कर रहे हैं। हालांकि वन विभाग ने कई जगहों पर बैरियर लगाए हैं और कर्मचारी व अधिकारी भी जंगलों की सुरक्षा के लिए तैनात हैं और पूर्व में भी कई वन काटुओं को पकड़ा है, लेकिन इन संपर्क मार्गो के आसपास का वन्य क्षेत्र पहले से कम हुआ है। हरियाली कम होने का एक कारण विभाग इसे भी मानता है। हाल ही में वन विभाग की ओर से अवैध लकड़ी के साथ पकड़े मामलों में यह खुलासा हुआ है कि माफिया इन्हीं रास्तों से होकर पड़ोसी राज्य में लकड़ी के खेप पहुंचाता रहा है।
चितपूर्णी में जो सर्वाधिक घनत्व वाली बेल्ट है, वहां हर तरफ संपर्क सड़कों का निर्माण हो चुका है। गुरेट, आरनवाल, अलोह, बधमाणा, राजपुरा जसवां, अरड़ोह, मवा, दलोह, भगड़ाह, सारढ़ा और चाहबाग आदि क्षेत्रों में सड़कें बन चुकी हैं। ऐसे में बेशक स्थानीय जनता को इसका भरपूर फायदा भी मिल रहा है, लेकिन इन्हीं क्षेत्रों में वनों का दायरा भी घटता जा रहा है। एक बड़ा उदाहरण बधमाणा गांव का जंगल है, जहां पर वन क्षेत्र का दायरा पिछले एक दशक में बहुत कम हो गया है। जिस वन्य क्षेत्र में सड़कों का जाल नहीं बिछा है, वहां पर वन संपदा पूरी तरह से सुरक्षित है। बहिम्बा, कुनेत रतियां और राड़ा-पैड़ा जैसे गांवों में सड़क सुविधा नहीं है और यहां पर वन्य क्षेत्र औसतन पहले जैसा ही है। लाजिमी है कि वन माफिया इन्हीं संपर्क मार्गो का लाभ उठाकर पिछले कई वर्षो से इन क्षेत्रों में सक्रिय है।
--------------------- निस्संदेह संपर्क मार्ग वन संपदा के लिए बहुत बड़ा खतरा है। वन क्षेत्र एक खुले खजाने की तरह होता है और इसकी हर जगह रखवाली करना भी मुश्किल होता है, ऐसे में कहीं न कहीं वन माफिया ऐसे रास्तों का दुरुपयोग भी कर लेता है। विभाग की टीम वनों की सुरक्षा कर रही है, साथ में आम जनता को भी सहयोग करना चाहिए।
-प्यार सिंह, अधिकारी, वन रेंज भरवाई।