घर-घर रोशन कर रहीं शारदा की मोमबत्तियां
सोलन जिले के कंडाघाट की निवासी 73 वर्षीय शारदा ने आत्मनिर्भर बनकर अन्य के लिए मिसाल पेश की है।
भूपेंद्र ठाकुर, सोलन
सोलन जिले के कंडाघाट की निवासी 73 वर्षीय शारदा ने आत्मनिर्भर बनकर अन्य के लिए मिसाल पेश की है। शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त शारदा घर पर अकेले ही इन दिनों रंग-बिरंगी मोमबत्तियां बनाने का कार्य कर रही हैं। मोमबत्तियों को खिलौनों का रूप दे रही हैं। शारदा आय अर्जित करने के लिए इस कार्य को नहीं करती हैं, लेकिन उनके इस कार्य से बेरोजगार युवाओं को प्रेरणा जरूर मिल रही है। वह दिल्ली से कच्चा माल मंगवाकर 53 प्रकार की मोमबत्तियां बना रही हैं। दिखने में आकर्षक इन मोमबत्तियों को लोग इनके घर आकर ही खरीद लेते हैं। वह रिश्तेदारों व जान-पहचान वालों को मोमबत्तियां स्वयं वितरित करती हैं।
शारदा का कहना है कि वह 1995 से इस कार्य को रही हैं। शिमला के समीप कसुम्टी से उन्होंने जवाहर रोजगार योजना के तहत प्रशिक्षण प्राप्त किया था। इसके बाद वह प्रत्येक वर्ष दिवाली के दिनों में मोमबत्तियां बनाती हैं। यह काम उनका शौक है। वर्ष 2007 में शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद वह अपने आप को सक्रिय रखना चाहती थी। इसलिए इस काम को थोड़ा बड़े स्तर पर करना शुरू कर दिया। वह प्रत्येक सीजन में करीब 1000 विभिन्न मोमबत्तियां बना लेती हैं।
शारदा का कहना है कि आधुनिकता के इस दौर में अब मोमबत्तियों की मांग पहले से कहीं अधिक कम हो गई है। लोग अब अधिक मोमबत्तियां खरीदना पसंद नहीं करते हैं। मोमबत्तियों की जगह अब इलेक्ट्रानिक्स लड़ियों ने ले ली है। बावजूद इसके वह मोमबत्तियां बनाती हैं और लोगों को इसे खरीदने के लिए प्रोत्साहित भी कर रही हैं। वह एक स्वयं सहायता समूह से भी जुड़ी हैं। उनका प्रयास रहता है कि वह इस काम के साथ अधिक से अधिक लोगों को जोड़ें। यदि कोई इस काम को सीखना चाहता है तो वह तैयार हैं। उनके थोड़े से प्रयास से यदि किसी को रोजगार मिल जाता है तो वह कभी पीछे नहीं हटती हैं। मध्यम वर्गीय व गरीब परिवारों की महिलाएं जो घर पर रहती हैं वे इस कार्य को आसानी से कर सकती हैं।