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पेंशनरों को सरकार ने दिखाया ठेंगा

यह हालत तो उन लोगों की है जिन्हें पेंशन की सुविधा है, लेकिन प्रदेश में करीब 20 ऐसे बोर्ड और निगम हैं, जिन्हें पेंशन से वंचित रखा गया है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 30 Oct 2017 09:36 AM (IST)Updated: Mon, 30 Oct 2017 09:36 AM (IST)
पेंशनरों को सरकार ने दिखाया ठेंगा
पेंशनरों को सरकार ने दिखाया ठेंगा

शिमला, रमेश सिंगटा। देश सरकार ने डेढ़ लाख पेंशनरों को ठेंगा ही दिखाया। इनकी मूल पेंशन में पांच वर्ष तक कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। भत्तों में जरूर वृद्वि हुई, लेकिन महंगाई भत्ते का लाभ नहीं मिल पाया। सीएम ने पंजाब की तर्ज पर पेंशन देने का ऐलान किया, पर नौकरशाही ने इस पर भी अड़ंगा लगा दिया। इससे उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे पेंशनरों के आर्थिक हित प्रभावित हुए। 

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यह हालत तो उन लोगों की है जिन्हें पेंशन की सुविधा है, लेकिन प्रदेश में करीब 20 ऐसे बोर्ड और निगम हैं, जिन्हें पेंशन से वंचित रखा गया है। कॉरपोरेट सेक्टर में बिजली बोर्ड, हिमाचल यूनिवर्सिटी, हिमाचल पथ परिवहन जैसे गिने-चुने संस्थाओं में ही पेंशन की व्यवस्था है। करीब 33 हजार मुलाजिमों को तो पेंशन मिल रही है, लेकिन सात हजार कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे से बाहर रखा गया है, ये अपने हक की कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। जमा पूंजी से कोर्ट केस की फीस चुका रहे हैं। इनकी लड़ाई सुप्रीमकोर्ट तक पहुंची, लेकिन राज्य सरकार की भूमिका पूरी तरह से नकारात्मक रहने से लाभ नहीं मिल पाए। आलम यह है कि अब इन्हें ईपीएफ के नाम पर मासिक 530 रुपये से लेकर अधिकतम 2300 रुपये तक ही पेंशन मिल रही है। तीन- तीन दशकों तक जिन संस्थाओं में सेवाएं दी, वहां से रिटायर होने के बाद सरकार ने ऐसा सिला दिया, जिसे कर्मचारी कभी नहीं भूल पाएंगे।

आर्थिक संकट की आड़ में छीनी पेंशन

राज्य सरकार ने कोर्ट में दलील दी कि प्रदेश के ज्यादातर बोर्ड, निगम घाटे में चल रहे हैं। इनमें 2860 करोड़ का घाटा दर्शाया गया। इनमें से 2660 करोड़ का घाटा तो बिजली बोर्ड और एचआरटीसी का ही है। अकेले बिजली बोर्ड का ही 1843 करोड़ का घाटा है। जबकि एचआरटीसी का घाटा 847 करोड़ है। 

इन दोनों ही संस्थानों में कर्मचारियों को पेंशन मिल रही है। जिन बोर्ड और निगमों का कुल घाटा डेढ़ सौ करोड़ के आसपास है, आर्थिक संकट की आड़ में इन्हें पेंशन नहीं दी जा रही है।

अध्यक्षों, उपाध्यक्षों पर फिजूलखर्ची क्यों?

सरकार के आर्थिक संकट के तर्क को अगर सही माना जाए तो फिर बोर्डों, निगमों में अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की फौज की नियुक्ति पर रोक क्यों नहीं लगती? प्रदेश में करीब 50 ऐसे नेताओं को इन संस्थाओं में बिठाया गया। इनके वेतन-भत्तो पर करोड़ों रुपये की फिजूलखर्ची की जा रही है। कर्मचाारियों को यह फिजूलखर्ची रास नहीं आ रही है। वे इस पर सवाल उठा चुके हैं। बावजूद इसके राजनीतिक आधार पर हर सरकारों में ऐसे ओहदेदारों की नियुक्ति होती है। मौजूदा सरकार के कार्यकाल में इनमें से कईयों ने विदेशों की सैर की और सरकारी खर्च पर खूब मजे भी लिये।

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