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नाम के हैं सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

कोरोना संकट में जिला शिमला के मशोबरा खंड में स्वास्थ्य सेवाएं चरमराने लगी हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 02 Oct 2020 03:40 PM (IST)Updated: Fri, 02 Oct 2020 03:40 PM (IST)
नाम के हैं सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र
नाम के हैं सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

ताराचंद शर्मा, शिमला

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कोरोना संकट में जिला शिमला के मशोबरा खंड में स्वास्थ्य सेवाएं चरमराने लगी हैं। जिले के जोनल अस्पताल को कोरोना समर्पित अस्पताल घोषित किया गया है तो अस्पताल में सामान्य मरीजों के आने पर भी प्रतिबंध लग गया है। अस्पताल के विशेषज्ञ डाक्टरों को कोरोना ड्यूटी पर भेजा गया है। इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आइजीएमसी) प्रशासन ने भी गंभीर अवस्था में ही लोगों को आइजीएमसी आने की अपील की है। ऐसे में लोगों के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ही विकल्प बचा है। जिले में इन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति भी भगवान भरोसे ही है। कहीं फार्मासिस्ट नहीं हैं तो कहीं डाक्टर। यहां तक की नर्सिग स्टाफ तक नहीं है।

कोरोना संकट के दौरान स्वास्थ्य केंद्रों के बड़े-बड़े भवन नाम के ही साबित हो रहे हैं। टेस्ट की सुविधा दी गई है तो तकनीशियन का पद खाली पड़ा है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लाखों रुपये की लागत से खरीदी गई मशीनें भी धूल फांक रही हैं। आपरेशन थियेटर है, लेकिन कर्मचारी नहीं

शहर के साथ लगते सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) मशोबरा में फार्मासिस्ट से लेकर स्टाफ नर्स का पद भी खाली पड़ा हुआ है। आपरेशन थियेटर है, लेकिन ओटी तकनीशियन नहीं है। ऐसे में आपरेशन की सुविधा भी इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में नहीं मिल पा रही है। मजबूरन लोगों को आइजीएमसी का रुख करना पड़ रहा है। मशोबरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रोजाना की ओपीडी 100 के करीब रहती है। सुविधा के अभाव में डाक्टर को दिखाने के बाद लोगों को आइजीएमसी ही पहुंचना पड़ता है। डेपुटेशन पर भेजे कर्मचारी, लोग हो रहे परेशान

करीब पांच पंचायतों के पांच हजार लोगों की सुविधा के लिए बने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कुफरी में सरकार ने सुविधाएं तो सभी दी हैं, लेकिन स्टाफ नहीं भरा। ऐसे में लोगों को इन सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। अस्पताल में फार्मासिस्ट तो है लेकिन उसे भी सचिवालय में डेपुटेशन पर भेजा गया है। दो माह से फार्मासिस्ट डेपुटेशन पर है। स्टाफ नर्स का पद खाली है। लैब तकनीशियन का पद भी खाली पड़ा है। एक एक्सरे मशीन लगी है, लेकिन एक्सरे करने के लिए तकनीशियन नहीं है। ऐसे में लोगों को आइजीएमसी पहुंचना पड़ता है। सफाई तक की व्यवस्था अस्पताल में नहीं है। एक सफाई कर्मचारी सफाई के लिए रखा गया है, लेकिन उसे भी डेपुटेशन पर मशोबरा भेजा है। पीएचसी दुर्गापुर में डाक्टर है पर फार्मासिस्ट नहीं

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) दुर्गापुर दो पंचायतों दुर्गापुर और नीन के लिए बनाया है, लेकिन यह मात्र एक भवन बनकर रह गया है। यहां एक डाक्टर तैनात है, लेकिन फार्मासिस्ट नहीं है। मिडवाइफ का पद भी रिक्त पड़ा है। यहां तक की बच्चों को महीने में लगने वाले इंजेक्शन तक लगाने के लिए फार्मासिस्ट नहीं मिल पाता है। बल्देयां पीएचसी में न भवन न डाक्टर

पंचायत बल्देयां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में न तो भवन अच्छा है और न ही डाक्टर की सुविधा। पुराने भवन में स्वास्थ्य केंद्र खोला तो गया है लेकिन यहां पर हर समय ताला लटका रहता है। सप्ताह में एक बार केंद्र खुलता है। ऐसे में लोगों को प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा से वंचित रहना पड़ता है। यहां तक की प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए जाने वाला रास्ता भी तीन साल से धंसा है। इससे केंद्र तक पहुंचना मुश्किल हो गया है। हैरानी की बात है कि यहां पर न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही स्वास्थ्य विभाग। स्वास्थ्य केंद्रों में हर सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। स्टाफ की कमी को पूरा करने के लिए भी विभाग को लिखा गया है। लोगों को दिक्कत नहीं आने दी जाएगी।

राकेश प्रताप, खंड चिकित्सा अधिकारी।


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