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बुरी शक्तियों को नष्ट करने के लिए इस गांव में आज भी निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा

दुर्गा माता के स्वर्ग प्रवास के दौरान 15 दिन तीरंदाजी का खेल होता है अौर अंतिम दिन खेल के समापन पर उत्सव मनाया जाता है।

By BabitaEdited By: Published: Tue, 12 Feb 2019 10:28 AM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 10:28 AM (IST)
बुरी शक्तियों को नष्ट करने के लिए इस गांव में आज भी निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा
बुरी शक्तियों को नष्ट करने के लिए इस गांव में आज भी निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा

रिकांगपिओ, समर नेगी। किन्नौरी जिले के पूह खंड के रोपा गांव में तीरंदाजी पर्व की परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। सोमवार को इस पर्व का समापन हुआ। ऐसी मान्यता है कि रोपा वासियों की देवी दुर्गा मां माघ महीने के दूसरे पखवाड़े तक स्वर्ग प्रवास पर रहती हैं।

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रोपा निवासी चरण सिंह नेगी ने बताया कि दुर्गा माता के स्वर्ग भ्रमण के साथ ही रोपा गांव में तीरंदाजी खेल पर्व शुरू होता है। मां दुर्गा के स्वर्ग वापसी के साथ ही इस खेल का समापन होता है। मान्यता के अनुसार मां दुर्गा की स्वर्ग भ्रमण पर जाते ही उनकी अनुपस्थिति के दौरान बुरी शक्तियों को नष्ट करने के उद्देश्य से रोपा गांव में तीरंदाजी खेल पर्व का आयोजन होता है।

खेल में प्रत्येक परिवार से एक पुरुष का भाग लेना अनिवार्य होता है, जो परिवार इस खेल में भाग नहीं लेता है तो उसे जुर्माना देना पड़ता है। खेल दो दलों में होता है। एक-एक मुखिया चुना जाता है। उन्होंने बताया कि तीर चलाने का लक्ष्य दो दिशाओं, पूर्व और पश्चिम की तरफ होता है तथा लक्ष्य की दूरी लगभग 100 फुट या इससे भी अधिक होती है। लक्ष्य यानी लकड़ी का तख्ता चार इंच वर्गाकार का होता है। 

पूर्व के लक्ष्य को डायन का एवं पश्चिम के लक्ष्य को राक्षस का प्रतीक माना जाता है। खिलाड़ियों को बारी-बारी दोनों तरफ से लक्ष्य को भेदना होता है। प्रतिभागी एक बारी में केवल तीन तीर का ही प्रयोग कर सकता है। खेल का प्रारंभ प्रतिदिन डायन को लक्ष्य मानकर किया जाता है।

दोनों दलों के अर्जित अंकों के आधार पर ही जीत और हार का निर्णय होता है। ग्रामवासी देवी सिंह ने बताया कि एक पखवाड़े तक चलने वाले तीरंदाजी खेल पर्व के समापन पर समारोह का आयोजन किया जाता है। सायंकाल को जीत और हार की भावना को बुलाकर दावत एवं लोक नृत्य का आनंद लेते हैं।


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