शिमला में लोगों ने एक-दूसरे पर बरसाए पत्थर, जानिए-क्या है मान्यता
नरबलि से शुरू हुई परंपरा पशुबलि के बाद एक-दूसरे पर पत्थर फेंकने के खेल तक सिमट आई है।
जागरण संवाददाता, शिमला। जिला शिमला के हलोग में वीरवार को पत्थर मारने का मेला मनाया। राजधानी शिमला से करीब 30 किलोमीटर दूर हलोग में मेले में खूनी खेल खेला। नरबलि से शुरू हुई परंपरा पशुबलि के बाद एक-दूसरे पर पत्थर फेंकने के खेल तक सिमट आई है। इस खेल को देखने के लिए हलोग में हजारों की भीड़ जमा हुई। एक तरफ राज परिवार के साथ कटैड़ू और तुनड़ु, दगोई, जठोटी खुंद के लोग शामिल थे, जबकि दूसरी टोली में जमोगी खुंद के लोग शामिल थे।
आसपास के लोग मा सती के स्मारक के पास एकत्रित हुए। पूजा के बाद एक दूसरे पर पत्थर फेंकने का खेल शुरू हुआ। खेल उस समय तक चलता है जब तक किसी का सिर लहूलुहान न हो। वीरवार को करीब 20 मिनट तक कटेडू और जमोगी राजवंश के लोग एक-दूसरे को पत्थर मारते रहे। इस दौरान जमोगी खुंद के सुरेश के सिर पर पत्थर लगा और खेल बंद हो गया। सुरेश के सिर से निकले खून से मा भद्रकाली को तिलक लगाया गया। मेला कमेटी के आयोजकों के साथ राजवंश के सदस्यों ने मेला स्थल के नजदीक बने मंदिर में पूजा-अर्चना की।
जानिए, क्या है मान्यता
मान्यता है कि धामी रियासत में मा भीमाकाली के मंदिर में हर वर्ष इसी दिन परंपरा के अनुसार मानव बलि दी जाती थी। यहां पर राज करने वाले राणा परिवार की रानी इस प्रथा को रोकना चाहती थी। इसके लिए रानी यहां के चौराहे में सती हो गई और नई परंपरा शुरू की गई। इस स्थान का नाम खेल का चौरा रखा गया है। धामी रियासत के राज परिवार की अगुआई में सदियों से यह परंपरा निभाई जा रही है। स्थानीय बुजुर्ग मान सिंह ने बताया कि लोग श्रद्धा और निष्ठा से इस इस परंपरा को निभाते हैं। इस पर्व में धामी, सुन्नी, कालीहट्टी, अर्की, दाड़लाघाट, चनावग, पनोही व शिमला के आसपास के क्षेत्र के लोग भाग लेते हैं।