वरदान साबित हो सकती है औषधीय पौधों की खेती
-जंगली जानवरों से परेशान किसान छोड़ रहे खेती, परपरागत फसलों से तौबा जागरण संवाददा
-जंगली जानवरों से परेशान किसान छोड़ रहे खेती, परपरागत फसलों से तौबा जागरण संवाददाता, नाहन : सिरमौर जिले में जंगली जानवरों से परेशान होकर कई किसान खेती करना ही छोड़ रहे है। खेती न करने से जिले में सैकड़ों हेक्टेयर भूमि बंजर हो रही है। बंजर जमीन के लिए औषधीय खेती वरदान साबित हो सकती है। इससे किसानों को अच्छी-खासी आमदनी भी होगी। अपार संभावनाओं के बावजूद अभी तक जिले में कुछ ही किसानों ने ही औषधीय पौधों की खेती शुरू की है। अभी जिले में एलोवीरा व आंवला की ही खेती की जा रही है। इसके अलावा अदरक की खेती होती है। मगर सिरमौर के अदरक को भी मंडियों में अच्छा दाम न मिलने से कई किसान इससे तौबा कर रहे है। इसके अलावा मक्की, तिल, गेहू, अरबी आदि परपरागत फसलों में कम मुनाफा होने के कारण किसान इनकी खेती कम कर रहे है।
जिला आयुर्वेदिक विभाग ने किसानों को औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। विभाग आतीश, कुटकी, कुठ, सुगंधबाला, सफेद मूसली, अश्वगंधा, सर्पगंधा व तुलसी की खेती के लिए किसानों को अनुदान प्रदान कर रहा है। किसान कलस्टर बनाकर औषधीय पौधों की खेती कर सकते है। विभाग ने तुलसी की खेती पर करीब 13 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर, आतीश के लिए 1.20 लाख, कुटकी पर 1.23 लाख, कुठ 96 हजार, सुगंधबाला 43 हजार, सफेद मूसली 1.37 लाख, अश्वगंधा एक लाख व सर्पगंधा पर 45 हजार रुपये अनुदान दिया जा रहा है।
नकदी फसलों के लिए जागरुक
कृषि विभाग जिले में किसानों को नकदी फसलें उगाने के लिए जागरूक कर रहा है। जानवरों से फसलों को बचाने के लिए सोलर फेंसिंग पर अनुदान प्रदान किया जा रहा है। इससे किसानों को काफी राहत मिली है। सोलर फेंसिंग पर अनुदान प्रदान करने के लिए एक करोड़ का बजट आवंटित किया गया था। डेढ़ करोड़ का और बजट मागा है। अनुदान की दर 80 फीसद करने से काफी किसान सोलर फेंलिए आवेदन कर रहे है। वहीं, उद्यान विभाग भी लोगों को ऐसे पौधे लगाने के लिए जागरूक कर रहा है, जिन्हें जंगली जानवर नुकसान न पहुंचा सकें। बागवानों को नींबू, गलगल, आंवला व कटहल आदि के पौधे लगाने के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसके लिए अनुदान भी प्रदान किया जाता है।
जिला आयुर्वेदिक अधिकारी कविता शर्मा ने बताया कि सिरमौर जिले में औषधीय पौधों की खेती के लिए अपार संभावना है। लोगों को औषधीय पौधों की खेती के लिए जागरूक किया जा रहा है।