पलकों पर ठिठके युग की मुक्ति
चार साल पहले नृशंस अपराध का शिकार हुए युग के पिता ने कहा अब उसे मिली है मुक्ति ।
शिमला, नवनीत शर्मा। बेशक युग चार साल पहले नृशंस अपराध का शिकार हो गया था लेकिन पिता ठीक कहते हैं कि उसे मुक्ति अब मिली। इस जघन्य अपराध के बाद जो चार साल उसके माता-पिता ने काटे, वे कितने भारी रहे होंगे, कौन कर सकता है यह कल्पना? युग के दोषियों को मिली फांसी की सजा, बच्चों के लिए खास तौर पर क्रूर इस दौर में नजीर का काम करेगी। यह निर्णय समूचे युग के साथ न्याय है। यह उस दौर में न्याय है जब कोंपलें सुरक्षित नहीं हैं...जब फूलों को मसलते हुए भी कुछ दिल पिघलते नहीं हैं। जिगर के टुकड़े के साथ हुए न्याय को सुनने के बाद अदालत के बाहर परिवार के साथ खड़ी उसकी मां के भाव किन
शब्दों में आ सकते हैं? पलकों को सींचने के लिए अटका हुआ आंसू जैसे उसी दुर्दांत समय की याद दिला रहा हो....सीलकने पर चार साल तक पहाड़ रख कर दौड़ते पिता ने भी इस न्याय को महसूस किया है। और दहलीज के चिराग को खो चुकी बुजुर्ग दादी यकीनन न भरने वाले जख्म पर मरहम अवश्य देख रही होगी।
कुछ दरिंदों ने शिमला में केलस्टन से लेकर पानी के टैंक तक उस मासूम का सफर पीड़ादायक बनाया। बच्चों में भगवान देखने का दावा करने वाले समाज में युग के ऐसे अपराधियों, शैतानों के लिए सख्त सजा ही मिसाल बन सकती थी।
न्यायपालिका ने एक बार फिर साबित किया है कि ऐसे आपराधिक तत्वों को इस मुकाम तक वही पहुंचा सकती थी, उसने पहुंचाया भी। बच्चे की गुमशुदगी के बाद जिस प्रकार शहर सड़कों पर उतरा था, यह सिविल सोसायटी की सकारात्मक सक्रियता और प्रतिक्रिया भी थी। वास्तव में, जागते रहने में ही समाज की भलाई है।
हिमाचल को इतना जागना होगा कि एक भी फूल बाग से गायब न हो। जिस पुलिस दल ने इस मामले को पूरी तत्परता के साथ देखा और अपराधियों को ढूंढ़ निकाला, उसके योगदान की अनदेखी भी संभव नहीं। युग अपहरण और हत्याकांड और इस पर आए फैसले ने बता दिया है कि कानून के हाथों से कोई अपराधी बच नहीं सकता। निचली अदालत ने लगातार सुनवाई के बाद इस मामले को निर्णायक अंजाम तक लाने में सक्रिय भूमिका निभाई। ऐसे मामलों में उच्च न्यायपालिका भी जब इसी त्वरा के साथ ऐसे मामलों को
देखती है तो सजा का संदेश और प्रभावी हो जाता है।
हिमाचल प्रदेश कई राज्यों की तुलना में अब भी शांतिप्रिय प्रदेश है लेकिन युग के हत्यारों की तरह विकृत मानसिकता के लोग समाज में अविश्वास और अनिश्चितता का दीमक लगा देते हैं। यह सजा नजीर बने और अपराध रुकें, ऐसी आशा आवश्यक है।