अपना लिखा हर लफ्ज लगता है प्यारा : इरशाद कामिल
मेरी पहली फिल्म चमेली की रिलीज पर मैं सिनेमा हॉल में अपने मित्रों के
मनमोहन वशिष्ठ, सोलन
मेरी पहली फिल्म चमेली की रिलीज पर मैं सिनेमा हॉल में अपने मित्रों के साथ था, लेकिन फिल्म की शुरुआत ही मेरे लिए क्लाइमेक्स हो गया। वह इसलिए कि जो स्टार्टिग क्रेडिट्स (परिचय) थे, उसमें बतौर गीतकार मेरा नाम नहीं था। हालांकि फिल्म के आगे चलते चलते जैसे ही मेरा लिखा गाना 'भागे रे मन कहीं आगे रे मन' आया तो मैं भूल गया कि पीछे क्या हुआ था। यह उद्गार मशहूर गीतकार, कवि व लेखक इरशाद कामिल ने शूलिनी लिटफेस्ट में रविवार को ऑनलाइन सेशन के दौरान कहे। इस सत्र का संचालन शूलिनी विश्वविद्यालय सोलन से आशू खोसला ने किया। इरशाद का कहना था कि लेखक को अपना लिखा हुआ हर लफ्ज प्यारा लगता है।
बकौल इरशाद कामिल, चमेली फिल्म देखते हुए मुझे लगा कि बस यह बात थी जिसको लेकर मैं चला था मलेरकोटला (पंजाब) जैसे छोटे से कस्बे से और जिसके साथ में चंडीगढ़ में रहा। जिस सपने के साथ दिल्ली गया और फिर मुंबई आ गया। अब मैं अपने बोलों को स्क्रीन पर देख सुन रहा हूं। यह मेरे लिए बहुत ही खुशी का पल था। कुन फाया कुन, जग घूमेया, नादान परिदे जैसे गाने इरशाद कामिल लिख चुके हैं।
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कम समय में सभी इंद्रियां केंद्रित होकर करती हैं काम
चर्चा के दौरान संचालक आशू खोसला ने सवाल पर इरशाद कामिल ने कहा कि कहानी की स्थिति व धुन पहले तैयार होती है और किरदार के अनुसार ही गाना लिखना होता है। इसके साथ ही संगीत निर्देशक की जरूरत भी पूरी करनी होती है। वहीं म्यूजिक कंपनी का भी दबाव होता है कि उनको हिट गाना ही चाहिए। उसके अलावा निर्माता का टाइम का भी दबाव होता है। ऐसे में मुझे लगता है कि क्रिएटिविटी इसलिए अच्छी निकलती है जब आप पर दबाव होता है, क्योंकि हमारी जितनी इंद्रियां होती हैं वे उस काम के लिए केंद्रित हो जाती हैं। वहीं, जब आपके पास खुला समय होता है तो फिर सारी इंद्रियां उस तरह से केंद्रित नहीं हो पाती। हालांकि गानों को लिखने के लिए गुजारे लायक समय मिलना भी चाहिए।
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श्रोताओं से मिलना चाहिए श्रेय
इरशाद कामिल ने कहा कि गीतकार को असली श्रेय कंपनी से नहीं श्रोताओं से मिलना चाहिए। वह तब होगा जब गाने सुनने वाले गीतकार को उसके नाम से सर्च करें, क्योंकि लोग गाने को गायक व कलाकार के नाम से ही जानते हैं, जबकि गाने में गीतकार व संगीत निर्देशक की बड़ी भूमिका होती है। 'सांग एज ए प्रोटेस्ट' के सवाल पर इरशाद कामिल का कहना था कि गानों से ऊर्जा मिलती है, लेकिन परिवर्तन हो सकता है, ये मैं नहीं मानता।