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..जरा याद उन्हें भी कर लो

कसौली क्रांति पर शुक्रवार को न जिला प्रशासन और न ही सरकार ने कोई कार्यक्रम आयोजित किया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 20 Apr 2018 07:15 PM (IST)Updated: Fri, 20 Apr 2018 07:15 PM (IST)
..जरा याद उन्हें भी कर लो
..जरा याद उन्हें भी कर लो

संवाद सहयोगी, सोलन : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर साल मेले वतन पर मरने वालों का यही बाकि निशां होगा। देश के अमर शहीदों को याद करने के लिए यह कविता की लाइनें बोलकर ही हम सभी कर्तव्य से इतिश्री कर लेते हैं। कसौली से 20 अप्रैल 1857 की क्रांति की चिंगारी लगाने वाले उन वीर सेनानियों के बारे में भी सरकार व लोगों का यही हाल है। 20 अप्रैल 1857 को कसौली क्रांति की 162वीं जयंती थी लेकिन कोई कार्यक्रम करना तो दूर उन क्रांतिवीरों को याद तक नहीं किया गया। न कसौली की किसी संस्था या जनप्रतिनिधियों ने आगे आकर क्रांतिवीरों को याद करने की जहमत उठाई और न ही जिला प्रशासन व सरकार ने कोई कार्यक्रम किया ताकि उन वीरों को श्रद्धांजलि दी जा सके। अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने के लिए आजादी के उन मतवालों ने पहाड़ों में आजादी की अलख तो जगाई लेकिन आज उनको श्रद्धासुमन देने के लिए भी कोई आगे नहीं आता है।

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ब्रिटिशराज की मजबूत गढ़ माने जाने वाली कसौली छावनी में 20 अप्रैल 1857 को अंबाला राइफल डिपो के छह भारतीय सैनिकों ने कसौली थाना जला डाला था। कसौली, डगशाई, सुबाथू व जतोग छावनियों के सैनिकों ने ब्रिटिश सरकार के आदेशों को ठुकरा कर हथियार उठा लिए थे। कसौली में नसीरी सेना (गोरखा बटालियन) के सूबेदार भीम सिंह बहादूर, स्थानीय पुलिस के दरोगा बुधसिंह सहित सुबाथू के पंडित राम प्रसाद वैरागी व अन्य वीरों का कसौली की क्रांति में अहम योगदान है लेकिन न स्थानीय छावनी प्रशासन और न ही जिला प्रशासन व प्रदेश सरकार ने यहां कसौली क्रांति का उल्लेख करता कोई स्मारक बनवाया है। लोगों ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि कसौली में कोई ऐसा स्मारक बने जिस पर क्रांति का उल्लेख हो कर कोई आने वाला उसके बारे में जान सके।

पूरे देश में क्रांति के संचालन के लिए एक गुप्त संगठन बनाया गया था जो पत्रों के माध्यम से पूरे में क्रांतिवीरों के साथ संपर्क बनाए रहता था। पहाड़ों में इसके नेता पंडित राम प्रसाद वैरागी थे जो सुबाथू के मंदिर में पुजारी थे। 12 जून 1857 को इस संगठन के कुछ पत्र अंबाला के कमिश्नर जीसी बार्नस के हाथ लग गए जिससे संगठन का भेद खुल गया। इसमें दो पत्र वैरागी के भी थे। वैरागी को पकड़ कर अंबाला जेल में फांसी दे दी गई थी। सुबाथू के चौक बाजार में उनकी प्रतिमा को लगाने को लेकर कई बार आवाज उठी लेकिन इस दिशा में कोई कदम आगे नही बढ़ा। सुबाथू छावनी के उपाध्यक्ष दिनेश गुप्ता ने कहा कि वैरागी के येागदान को देखते हुए यहां एक ऐसा स्मारक बनवाया जाएगा जिस पर उनके बारे में लोग पढ़ सकें।


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