इस राज्य को अब नहीं रुलाएगा महंगा प्याज, बढ़ती दरों पर भी लगेगी लगाम
डॉ.यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी ने खरीफ के प्याज के लिए 20.43 लाख रुपये के प्रोजेक्ट का सफल ट्रायल किया है।
सोलन, सुनील शर्मा। प्याज की आसमान छूती दरों से निपटने के लिए सोलन स्थित डॉ.यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी ने कारगर उपाय खोज निकाला है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने चंबा जिले में खरीफ के प्याज के लिए 20.43 लाख रुपये के प्रोजेक्ट का सफल ट्रायल किया है। अब इसे पूरे प्रदेश में शुरू करने की तैयार कर ली है।
वैज्ञानिकों ने खरीफ के प्याज की अच्छी पैदावार हासिल करने में सफलता पाई है, जिससे महाराष्ट्र व अन्य राज्यों पर हिमाचल को निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इससे प्याज की बढ़ती दरों पर लगाम लग सकेगी। हिमाचल में प्याज की एक ही फसल उगाई जाती है, जबकि कई राज्यों में इसकी तीन बार फसल उगाई जाती हैं। नौणी विवि के नेरी स्थित औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय में कार्यरत सब्जी वैज्ञानिक डॉ. दीपा शर्मा खरीफ के प्याज के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, नई दिल्ली द्वारा स्वीकृत 20.43 लाख रुपये के प्रोजेक्ट पर कार्य कर रही हैं।
यह प्रोजेक्ट चंबा जिला के विभिन्न स्थानों पर चलाया जा रहा है। इसमें वैज्ञानिक डॉ. राजीव रैना और डॉ संजीव बन्याल सह-प्रमुख अन्वेषक के रूप में कार्य कर रहे हैं। दो साल में चंबा जिला के विभिन्न स्थानों पर 245 प्रदर्शन व 14 प्रशिक्षण कार्यक्रम किए गए। इससे 362 किसानों को लाभ मिला। खरीफ के प्याज की एक क्विंटल गट्ठियों से छह गुणा उत्पादन हो जाता है। यही प्याज 50 रुपये किलोग्राम के हिसाब से बिक जाता है। किसान एक क्विंटल गट्ठियों से छह क्विंटल प्याज प्राप्त कर 30 हजार तक आय प्राप्त कर सकता है।
पैदावार का समय
किसान खरीफ प्याज की फसल की गट्ठियां तैयार करके इसे अगस्त के दूसरे सप्ताह में रोपित कर सकते हैं। अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में हरे प्याज के रूप में भी प्रयोग या बेच सकते हैं। प्याज उस समय बाजार में आता है जब इसके दाम आसमान छूने लगते हैं। यह फसल दिसंबर के प्रथम सप्ताह में तैयार हो जाती है। इससे पहले प्रदेश में दिसंबर में प्याज की नर्सरी तैयार करते हैं, जो मार्च तक तैयार हो जाता है और इसकी खपत सितंबर तक हो जाती है। पूर्ति नहीं होने से इसके बाद इसके दाम बढ़ जाते हैं।
खरीफ के प्याज पर किए इस कार्य को किसान व्यावसायिक स्तर पर अपनाएं। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इसे अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाने का काम करें। निदेशक अनुसंधान डॉ. जेएन शर्मा, नेरी महाविद्यालय के डीन डॉ. पीसी शर्मा और विश्वविद्यालय के अन्य अधिकारियों ने सराहनीय काम किया है।
-डॉ. परविंदर कौशल, कुलपति, औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी।
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