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अवैध ट्रैकिंग कैंप से खत्म हो रही पहाड़ों की सुंदरता, रूपिन पास में खत्म होने लगे हैं चारागाह

शिमला के रूपिन पास के अलावा, पिन भाभा, पिन पार्वती, खीर गंगा, त्रियुंड, हामटा पास, साच पास बुरान पास आदि में इस तरह अवैध टै्रकिंग कैंप चल रहे हैं।

By BabitaEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 12:06 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 12:06 PM (IST)
अवैध ट्रैकिंग कैंप से खत्म हो रही पहाड़ों की सुंदरता, रूपिन पास में खत्म होने लगे हैं चारागाह
अवैध ट्रैकिंग कैंप से खत्म हो रही पहाड़ों की सुंदरता, रूपिन पास में खत्म होने लगे हैं चारागाह

शिमला, अजय बन्याल। शिमला जिला के रूपिन दर्रे पर पिछले कई साल से अवैध ट्रैकिंग कैंप लग रहे हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई आज तक नहीं गई। यहां पर वन विभाग 125 रुपये से 250 रुपये प्रति टेंट के हिसाब से एक दिन के कैंप लगाने की अनुमति देता है। मगर हकीकत में दिल्ली, उत्तराखंड, बेंगलूर और चंडीगढ़ आदि की ट्रैवल एजेंसियां पर्यटन विभाग की अनुमति के बिना दो-दो माह तक स्थायी तौर पर कैंप स्थापित करती हैं। कुछ लोगों ने इस बाबत वन मंत्री को शिकायत भी की लेकिन अभी तक कार्रवाई का इंतजार है।

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अवैध कैंपों के कारण पर्यावरण भी खतरे में पड़ता नजर आ रहा है। वहीं पर्यटन विभाग को इन गतिविधियों के बारे में पूरी जानकारी है, लेकिन फिर भी कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा रहा है। शिमला के रूपिन पास के

अलावा, पिन भाभा, पिन पार्वती, खीर गंगा, त्रियुंड, हामटा पास, साच पास बुरान पास आदि में इस तरह अवैध टै्रकिंग कैंप चल रहे हैं। 

पिछले साल प्रदेश सरकार ने मिसलेनियस एडवेंचर नियम बनाए थे, इसके लिए विभिन्न विभागों की संयुक्त सोसायटी गठित भी की गई, लेकिन अब यह सोसायटी संयुक्त रूप से कार्य नहीं कर रही है। ट्रैकिंग, कैंप आदि गतिविधियों पर कोई भी निगरानी टीम के माध्यम से नहीं की जा रही है। इसी का फायदा अन्य राज्यों की ट्रैकिंग एजेंसियां उठा रही हैं। साथ ही साथ पर्यटकों की जान भी खतरे में डाल रही हैं। वन भूमि पर लगने वाले इन कैंपों को रेंज आफिसर अनुमति देते हैं, लेकिन गतिविधियों पर चेकिंग नहीं रखते।

खत्म हो रहे हैं चारागाह 

स्थानीय नवयुवक मंडल जाखा ने जिलाधीश शिमला से लिखित में शिकायत की है। अवैध ट्रैकिंग और कैंप के कारण स्थानीय चारागाह समाप्त होने की कगार पर पहुंच गई। असल में यहां पर पर्यटक कई

कई दिनों तक कैंपों में रहते हैं और यहां गंदगी फैला देते हैं। इस

गंदगी को उठाने के लिए न तो ट्रैकिंग एजेंसियों की कोई भूमिका

रहती है और न सही स्थानीय प्रशासन कोई कारवाई करता है।

क्यों चर्चित है रूपिन

रूपिन पास हिमालय पर्वत शृंखला में समुद्रतल से

15, 250 फुट की ऊंचाई पर है। यह एक पारंपरिक

चरवाहे और लंबी पैदल यात्रा मार्ग के लिए जाना

जाता है जो उत्तराखंड के धाला से शुरू होता है

और हिमाचल प्रदेश में किन्नौर जिले के सांगला

और शिमला जिला की सीमा में समाप्त होता है।

हम भी ट्रैकिंग और कैंपिग करते

हैं, लेकिन बिना अनुमति नहीं।

प्रदेश भर में कई ऐसी साइट पर जहां

पर बिना अनुमति के कैंपिंग हो रही

है। नियमों का पालन नहीं हो रहा है।

पर्यावरण को खराब किया जा रहा है।

-नवीन ठाकुर, मालिक, साइविजम

एडवेंचर एजेंसी

अधिक ऊंचाई के स्थल पर वन

विभाग ही देखता है। वन विभाग

की भूमि होगी तो अनुमति उन्हें ही

देनी होगी। चेकिंग करने का अधिकार

भी उन्हीं का है। अभी ऐसे ट्रैकिंग एंव

कैंपिंग को इको टूरिज्म के अंदर लाया

जा रहा है।

-सुरेंद्र जस्टा,

डिप्टी डायरेक्टर पर्यटन विभाग


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