आग लगने पर घी का काम करती है कांग्रेस घास, चिंतपूर्णी का बड़ा भूभाग इसकी चपेट में
कांग्रेस घास चिंतपूर्णी क्षेत्र के वन्य क्षेत्र तक फैल चुकी है ये घास आग लगने में घी का काम करती है।
By BabitaEdited By: Published: Tue, 07 May 2019 02:46 PM (IST)Updated: Tue, 07 May 2019 02:46 PM (IST)
चिंतपूर्णी, जेएनएन। फायर सीजन शुरू हो चुका है। तापमान ने भी रफ्तार पकड़ ली है। ऐसे में आमतौर पर सड़कों के किनारे और खाली खेत-खलिहानों में उग जाने वाले कांग्रेस घास से चिंतपूर्णी क्षेत्र के वन्य क्षेत्र को भी खतरा पैदा हो चुका है। तीन दशक से उपजाऊ जमीन को बर्बाद करने के बाद इस घास की जड़ें जंगलों तक पहुंच गई हैं। इससे न सिर्फ वन्य क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उगने वाली पौधों की कई प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में आ चुका है, वहीं जंगल में आग लगने पर यह घास घी का काम करती है।
अगर अकेले चिंतपूर्णी क्षेत्र की बात करें तो इस घास ने 20 फीसद से ज्यादा के क्षेत्र में अपना कब्जा जमा लिया है। भरवाईं रेंज के तहत 7853 हेक्टेयर में जंगल हैं, जिसमें 3240.02 हेक्टेयर रिजर्व फॉरेस्ट, 3940.05 हेक्टेयर शामलात और 673.34 लैंड सीलिंग का वन्य क्षेत्र है। चिंतपूर्णी के सबसे अधिक घनत्व वाले वन्य क्षेत्र लोहारा को कांग्रेस घास ने जकड़न में ले लिया है।इस क्षेत्र के मवा, आरनवाल, गुरेट, चाहबाग, चौआर, अम्बा दा पद्दर में यह घास इतनी तेजी से फैली है कि अब जंगल में पेड़ कम और यह घास ज्यादा नजर आती है। पिछले साल गर्मी के मौसम में सलोई जंगल में कई दिन तक आग इसलिए भी लगी रही क्योंकि यह घास यहां बहुत अधिक मात्रा में थी और चीड़ के पेड़ों के साथ इस घास ने भी वन्य संपदा को बेहद नुकसान पहुंचाया था।
इसके अलावा बधमाणा, जवाल, सपौरी, राजपुरा जसवां, मसलाणा, घंगरेट गिंडपुर मलौण और बहिंबा के जंगलों में भी यह घास तेजी से फैल रही है। इस संबंध में भरवाईं रेंज अधिकारी प्यार सिंह ने बताया कि 60 हेक्टेयर वन्य भूमि से कांग्रेस घास को उखाड़ा गया है। कंट्रोल बर्निंग के तहत भी इस घास को साफ किया गया है।
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