अधिक पत्तों व पोषक तत्वों के लिए बियुल पर होगा शोध
प्रदेश के पशुपालकों को जल्द ही ग्रेविया ऑप्टिवा जिसे आमतौर पर बियुल के नाम से जाना जाता है की अच्छी उपज व पोषक तत्वों से भरपूर किस्मों के पौधे आसानी से उपलब्ध होंगे।
संवाद सहयोगी, सोलन : पशुपालकों को बियुल (ग्रेविया ऑप्टिवा) के बेहतर किस्म के पौधे मिलेंगे। इन पौधों में अधिक पत्तों के साथ पोषक तत्व भरपूर होंगे। नौणी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इस दिशा में शोध करेंगे।
जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एन्वायरनमेंट व सस्टेनबल डेवलपमेंट की ओर से नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज के तहत डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी को बियुल पौधे की जैविक स्क्रीनिंग, संरक्षण और जीन बैंक की स्थापना के लिए तीन साल के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। विश्वविद्यालय का वृक्ष सुधार व आनुवांशिक संसाधन विभाग इस 48.13 लाख रुपये की परियोजना पर कार्य करेगा। डॉ. एचपी सांख्यान इस परियोजना के प्रधान अन्वेषक होंगे, जबकि डॉ. संजीव ठाकुर सह प्रधान अन्वेषक के रूप में कार्य करेंगे
शोध के दौरान कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर, सोलन, हमीरपुर व मंडी जिलों में पैदा होने वाले बियुल के पौधों की प्रजातियों को एकत्रित कर चारे का उत्पादन और पौष्टिक गुणवत्ता के लिए मूल्यांकन किया जाएगा। प्रत्येक जिले में पांच स्थानों से सैंपल एकत्र किए जाएंगे। इसके अलावा वैज्ञानिक हिमालय में कृषि वानिकी में इस पेड़ के जर्मप्लाज्म का जैविक मूल्यांकन करेंगे और चारा गुणवत्ता व उत्पादकता के लिए विकास मापदंडों का अध्ययन करेंगे। इस पेड़ की प्रजातियों के चयनित जीनोटाइप के जीन बैंककी स्थापना भी इस परियोजना का हिस्सा होगी। अधिक न्यूट्रीशियन वेल्यू व अधिक पत्ते वाले पौधों की नर्सरी भी विवि में विकसित कर पशुपालकों तक पहुंचाई जाएगी। वृक्ष सुधार और आनुवंशिक संसाधन विभाग के पास एग्रोफॉरेस्ट्री क्षेत्र में काफी अच्छा अनुभव है और पहले से ही इस पेड़ की 60 से अधिक प्रजातियों पर अध्ययन किया जा चुका है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा सर्वश्रेष्ठ 10 प्रजातियों की एक नर्सरी भी स्थापित की गई है, जिनका उपयोग इस परियोजना में किया जाएगा।
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सर्दियों में चारे की कमी होगी दूर
प्रदेश के कई क्षेत्रों में विशेषकर सर्दियों में पशुपालकों को चारे की कमी सताती है। बियुल प्रदेश के कई जिलों में उपलब्ध होता है और मवेशियों के लिए चारे का एक अच्छा स्रोत है। पेड़ के रेशों का उपयोग रस्सी बनाने में भी किया जाता है। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एचसी शर्मा ने बताया कि वैज्ञानिक बेहतर रोपण सामग्री की नर्सरी तैयार करेंगे और किसानों व प्रदेश के वन विभाग को आपूर्ति करेंगे।