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Parmar Jayanti: डॉ. परमार न होते तो हिमाचल न होता Sirmour News

रविवार को पूरा हिमाचल प्रदेश हिमाचल निर्माता और प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. वाईएस परमार की 113वीं जयंती मना रहा है।

By Edited By: Published: Sat, 03 Aug 2019 07:37 PM (IST)Updated: Sun, 04 Aug 2019 11:51 AM (IST)
Parmar Jayanti: डॉ. परमार न होते तो हिमाचल न होता Sirmour News
Parmar Jayanti: डॉ. परमार न होते तो हिमाचल न होता Sirmour News

नाहन, जेएनएन। रविवार को पूरा प्रदेश हिमाचल निर्माता और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाईएस परमार की 113वीं जयंती मना रहा है। डॉ. परमार ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने प्रदेश का इतिहास ही नहीं, भूगोल भी बदल कर रख दिया। इसका प्रमाण पूर्ण राज्य के रूप में प्रदेशवासियों के सामने है। प्रदेश की सीमाओं को और बड़ा कर दिया था, जबकि प्रदेश को पंजाब में मिलाने की पुरजोर बात चल रही थी। अगर ऐसा न होता तो आज हम हिमाचली नहीं, पंजाबी कहला रहे होते। आज हर कोई यह बात कह रहा है डॉ. परमार न होते तो हिमाचल, हिमाचल न होता।

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सड़कों स्कूलों, चिकित्सालयों जैसी मूलभूत आवश्यकताओं का आरंभ उन्हीं के प्रयत्नों से हुआ था। डॉ. परमार के दिल में पहाड़ का दर्द था। वह इसे शिद्दत से महसूस करते थे। यदि हिमाचल का विलय पंजाब में हो गया, तो हमारे पहाड़ के लोग ठगे जाते। पंजाब से मिलते ही हमारी सांस्कृतिक विरासत, हमारी सोच और हमारा रहन सहन बदल जाता। इसलिए उन्होंने प्रयास किया कि हिमाचल का पंजाब में विलय न हो सके। इसी उद्देश्य से बाद में डॉ. परमार ने बाहरी लोगों को हिमाचल में भूमि बेचने पर प्रतिबंध लगाया। डॉ. परमार पर कभी उनकी पार्टी कांग्रेस, विपक्ष और दूसरे अन्य लोगों ने उंगली नहीं उठाई।

डॉ. परमार ने जब इस दुनियां को छोड़ा, तो उनके बैंक खाते में मात्र 563 रूपये थे। इसलिए राजनीतिक विचारधारा से उठकर प्रदेश के लोग डॉ. परमार को एक महापुरुष और निर्विवाद रूप से हिमाचल निर्माता मानते हैं। इंदिरा के संदेश मात्र से ही छोड़ा था सीएम पद यह वाक्या 1976 का है, जब डॉ. परमार ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दिया था। त्यागपत्र देने के तीन दिन पहले वह दिल्ली थे। वापस आने पर नाहन में बैठक कर रहे थे कि तभी शिमला कार्यालय से सूचना मिली कि उन्हें दिल्ली बुलाया गया है। वह सोचने लगे कल ही तो वहां से आया था। ऐसी क्या बात हो गई, जो उन्हें तुरंत दिल्ली बुलाया गया। वह फिर दिल्ली रवाना हो गए।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास पर गए तो वहां कांग्रेस महासचिव पूर्वी मुखर्जी से बात हुई। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री चाहती हैं कि वह मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दें। डॉ. परमार मुस्कुराए और कहा 'बस इतनी सी बात', मुझे फोन पर ही बता देते और वापस चलने लगे। मुखर्जी ने कहा कि आप रुक जाएं, कल प्रधानमंत्री मिल सकेंगी। एक बार उनसे मिल तो लीजिए। डॉ. परमार ने कहा कि मुझे मुख्यमंत्री बनने का अवसर भी उन्होंने दिया है और उन्हीं के कहने से पद छोड़ दूंगा। उन्होंने कहा कि कल मंडी में मेरी जनसभा है, परसों त्यागपत्र दे दूंगा। उन्होंने किसी भी प्रकार का लालच न करते हुए मंडी से वापस आकर त्यागपत्र दे दिया और ठाकुर रामलाल को कुर्सी सौंप दी।

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