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106 साल से रोगियों का इलाज कर रहा टीबी सेनिटोरियम धर्मपुर

एक समय था जब तपेदिक (टीबी) रोग को लाइलाज माना जाता था लेकिन वर्तमान में टीबी रोग का पूर्णतया इलाज संभव है लेकिन यदि समय रहते इसकी जांच व इलाज करवा लिया जाए। पूरे विश्व में 24 मार्च को व‌र्ल्ड टीबी डे के रूप में मनाया जाता है। कसौली निर्वाचन क्षेत्र का धर्मपुर ब्रिटिशकाल से ही क्षय रोग के इलाज के लिए जाना जाता है और आज भी क्षय रोग के उन्मूलन के लिए बेहतर कार्य कर रहा है। धर्मपुर में हटस में शुरू हुआ टीबी सेनिटोरियम आज प्रदेश का एकमात्र बडा टीबी चिकित्सालय है जो प्रदेश के टीबी रोगियों को बेहतर इलाज के साथ साथ हर तरह के टेस्ट की सुविधा एक छत के नीचे ही मुहैया करवा रहा है। एक छत के नीचे ही सभी सुविधाएं मिलने से इसको सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का दर्जा मिलने की भी संभावना है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 06:27 PM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 06:27 PM (IST)
106 साल से रोगियों का इलाज कर रहा टीबी सेनिटोरियम धर्मपुर
106 साल से रोगियों का इलाज कर रहा टीबी सेनिटोरियम धर्मपुर

मनमोहन वशिष्ठ, सोलन

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एक समय था जब तपेदिक (टीबी) रोग को लाइलाज माना जाता था लेकिन वर्तमान में टीबी रोग का पूर्णतया इलाज संभव है लेकिन यदि समय रहते इसकी जांच व इलाज करवा लिया जाए। पूरे विश्व में 24 मार्च को व‌र्ल्ड टीबी डे के रूप में मनाया जाता है। कसौली निर्वाचन क्षेत्र का धर्मपुर ब्रिटिशकाल से ही क्षय रोग के इलाज के लिए जाना जाता है और आज भी क्षय रोग के उन्मूलन के लिए बेहतर कार्य कर रहा है। धर्मपुर में हटस में शुरू हुआ टीबी सेनिटोरियम आज प्रदेश का एकमात्र बडा टीबी चिकित्सालय है जो प्रदेश के टीबी रोगियों को बेहतर इलाज के साथ-साथ सभी टेस्ट की सुविधा एक छत के नीचे ही मुहैया करवा रहा है। एक छत के नीचे ही सभी सुविधाएं मिलने से इसको सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का दर्जा मिलने की भी संभावना है।

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1913 में हुई थी सेनिटोरियम की स्थापना

टीबी सेनिटोरियम चलाने के लिए पहले एक कंजप्शन सोसायटी का गठन हुआ था। पहले इसको टैंट लगाकर शुरू किया गया था। 1911 में इसका फाउंडेशन स्टोन रखा गया था। 19 सितंबर 1913 को इसका शुभारंभ तत्कालीन वॉयसराय व गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया चा‌र्ल्स बरोन हार्डिग ने किया था। आज भी इसे हार्डिंग सेनिटोरियम के नाम से जाना जाता है। करीब 32 बीघा लैंड पर स्थित इस सेनिटोरियम पर उस समय के भवन आज भी बेहतर काष्ठकला के बेजोड़ नमूने हैं। इस सेनिटोरियम का सबसे पहला रोगी लाहौर का था। पूरे देश के रोगी आते थे क्योंकि उस समय इसकी दवा नहीं बनी थी केवल अच्छे मौसम व खानपान के द्वारा ही इसका इलाज होता था। जिस समय देश में राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम चला तो इसको तीन सौ बेड का हॉस्पिटल किया गया था लेकिन जब रिवाईज्ड क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम चला और घर द्वार डॉटस शुरू होने के बाद इसे सौ बेड का कर दिया गया।

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प्रदेश की एकमात्र एमडीआर कलचर लैब

सेनिटोरियम में प्रदेश की एकमात्र एमडीआर (मल्टी ड्रग्स रेजिस्टेंट) लैब है जिसमें सीबी नाट, एलपीए व सोलिड कलचर लैब की सुविधा है। क्षय रोगी जो बीच में ही दवाईयां छोड देते हैं उन्हें एमडीआर रोगी कहा जाता है। यह वह रोगी बन जाते हैं जिनके संपर्क में आते ही दूसरे स्वस्थ व्यक्ति में भी टीबी का वायरस आ जाता है। सेनिटोरियम में टीबी, एमडीआर व एक्सडीआर के टैस्ट की सुविधा है। पहले इन टैस्ट के सैंपल जांच के लिए आगरा या नई दिल्ली भेजने पड़ते थे लेकिन यहां लैब स्थापित होने से दो घंटों में ही इसके टैस्ट हो जाते हैं। यहीं पर राज्य दवा स्टोर है जहां से पूरे प्रदेश में टीबी की दवा की सप्लाई होती है। इसके अलावा स्टेट ट्रेनिग एंड डेमोस्ट्रेशन सेंटर भी है जिसमें पैरा मैडिक्स को प्रशिक्षण दिया जाता है।

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टीबी रोगी का फ्री इलाज, हर माह दिए जाते है पांच रुपये

टीबी सेनिटोरियम धर्मपुर की वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अनीता महाजन ने बताया कि धर्मपुर सेनिटोरियम 106 साल से टीबी के रोगियों को इलाज मुहैया करवाता आ रहा है। उस समय रोग लाइलाज था लेकिन आज इसका पूरा इलाज है लेकिन समय पर इसका इलाज करवाया जाए। किसी को भी टीबी हो सकता है इसलिए इसकी जांच करवाने में परहेज नहीं करना चाहिए ताकि यह आगे न फैल सके। सरकार रोगियों के लिए हर तरह की सुविधा मुहैया करवा रही है। एक्सडीआर के रोगी पर 22 लाख का खर्चा आता है लेकिन रोगी को मुफ्त में मुहैया करवाया जाता है। वहीं एमडीआर रोगी के इलाज पर दो लाख का खर्चा आता है वो भी फ्री है। इसके अलावा रोगियों को सरकार द्वारा तब तक हर माह पांच रुपये दिए जाते हैं जब तक वो ठीक न हो जाए। वहीं एमडीआर के रोगी व उसके अटेंडेंट को चिकित्सालय तक आने का किराया फ्री होता है। सेंट्रल टीबी डीविजन दिल्ली प्रतिदिन टीबी के रोगियों की निगरानी रखता है।


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