शांता कुमार के जन्मदिन पर विशेषः सरकार जाने पर सिनेमा देखा था इस मुख्यमंत्री ने
भाजपा के वरिष्ठ नेता और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार हार को भी खुशी-खुशी स्वीकारते रहे हैं।
अमूमन देखा जाता है कि किसी भी चुनाव में हार के बाद नेताओं के चेहरे पर पराजय का भाव रहता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के साथ ऐसा कम ही देखा गया है। वे हार को भी खुशी-खुशी स्वीकारते रहे हैं। 1980 में एक बार सरकार चली गई। राज्यपाल को इस्तीफा सौंप कर आए तो किसी ने पूछा कि अब क्या करेंगे। उन्होंने ठहाका लगाते हुए जवाब दिया, ' सिनेमा देखने जा रहा हूं।' लेखक, उपन्यासकार, कवि और दूरदर्शी राजनेता शांता कुमार का व्यक्तित्व कई मायनों में खास है।
वर्ष 2004 की बात है। लोकसभा चुनाव में शांता कुमार की कांगड़ा-चंबा संसदीय सीट से हार हो गई थी। उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी चंद्र कुमार से करीब 17 हजार मत कम पड़े थे। हार के बाद उनके पालमपुर स्थित निवास पर एक करीबी व्यक्ति ने बात छेड़ी। उन्होंने हार पर अफसोस जताना चाहा। इस पर शांता कुमार का जवाब था, कैसी हार। मैं विश्व की सबसे बड़ी अंत्योदय अन्न योजना लागू करके आया हूं। इस योजना में आज देश के दस करोड़ से ज्यादा लोग लाभ उठा रहे हैं। योजना में दो रुपये किलो गेहूं और तीन रुपये किलो चावल गरीब लोगों को मिल रहे हैं। साथ ही, जोड़ा कि अब कालाहांडी और देश के दूसरे हिस्सों से भूख के कारण मरने के समाचार नहीं आते। यह सब अंत्योदय अन्न योजना के कारण हो पाया है।
जब वह खाद्य मंत्री होने के नाते यह योजना बनाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिले तो उन्होंने इसे योजना को बहुत सराहा। जब इसे लागू करने की बात आई तो वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा अड़ गए कि हम तो सबसिडी खत्म कर रहे हैं, इसके लिए ढाई हजार करोड़ रुपये कहां से आएंगे। अटल जी ने मामला तीन सदस्यीय मंत्रियों की कमेटी को सौंप दिया। कमेटी ने भी इसे लागू करने की हामी भरी। वित्त मंत्री फिर अड़ गए। 25 दिसंबर, 2001 को अटल जी के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री सड़क योजना का शुभारंभ हो रहा था, शांता कुमार अंत्योदय अन्न योजना के लागू न होने से निराश थे। वह फिर अटल जी के पास गए। कालाहांडी में भूख से किसानों के मरने की खबर दिखाई आौर कहा, अटल जी, मैं और आप भी इसके दोषी हैं। अटल जी ने पूछा कि क्यों। शांता कुमार ने जवाब दिया कि अनाज कम नहीं हैं, रखने को जगह नहीं है लेकिन किसान भूखे मर रहे हैं। इस पर अटल जी बोले, ' लेकिन वित्त मंत्री....।' इस पर शांता कुमार ने उन्हें याद दिलाया कि वह प्रधानमंत्री होने के नाते इसे घोषित कर सकते हैं। और यह योजना अटल के जन्मदिवस यानी 25 दिसंबर को लागू हो गई। उस समय विपक्ष की नेता सोनिया गांधी ने इस योजना की सराहना की थी। इसके बाद पचास लाख लोग इसमें और शामिल किए गए।
शांता कुमार ने पंचायत के पंच से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का जिम्मा बखूबी निभाया। वह लोकसभा और राज्यसभा सदस्य रहे। स्वामी विवेकानंद से प्रभावित शांता कुमार जोड़-तोड़ की राजनीति से दूर रहे हैं। वर्ष 1980 में हिमाचल में जनता पार्टी की सरकार थी और शांता मुख्यमंत्री। किन्हीं कारणों से उनकी सरकार गिर गई। पार्टी के नेता चाहते थे कि विधायकों को जैसे-तैसे मनाया जाए, पर शांता कुमार अड़ गए कि सरकार गिरने दो किसी से मोलभाव नहीं होगा। वह अपनी पार्टी के फैसलों की भी आलोचना करने से पीछे नहीं रहते। गुजरात दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोले थे, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा था। इसी बात के उनके राजनीतिक विरोधी भी कायल रहे हैं। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह उनके प्रशंसकों में एक हैं।
एक बार वह मुख्यमंत्री थे, उनकी बेटी किसी काम से शिमला से चंडीगढ़ जा रही थी। परिवार के लोग चाहते थे कि बेटी सरकारी गाड़ी में जाए, पर वह नहीं माने और हिमाचल परिवहन निगम की बस में भेजा था। फिजूलखर्ची के खिलाफ रहे हैं। एक बार वह केंद्रीय मंत्री थे। एक उपमंडलाधिकारी उनके साथ-साथ गाड़ी में चल रहे थे। शांता ने उनसे पूछा कि अधिकारी उनके साथ क्यों चले हैं, उक्त अधिकारी को उन्होंने वापस कार्यालय भेज दिया था। वह सिद्धांतवादी नेता होने के साथ-साथ लेखक भी हैं। कई किताबें लिख चुके हैं। साथ ही, समाचार पत्रों में भी लिखते रहे हैं। आज देश-प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा शोधार्थी पर शोध कर चुके हैं। शांता कुमार जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने ही हिंदी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाया।
जब शांता से बोले मुख्य सचिव, सर हिंदी जरूर होगा
बात 1977-78 की है। मैं नया नया मुख्यमंत्री बना था। हिंदी के लिए प्रेम तो था ही। शिक्षा मंत्री बनाए गए मेरे जेल के दिनों के ही मित्र दौलत राम चौहान। दो तीन मंत्री बैठे और विचार किया कि विधानसभा का अधिवेशन है, कुछ नई घोषणा करनी चाहिए। इस क्रम में एक विचार तो यह आया कि ढाई से तीन एकड़ जमीन वालों का मालिया माफ किया जाएगा और दूसरी घोषणा यह थी कि सारा कामकाज हिंदी में किया जाए। तब श्री टो चौहान मुख्य सचिव थे। उनको बुलाया तो वह एक दम सीट से उठ कर खड़े हो गए और बोले, 'सर, दिस इज इंपॉसिबल, यह नहीं हो सकता।' उनका कहना था कि सारे टाइपराइटर अंग्रेजी में हैं और नए टाइपराइटर खरीदने के लिए सरकार के पास बजट नहीं है। मैं नया नया मुख्यमंत्री बना था, सन्न रह गया। विचार चलता रहा। फिर मैंने दौलत राम चौहान से कहा, ' मैं मुख्यमंत्री हूं, आप शिक्षामंत्री हैं। अब देखा जाए जो होना है। मैं घोषणा कर ही दूंगा।'
अगले दिन हमने विधानसभा में घोषणा कर दी। अगले दिन दफ्तर पहुंचे तो पता चला, मुख्य सचिव अवकाश पर हैं। मुझे लगा शायद वह नाराज हो गए हैं। मुझे लगा पता करवाया जाना चाहिए, ऐसे तो काम कैसे चलेगा। मेरे एक अत्यंत करीबी मित्र थे जिन्होंने सलाह दी कि एक दो दिन देख लेते हैं। मुख्य सचिव दूसरे दिन भी अवकाश पर रहे। तीसरे दिन वह आए। उनकी आदत थी कि सैन्य पृष्ठभूमि से होने के कारण आते ही सैल्यूट करते थे। उस दिन भी आए और कड़क सैल्यूट करके बोले, 'सर। हिंदी होगा। हिंदी जरूर होगा।' मैंने पूछा कि फिर टाइपराइटर और बजट का कैसे करेंगे? उनका जवाब था कि टाइपराइटर बदलने की जरूरत नहीं है, केवल की बोर्ड बदलना होगा और उतने पैसे सरकार के पास हैं। और इसके बाद ठहाकों के बीच हमने हिंदी का प्रयोग सरकार में करना शुरू किया। इस तरह हमने हिंदी को सरकारी कामकाज में शुरू किया। मेरा आज भी मानना है कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं होता। शांता कुमार का 12 सितंबर को जन्मदिन है।
(कांगड़ा से लोकसभा सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री ने जैसा नवनीत शर्मा को बताया।)