शहर में कूड़ा फीस जुटाने घर आएंगे सैहब के सुपरवाइजर
जागरण संवाददाता शिमला शहर में घरों से कूड़ा एकत्र करने की एवज में सैहब सोसायटी के
जागरण संवाददाता, शिमला : शहर में घरों से कूड़ा एकत्र करने की एवज में सैहब सोसायटी के सुपरवाइजरों ने आखिरकार कूड़े के बिलों को जुटाने के लिए अपनी सहमति दे दी। नगर निगम के आयुक्त आशीष कोहली की अध्यक्षता में निगम कार्यालय में हुई बैठक में इस पर सहमति बनी। निगम में सैहब सोसायटी के तहत काम कर रहे सुपरवाइजर लगातार ही इसका विरोध कर रहे थे, लेकिन निगम की लोगों से ली जाने वाली गारबेज फीस की राशि लगातार बढ़ रही थी। ये राशि 10 करोड़ के लगभग पहुंच गई थी।
शहर में महज 20 से 30 फीसद लोग ही खुद कूड़ा फीस का भुगतान कर रहे थे। इसलिए निगम ने फैसला लिया था इस काम को दोबारा से निगम के सुपरवाइजरों को दिया जाए। सुपरवाइजर निगम के इस फैसले का विरोध कर रहे थे। उनका तर्क था कि शुरू में भी वे लोग ही इस काम को कर रहे थे, लेकिन कुछ लोगों ने बीच में पैसे जमा नहीं करवाए। इसका खामियाजा सैहब सोसायटी के हर कर्मचारी को भुगतना पड़ा।
उनका कहना है कि शहर में सैहब सोसायटी के कर्मचारी लगातार हर घर से कूड़ा उठाकर उसे साफ रखने का काम करते हैं। इनके काम की बदौलत शहर में किसी भी घर या मुहल्ले में कूडे़ के ढेर नहीं लगे होते हैं। कोरोना काल में भी सैहब सोसायटी के कर्मचारियों ने बेहतर काम किया। इसके बावजूद उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। वहीं निगम प्रशासन का तर्क है कि कलेक्शन किए बगैर इनकी सोसासटी को चलाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए सभी लोगों को रोजगार चलाए रखने के लिए इन्हें अतिरिक्त मेहनत करनी होगी।
आयुक्त आशीष कोहली के कहने पर ये गारबेज की फीस जुटाने के लिए तैयार हो गए हैं। मंगलवार को बैठक के दौरान ही निगम प्रशासन ने इन्हें कलेक्शन के लिए रसीद बुक भी सौंप दी है। निगम के आयुक्त आशीष कोहली ने माना कि बैठक में सुपरवाइजर कलेक्शन के लिए पूरी तरह से तैयार हुए हैं। 90 लाख है मासिक खर्च, 10 करोड़ कूड़ा फीस का बकाया
नगर निगम को सबसे ज्यादा चिता सैहब सोसायटी के कर्मचारियों के मासिक वेतन की सताती है। हर महीने निगम को 90 लाख रुपये सैहब के कर्मचारियों के वेतन से लेकर अन्य खर्च होते हैं। दूसरी तरफ लोगों की तरफ कूड़े पेंडिग फीस की राशि बढ़ती जा रही है। 10 करोड़ से ज्यादा की राशि देय है। इसके न मिलने से निगम को अपने बजट से ही वेतन अदा करना पड़ रहा था।