अब सेब से बनेगा आटा व चिप्स
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की दिशा में एक और सफलता हासिल करते हुए डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विवि ने हाल ही में विवि द्वारा विकसित दो प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के लिए हिमाचल की दो कंपनियों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। सेब के पोमेस (गूदा) का मूल्यवर्धन में उपयोग करने व एप्पल ¨रग्स/चिप्स तैयार करने की दोनों प्रौद्योगिकी विवि के खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिक डॉ. देविना वैद्य, डॉ. मनीषा कौशल व अनिल गुप्ता द्वारा पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनिय¨रग एंड टेक्नोलॉजी पर आधारित अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना में विकसित की है। राज्य के सेब प्रसंस्करण उद्योग के लिए यह प्रौद्योगिकियां काफी फायदेमंद साबित हो सकती हैं।
संवाद सहयोगी, सोलन : प्रदेश में अब सेब से आटा और चिप्स बनेंगे। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की दिशा में एक और सफलता हासिल करते हुए डॉ. वाईएस परमार ओद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी ने दो प्रोद्योगिकियों के हस्तांतरण के लिए दो कंपनियों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। सेब के पोमेस (गूदा) का मूल्यवर्धन कर आटे में उपयोग करने व एप्पल चिप्स तैयार करने की दोनों प्रौद्योगिकी विवि के खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिक डॉ. देविना वैद्य, डॉ. मनीषा कौशल व अनिल गुप्ता द्वारा पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनिय¨रग एंड टेक्नोलॉजी पर आधारित अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना में विकसित की है। राज्य के सेब प्रसंस्करण उद्योग के लिए यह प्रोद्योगिकियां काफी फायदेमंद साबित हो सकती हैं। अपशिष्ट प्रबंधन पर काम करते हुए वैज्ञानिकों ने सेब पोमेस को आटा व कई अन्य मूल्य वर्धित उत्पादों को बनाने में इस्तेमाल किया। इसके व्यवसायीकरण के लिए प्रोटोकॉल भी विकसित किया गया। हाल ही में शिमला की कंपनी हाइलैंड ग्रोव्स के साथ इस तकनीक के उपयोग के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। कंपनी एप्पल पोमेस आटा बनाने के लिए तकनीक का उपयोग करेगी। दूसरी तकनीक में एप्पल चिप्स की तैयारी से संबंधित है, जिसे स्थानीय भाषा में शकोरी भी कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने वाणिज्यिक उच्च गुणवत्ता वाले सेब चिप्स/¨रग के विकास के लिए एक प्रोटोकॉल विकसित किया। इस तकनीक को सोलन की कंपनी शिवम ट्रेडर्स को दिया गया है। विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ. जेएन शर्मा ने खाद्य विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अंजू धीमान व संबंधित वैज्ञानिकों की उपस्थिति में दोनों एमओयू पर हस्ताक्षर किए। विवि के वीसी डॉ. एचसी शर्मा ने इसके लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी। दोनों कंपनियों ने समझौते के तहत प्रौद्योगिकी शुल्क के रूप में विवि को 50 हजार रुपये की राशि का भुगतान किया है। यह होगा लाभ
प्रसंस्करण के दौरान उत्पन्न सेब पोमेस अपशिष्ट के प्रभावी उपयोग का रास्ता खोजा है। हर साल, प्रसंस्करण के दौरान अपशिष्ट के रूप में सेब पोमेस की बड़ी मात्रा उत्पन्न होती है और सही निपटान की समस्या होती है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए विवि के शोधकर्ताओं ने अपने अनुसंधान में स्थापित किया कि पोमेस, फाइबर में समृद्ध होता है। यह फाइबर पाचन के लिए तो अच्छा होने के साथ-साथ बेकरी उत्पादों में वसा (फैट) की जगह उपयोग में लाया जा सकता है।