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हर क्षेत्र के विकास के लिए बने एक मॉडल

हिमालयी क्षेत्रों सहित मैदानी क्षेत्रों के लिए ऐसा मॉडल बने जिससे हर वर्ग का विकास हो।

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Dec 2018 09:02 PM (IST)Updated: Tue, 04 Dec 2018 09:02 PM (IST)
हर क्षेत्र के विकास के लिए बने एक मॉडल
हर क्षेत्र के विकास के लिए बने एक मॉडल

राज्य ब्यूरो, शिमला : हिमालयी क्षेत्रों सहित मैदानी क्षेत्रों के लिए ऐसा मॉडल बने जिससे हर वर्ग का विकास हो। परंपरागत मॉडल से कुछ सीखने और प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना तकनीक का इस्तेमाल स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर किया जाना जरूरी है। यह बात पर्यावरणविद एवं पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआइ) शिमला में टेक्नोलॉजी इंटरवेंशन फॉर माउंटेन ईको सिस्टम टाइम एंड लर्न प्रोग्राम के समापन पर कही।

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उन्होंने कहा कि ग्रीन ग्रोथ के लिए आवश्यक है कि तकनीक का इस्तेमाल तो हो लेकिन पर्यावरण और हिमालय को कैसे बचाए जाए, इसे ध्यान में रखा जाए। शहरीकरण की प्रक्रिया और गांवों से शहरों की ओर हो रहे पलायन को रोकने की जरूरत है क्योंकि इससे पर्यावरण असंतुलन बढ़ रहा है। गांवों में हर वर्ग और हर तरह के कार्य का अस्तित्व था जो धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। हिमालय पर बढ़ रहा खतरा पहाड़ों ही नहीं मैदानों और पूरे विश्व के लिए खतरा है। दो दिन तक चली कार्यशाला का मंगलवार को समापन हुआ। अपनाई जाएगी ग्रीन ग्रोथ : डॉ. तेज प्रताप

जीबी पंत कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विवि के उपकुलपति डॉ. तेज प्रताप ने कहा कि ग्रीन ग्रोथ को अपनाया जाएगा। इसके लिए पहाड़ों में माउंटेन एग्रो ईको सिस्टम पर काम करना है। जो भी कार्य किए जाएं, उससे सामाजिक और पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव न पड़े। जो भी तकनीक स्थानीय स्तर पर इजाद की जा रही है, उसे प्रभाव के आधार पर अपनाने की आवश्यकता है। खोज को मूर्त रूप देना जरूरी : कुनाल सत्यार्थी

हिमाचल प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सदस्य सचिव कुनाल सत्यार्थी ने कहा कि स्कूलों, कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में हो रही खोज को मूर्त रूप देने की आवश्यकता है। इसके लिए उन्हें धरातल पर पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है। प्रदेश में पांच विज्ञान ग्राम बनाए जा रहे हैं जिसमें इसका प्रयोग किया जा रहा है। सिकुड़ रहा है हिमालय : डॉ. अपर्णा

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अपर्णा शर्मा ने कहा कि विज्ञान का जिस तरह से विकास और इस्तेमाल हो रहा है, वह प्रकृति के लिए घातक है। यही कारण है कि हिमालय सिकुड़ रहा है जिसने पूरे देश ही नहीं, विश्व की चिंता को बढ़ा दिया है।


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