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तकनीक पूरी, गति पर नियंत्रण भी जरूरी

हिमाचल के लिए यह सुकून की बात है। मैदानी इलाकों की बजाय पहाड़ पर कम धुंध पड़ती है

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 06:55 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 06:55 PM (IST)
तकनीक पूरी, गति पर नियंत्रण भी जरूरी
तकनीक पूरी, गति पर नियंत्रण भी जरूरी

राज्य ब्यूरो, शिमला : हिमाचल के लिए यह सुकून की बात है। मैदानी इलाकों की बजाय पहाड़ पर कोहरे का कोहराम कम होता है। यहां विजिबिलिटी यानी आंखों की दृश्यता बेहतर रहती है। हां, कुछ ऐसे प्वाइंट जरूर हैं जहां हालात कमोबेश मैदानों सरीखे ही रहते हैं। खासकर बांधों के आसपास के इलाकों या जहां वातावरण में नमी अपेक्षाकृत अधिक होती है। मौसम का मिजाज बदलते ही धुंध पहाड़ की चौतरफा घेराबंदी कर लेती है। वैसी स्थिति में वाहन चालकों को सड़कों पर अतिरिक्त एहतियात बरतने की जरूरत रहती है। जानकारों की मानें तो वाहन चालकों को धुंध या कोहरे से बचने के लिए तकनीकी तौर पर तो लैस होना ही है, गति को भी नियंत्रित करना होगा। अगर गति नियंत्रित कर ली तो फिर दुर्घटनाओं से बचाव होगा। केवल मात्र बेहतर तकनीक का इस्तेमाल करने से भी हादसे नहीं रुकेंगे। जानकार धुंध पड़ने की स्थिति में गति नियंत्रण को हादसा रोकथाम का सबसे बड़ा मूलमंत्र मानते हैं। वाहन की गति कितनी हो यह धुंध के घनत्व पर निर्भर करेगा। अधिक धुंध हो तो गति भी उतनी ही कम रखनी होगी। 14 लाख से अधिक हैं वाहन

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राज्य में सभी तरह के वाहनों की संख्या करीब साढ़े चौदह लाख हैं। हर साल एक लाख नए वाहन इनमें और जुड़ रहे हैं। कुल मिलाकर लाखों वाहन सर्पीली सड़कों पर दौड़ रहे हैं। इनके अलावा बाहर से पर्यटकों के वाहन अलग दौड़ते हैं। मैदानी इलाकों से आए वाहन चालकों को पहाड़ों पर ड्राइव का अनुभव नहीं होता है। सामान्य हालात में भी वे दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं। अगर धुंध या कोहरा हो तो फिर दुर्घटना होने की आशंका और बढ़ जाती है। बचाव के तरीके

- वाहन की गति को नियंत्रित करें

- नेचुरल सेंस बनाए रखें

- अतिरिक्त सावधानी बरतें

- वाहन पर फॉग लाइट जरूर लगाएं

-बीम लाइट, रेडियम स्टीकर्स, इंडीकेटर, डे टाइम रनिंग लाइट्स लगाएं

- गुणवत्ता वाली तकनीक का ही उपयोग करें

सावधान! यहां मौत दे रही है न्योता

अगर आप हिमाचल में सड़क मार्ग से सफर कर रहो हों तो जरा सावधान हो जाएं। राज्य में 697 ब्लैक स्पॉट हैं, जहां गाड़ी संभलकर चलानी पड़ती है। ये स्पॉट सीधे तौर पर मौत को न्योता दे रहे हैं। यह डेथ स्पॅाट में तब्दील हो रहे हैं। इन्हें 108 एंबुलेंस सेवा से जुड़ी जीवीके कंपनी ने चिह्नित किया था। इस साल के आरंभ में हुए संबंध में सर्वे हुआ था, लेकिन लोक निर्माण ने इस सर्वे पर अपनी अलग से जांच की। इसमें यह 516 स्पॉट निकले। सुधारे गए 100 से अधिक ब्लैक स्पॉट

भाजप ने प्रदेश में सत्ता संभालते ही ब्लैक स्पॉट सुधारने के निर्देश दिए। इसके लिए अलग से 22 करोड़ 22 लाख रुपये आवंटित किए। इन पैसों को लोक निर्माण विभाग ने मंडलों को भेजा। विभाग का दावा है कि 516 में से 100 से अधिक ब्लैक स्पॉट ठीक कर लिए गए हैं। राष्ट्रीय राजमार्गो के 90 स्पॉट

राष्ट्रीय राजमार्गो के अलग से 90 ब्लैक स्पॉट हैं। इसमें से इस वर्ष करीब 30 ठीक कर दिए हैं। वहीं 17 को नेशनल हाईवे ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के हवाले किया गया है। इन्हें यह ऑथोरिटी ठीक करवा रही है। कहां होते हैं बार-बार हादसे

सर्वे के अनुसार 255 ऐसे स्थान हैं जहा बार-बार सड़क हादसे होते हैं। 45 ऐसे स्थान हैं, जहा पर बहुत ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं। सर्वे के लिए दिसंबर 2010 से दिसंबर 2017 के सड़क हादसों का अध्ययन किया गया। इससे पता चलता है कि प्रदेश में निम्न स्तर की सड़क सुविधा, गति की अनदेखी, ड्राइविंग के साथ शराब पीने की आदत, मोटरसाइकिल को बिना हेलमेट के चलाना जैसे ऐसे तथ्य हैं, जो सड़क दुर्घटनाओं में चोटों और मृत्यु के लिए प्रमुख योगदान दे रहे हैं।

हिमाचल में ज्यादातर धुंध और कोहरा सुंदरनगर, बिलासपुर, शिमला के तारादेवी से शोघी क्षेत्र, कुफरी आदि चुनिंदा प्वाइंट पर होता है। वाहन चालकों को चाहिए कि वे इन स्थानों पर गति बहुत कम रखें। इससे हादसे नहीं होंगे। फॉग लाइट्स के साथ आधुनिक तकनीक का भी प्रयोग करें।

पंकज शर्मा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, टूरिस्ट टै्रफिक एंड रेलवे पुलिस


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