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सिरमौर में चुनाव में ही सुनाई देता है रेल का शोर

लोकसभा चुनाव में इस बार भी जिला सिरमौर को रेल लाईन से जोडने का मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Mar 2019 04:58 PM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2019 04:58 PM (IST)
सिरमौर में चुनाव में ही सुनाई देता है रेल का शोर
सिरमौर में चुनाव में ही सुनाई देता है रेल का शोर

राजन पुंडीर, नाहन

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लोकसभा चुनाव में इस बार भी जिला सिरमौर को रेललाइन से जोड़ने का मुद्दा उछल रहा है। पांच दशक से लोकसभा चुनाव में सिरमौर को रेल नेटवर्क से जोड़ने के सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं। चुनाव खत्म होते ही यहां रेल का शोर सुनाई देना बंद हो जाता है। फिर पांच साल तक रेल पहुंचने की उम्मीद खत्म हो जाती है।

सिरमौर के उद्योगपतियों द्वारा भी तीन दशक से औद्योगिक क्षेत्र पांवटा साहिब व कालाअंब को रेललाइन से जोड़ने की मांग उठाई जा रही है। इसके लिए दर्जनों बार केंद्र, प्रदेश सरकार व जिला के प्रशासनिक अधिकारियों को विभिन्न संस्थाओं व प्रतिनिधियों द्वारा ज्ञापन सौंपे गए। मगर यह मांग फाइलों में धूल फांक रही है। इन औद्योगिक क्षेत्रों में कच्चा माल व तैयार माल ट्रकों में देश के अन्य राज्यों में पहुंचाया जाता है। यदि सिरमौर में रेल पहुंचती है तो समय पर उद्योगों को कच्चा माल व तैयार माल दूसरे स्थानों पर पहुंचाने में आसानी होगी। इससे भारी-भरकम किराए से भी उद्योगपतियों को निजात मिलेगी।

जिला के सैनिकों को रेल का इंतजार जिला सिरमौर के हजारों सैनिक देश की सरहद पर सेवाएं दे रहे हैं। इन सैनिकों को सरहदों से अपने घर आने-जाने के लिए कई किलोमीटर का सफर बसों में तय करना पड़ता है। इन सैनिकों को ट्रेन पकड़ने के लिए हरियाणा व उत्तराखंड जाना पड़ता है। सैनिकों को सरहद तक पहुंचने के लिए कालका, अंबाला व देहरादून से ट्रेन पकड़ कर अपने स्टेशनों के लिए रवाना होना पड़ता है। नाहन से अंबाला 70 किलोमीटर, देहरादून 90 किलोमीटर व कालका 110 किलोमीटर दूर है। सर्वें तक ही सीमित रही रेललाइन पांवटा साहिब-कालाअंब को रेललाइन से जोड़ने के लिए कई बार सर्वे हुए। मगर कोई भी सर्वें बिना बजट के सिरे नहीं चढ़ पाया। हर लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशियों द्वारा जिला सिरमौर को रेल सुविधा से जोड़ने के वादे किए जाते हैं। चुनाव के बाद पांच वर्ष तक कोई भी रेल का नाम नहीं लेता है। दो दशक पूर्व पंजाब के घनौली से सोलन व सिरमौर के औद्योगिक क्षेत्रों को रेललाइन से जोड़ने के लिए बद्दी-पिजौर-कालाअंब-पांवटा साहिब के लिए रेललाइन का सर्वे करवाया गया। इसके लिए केंद्र सरकार ने बजट का प्रावधान नहीं किया। उसके बाद पांवटा साहिब को देहरादून व यमुनानगर से रेललाइन से जोड़ने के लिए केंद्र से मांग उठाई गई। यह मांग भी सिरे नहीं चढ़ी। सिरमौर में खुले कई बडे़ संस्थान एक दशक में सिरमौर में आइआइएम, मेडिकल कॉलेज, पांवटा डेंटल कॉलेज, कालाअंब में शिक्षण संस्थान, पांवटा साहिब के समीप राजबन में भारतीय सेना की यूनिट सहित प्रदेश सरकार के बड़े संस्थान खुले हैं। यहां देश के विभिन्न हिस्सों से कर्मचारी नौकरी करते है। बिना रेल के कर्मचारियों को यहां पंहुचने में भारी परेशानी होती है। इसके अतिरिक्त पांवटा साहिब स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा, हरिपुरधार माता भंगायणीजी का मंदिर, मिश्रवाला में मदरसा, बडू साहिब इटरनल विश्वविद्यालय, अंरराराष्ट्रीय वेटलैंड श्रीरेणुकाजी झील व चूड़धार मंदिर में प्रति वर्ष देश-विदेश के लाखों पर्यटक रेल सुविधा के अभाव में गाडि़यों में सफर करने को मजबूर हैं। सासदों से मिले मात्र आश्वासन जिला सिरमौर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र कालाअंब के चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष दिपेन गर्ग व महासचिव रोहित सूरी, पावटा साहिब चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष सतीश गोयल, हिमाचल दवा निर्माता संघ कालाअंब के अध्यक्ष सीएस पुष्करणा, महासचिव संजय आहुजा ने बताया कि कालाअंब-पावटा साहिब को रेललाइन से जोड़ने का आग्रह कर चुके हैं। पावटा प्रेस परिषद के अध्यक्ष अरविंद गोयल, अखिल भारतीय समाज सुधार समिति के अध्यक्ष मौलाना कबीरूदीन, राष्ट्रीय विकास समिति के सिरमौर जिला प्रभारी इंजीनियर नरेंद्र मोहन रमौल, हिमाचल प्रदेश व्यापार मंडल प्रदेश पूर्व अध्यक्ष डॉ. मदन लाल खुराना, गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पावटा साहिब के मैनेजर कुलवंत सिंह चौधरी, नागरिक सभा नाहन अध्यक्ष दलीप सिंह वर्मा, श्रीवैश्य सभा नाहन के पूर्व अध्यक्ष पीसी अग्रवाल, शिवालिक मंच के अध्यक्ष पीएन शर्मा, नोबल अर्थ ह्यूमन राइट आर्गेनाइजेशन के महासचिव जावेद उल्फत का कहना है कि पावटा-कालाअंब क्षेत्र में रेल के विस्तार के लिए सर्वे हुए 50 साल से अधिक समय हो चुका है, मगर कोरे आश्वासन ही मिले। 1962 में हुआ था सर्वे पावटा क्षेत्र को रेललाइन से जोड़ने के लिए साठ के दशक में सर्वेक्षण का कार्य आरंभ किया गया था। इसमें पावटा को यमुनानगर (जगाधरी), सहारनपुर व चंडीगढ़ से जोड़ने की संभावनाएं तलाशी जानी थीं। वर्ष 1962 में भी सर्वेक्षण किया गया। उसके बाद सिरमौर को रेललाइन से जोड़ने के दस्तावेज सरकारी फाइलों में घूम रहे हैं। चंडीगढ़ से देहरादून वाया बद्दी औद्योगिक क्षेत्र, कालाअंब, पावटा साहिब रेललाइन बिछाने के लिए पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी के कार्यकाल में दो करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की गई थी, मगर फाइलों तक सिमट कर रह गई। बयान

सिरमौर को रेललाइन से जोड़ने के लिए संसद में कई बार मुद्दा उठाया गया। घनौली-बद्दी-पिजौर-कालाअंब-पांवटा साहिब, पांवटा साहिब-यमुनानगर व पांवटा साहिब-देहरादून को जोड़ने के प्रयास किए गए। बजट के अभाव में रेललाइन का कार्य शुरू नहीं हो पाया। इसके लिए प्रयास जारी रहेंगे।

-वीरेंद्र कश्यप, सांसद


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