पेट्रोल और डीजल का मिला विकल्प, अब सस्ते में सरपट दौड़ेंगे वाहन
शूलिनी विश्वविद्यालय के शोध दल ने दुग्ध संयंत्र के कचरे और शैवाल के मिश्रण से ऐसा जैव ईंधन तैयार किया है यह जैव ईंधन अंतरराष्ट्रीय मानकों पर भी खरा उतरा है।
सोलन, सुनील शर्मा। दुग्ध संयंत्र के कचरे और शैवाल के मिश्रण से ऐसा जैव ईंधन तैयार कर लिया गया है, जो पेट्रोल या डीजल का सस्ता, कारगर और पर्यावरण हितैषी विकल्प हो सकेगा। हिमाचल प्रदेश के सोलन स्थित शूलिनी विवि में बने इस बायो फ्यूल से वाहन का इंजन भी चलाकर देखा गया, ट्रायल सफल रहा। यह जैव ईंधन अंतरराष्ट्रीय मानकों पर भी खरा उतरा है।
शूलिनी विश्वविद्यालय के शोध दल ने यह युक्ति खोज निकाली है। अब इसे पेटेंट कराने की तैयारी की जा रही है। नदियों में पाए जाने वालेविशेष शैवाल और दुग्ध संयंत्र (मिल्क प्लांट) के कचरे (वेस्ट मैटीरियल) से जैव ईंधन को बनाने की युक्ति बायो टेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर व डीन (रिसर्च) सौरभ कुलश्रेष्ठ और पीएचडी स्कॉलर सन्र्नी बिंद्रा विकसित की है। उन्होंने बताया कि यह प्रोजेक्ट सौ फीसद वेस्ट मैटीरियल पर निर्भर है। इससे किसी भी तरह के वाहन, मसलन कार, हवाई जहाज, रेलगाड़ी आदि के इंजन को चलाया जा सकेगा। अंतरराष्ट्रीय मानकों पर यह ईंधन खरा पाया गया है। लिहाजा, छुटपुट बदलाव के बाद इसे आम इस्तेमाल के योग्य बनाया जा सकेगा।
शैवाल में कुछ विशेष रसायन मिलाकर जैव ईंधन बनाया जा सकता है, लेकिन शोधकर्ताओं ने इसमें मिल्क प्लांट के वेस्ट मैटीरियल को इस्तेमाल किया। इससे शैवाल की मात्रा में वृद्धि हुई और बेहतर बायो फ्यूल तैयार हो सका। अन्य शैवाल में ऑयल कंटेंट की कमी होती है, जबकि नदियों में पाए जाने वाले शैवाल में यह प्रचुरता में होता है। रसायन की जगह मिल्क प्लांट के वेस्ट को मिलाने पर शैवाल की क्षमता में वृद्धि हुई। रसायनों की तुलना में भी यह सस्ता विकल्प साबित हुआ। प्रदूषणरहित होना भी इसकी खूबी है। इस प्रोजेक्ट को अगर बड़े स्तर पर शुरू कर दिया जाता है तो पेट्रोल और डीजल के लिए दूसरे देशों पर भारत की निर्भरता खत्म हो सकती है।
हमने इससे वाहन का इंजन चलाकर देखा। ट्रायल सफल रहा। यह जैव ईंधन अधिकतर अंतरराष्ट्रीय मानकों पर भी खरा उतरा है। लैब परीक्षण में इसने बेहतर परिणाम दिए हैं। यदि इसे बाजार में उतारा जाए तो फिलहाल इसकी कीमत डीजल से अधिक पड़ेगी, लेकिन बड़े स्तर पर काम शुरू होने पर कीमत काफी कम हो जाएगी।
-प्रो. सौरभ कुलश्रेष्ठ, प्रोजेक्ट हेड, डीन रिसर्च, शूलिनी विवि
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