बरलाज के इर्द-गिर्द चला नाटियों का दौर
ठियोग में दीपावली धूमधाम व शातिपूर्वक तरीके से मनाई गई।
सुनील ग्रोवर, ठियोग
ठियोग में दीपावली धूमधाम व शातिपूर्वक तरीके से मनाई गई। स्थानीय देवठियों में सास्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए और भंडारे लगाए। स्थानीय देवठियों चिखड, जनोग, जैस, सरोग, धरेच, नाल, पटरोग व अन्य देवठियों को दिवाली की विशेष पूजा के लिए फूलों व लाइटों से सजाया गया। दिवाली की रात परंपरागत तरीके से देवताओं की पूजा करने के बाद स्थानीय लोक कलाकारों ने सास्कृतिक कार्यक्रम पेश किए। स्थानीय देवठियों में दिवाली की पूजा के लिए बरलाज जोकि अग्नि का स्थानीय नाम है, को जलाया जाता है तथा सभी ग्रामीण बरलाज के इर्द-गिर्द सौहार्दपूर्ण माहौल में एक दूसरे के साथ मिलकर करियाला और नाटियों पर थिरकते हैं। करियाला के आयोजन के बाद सुबह रीति-रिवाजों के अनुसार दिवाली गाई जाती है, जोकि पहाड़ी रामायण का दूसरा स्वरूप होती है। इस अवसर पर ग्रामीण स्थानीय देवता के मंदिर में जाकर चढ़ाई करते हैं और देवता से आशीर्वाद प्राप्त कर आने वाले साल के लिए सुख-शांति की कामना करते हैं।
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चोल्टू नृत्य है खास पहचान
ठियोग की विभिन्न देवठियों में देव परंपरागत व पौराणिक चोल्टू नृत्य का खास महत्व होता है। चोल्टू नृत्य आठ से सोलह मात्राओं के पहाड़ी गीतों पर एक विशेष तरह की पोशाक पहन कर किया जाता है, जिसमें नृत्य देखने और जानने वाला कोई भी व्यक्ति अपनी कला का प्रदर्शन कर सकता है। इस नृत्य को बरलाज के चारों तरफ घूमते हुए एक विशेष तरह की कदमताल के साथ किया जाता है। चोल्टू नृत्य पहाड़ी संस्कृति का एक विशेष मनमोहक नजारा पेश करता है, जिसके कारण आज की युवा पीढ़ी भी इसे सीखने के लिए आगे आ रही है।