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उद्योगों के नजदीक पर विकास से दूर पट्टा महलोग

पर्यटन नगरी कसौली से करीब 22 किमी दूर बसी महलोग रियासत का पटटा महलोग गांव आज भी कई इतिहास को समेटे हुए है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Mar 2019 09:43 AM (IST)Updated: Fri, 01 Mar 2019 09:43 AM (IST)
उद्योगों के नजदीक पर विकास से दूर पट्टा महलोग
उद्योगों के नजदीक पर विकास से दूर पट्टा महलोग

मनमोहन वशिष्ठ, सोलन

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पर्यटन नगरी कसौली से करीब 22 किलोमीटर दूर बसी महलोग रियासत का पट्टा महलोग गांव इतिहास को समेटे हुए है। रियासतकाल में रियासत व प्रदेश का केंद्र रहा पट्टा महलोग आज अपने विकास की बाट जोह रहा है। महलोग रियासत 1183 में पिजौर के समीप स्थित थी। मोहम्मद गौरी के हमले के बाद यह रियासत महलोग क्षेत्र में आ गई और सन 1203 से 1948 तक रही। जानकारी के अनुसार महलोग रियासत की स्थापना राजा गर्वदेव चंद ने की थी। इससे पहले इस रियासत के लोग सहारनपुर व बोहाना के क्षेत्रों में राज करते हुए महलोग पहुंचे थे। गर्वदेव चंद की शादी क्योंथल रियासत की राजकुमारी से हुई, जिसके दहेज में उन्हें खडयाड व घडस्यांग दो परगने मिले। गर्वदेव चंद ने इन क्षेत्रों में सक्रिय मावियों को परास्त कर अपने राज्य की स्थापना की और स्वयं ठाकुर कहलाने लगे। उन्होंने 1617 में घड़सी में अपनी पहली राजधानी स्थापित की। उनके उत्तराधिकारियों ने दून व नालीपट्टा परगनों को भी अपनी रियासत में मिला लिया। घड़सी में सुविधाओं के अभाव में लोगों ने वहां राजधानी का विरोध किया। इस पर शासकों ने इसे शिमला-सुबाथू-नालागढ़ मार्ग पर पट्टा में बदल दिया। पट्टा क्षेत्र बांस का जंगल था, जिसे पटने (उखाड़ने) के कारण इसका नाम पट्टा पड़ा। इसे तत्कालीन शासक नाहर चंद ने सन 1720 में बसाया था। महलोग एक छोटी रियासत थी जो पहले क्योंथल और फिर कहलूर रियासत के अधीन रही। 1803 में गोरखों के हमले के बाद यह रियासत गोरखों के अधीन रही। सन 1815 में पहाड़ी राजाओं के सहयोग से अंग्रेजों ने यह रियासत गोरखों से छुड़ाकर इसके शासकों को लौटा दी। 1898 तक इसके शासक ठाकुर कहलाते थे, लेकिन रघुनाथ चंद ने 1898 में व्यक्तिगत रूप से राणा की उपाधि ले ली। इस रियासत के अंतिम शासक राणा नरेंद्र चंद सिसोदिया थे। इस रियासत की सीमाएं कोटबेजा, कुठाड़, कहलूर व हिडूर रियासतों के साथ लगती थी। 15 अप्रैल 1948 को इस रियासत को भी हिमाचल में मिला दिया गया था। वर्तमान में राज परिवार के वंशज राणा खुरमिंद्र सिंह अपने परिवार सहित राजमहल के साथ ही नए भवन में रहते हैं। पट्टा महलोग में जितने भी सरकारी कार्यालय खुले हैं उसके लिए जमीन अंतिम शासक राणा नरेंद्र चंद सिसोदिया ने दान की है।

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कॉलेज व विकास खंड कार्यालय की दरकार

पट्टा महलोग आज एक कस्बा बनता जा रहा है। बीबीएन, परवाणू, कसौली, सुबाथू व शिमला के लिए यहां से सड़क सुविधा है। रोजगार के नाम पर इस क्षेत्र में कुछ भी नही है। दो नदियों के बीच बसा सदियों पुराना राजमहल आज खंडहर बनता जा रहा है। यदि सरकार इस पर ध्यान दें तो पर्यटन के तौर पर यह क्षेत्र उभर सकता है। पट्टा महलोग आज एक पंचायत मुख्यालय बन कर रह गया है। क्षेत्र में वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल व आइटीआइ है, लेकिन कॉलेज व खंड विकास कार्यालय की मांग यहां वर्षो से चली आ रही है।

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पट्टा महलोग एक ऐतिहासिक क्षेत्र है। यहां सदियों पुराना राजमहल है, जो आज भी अपने वैभव को चमकाए हुए है। पट्टा महलोग क्षेत्र पर्यटन के रूप में उभर सकता है। पट्टा महलोग में बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाना पड़ता है। ऐसे में यहां कॉलेज की दरकार है। क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।

-अभिनव, दुकानदार पट्टा महलोग।

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पट्टा महलोग एक ऐतिहासिक क्षेत्र रहा है। क्षेत्र में कॉलेज की सबसे बड़ी मांग है। यदि कॉलेज की मांग पूरी होती है तो कई पंचायतों के बच्चों को घर के नजदीक की उच्च शिक्षा मिल सकेगी और गरीब परिवार की लड़कियां भी शिक्षा ग्रहण कर सकेंगी। क्षेत्र में खंड विकास कार्यालय की मांग भी बहुत पुरानी है। राजमहल को यदि सरकार पर्यटन के रूप में विकसित करे तो यह क्षेत्र के लिए काफी लाभदायक होगा।

-राणा खुरमिद्र सिंह सिसोदिया, महलोग रियासत के वंशज।


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