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पुरानी पेंशन योजना नहीं होगी बहाल

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि प्रदेश की मौजूदा आर्थिक हालत के चलते मई 2003 के बाद भर्ती हुए कर्मचारियों और अधिकारियों को पुरानी प्रणाली के तहत पेंशन नहीं दी जा सकती। विधानसभा में यह मामला विधायक रमेश धवाला ने उठाया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 27 Mar 2018 03:01 AM (IST)Updated: Tue, 27 Mar 2018 03:01 AM (IST)
पुरानी पेंशन योजना नहीं होगी बहाल
पुरानी पेंशन योजना नहीं होगी बहाल

राज्य ब्यूरो, शिमला : मई 2003 के बाद भर्ती हुए कर्मचारियों और अधिकारियों को पुरानी पेंशन बहाल नहीं होगी। इन्हें पुरानी की बजाय नई प्रणाली से ही अंशदायी पेंशन मिलेगी। पेंशन की टेंशन से 80 हजार से एक लाख मुलाजिमों को कोई राहत नहीं मिल पाई है। सोमवार को भाजपा विधायक रमेश धवाला ने यह मुद्दा विधानसभा में उठाया। उन्हें वामपंथी विधायक राकेश सिंघा का साथ मिला।

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जवाब में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि देश के सभी राज्यों में नई पेंशन प्रणाली स्वीकार की है। इसे एक साथ लागू करने पर कार्य आरंभ हो गया है। हिमाचल के आर्थिक हालात पुरानी पेंशन देने की इजाजत नहीं देते हैं। प्रदेश कठिन दौर से गुजर रहा है। इस राज्य के लिए पुरानी पद्धति अपनाना संभव नहीं है। हरियाणा और केरल में भी ऐसा नहीं हो पा रहा है। सरकार के पास कर्मचारियों ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया है। हां, इस बारे में कमेटी गठित करने पर विचार हो सकता है। जयराम ठाकुर ने कहा कि 2003 के बाद आइएएस अधिकारियों से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए एक जैसी व्यवस्था लागू है। इसमें 10 साल के सेवाकाल के बाद कर्मचारी 25 फीसद पैसा निकाल सकते हैं। रिटायरमेंट के तत्काल बाद जमा पैसे की निश्चित प्रतिशतता में निकाला जा सकता है।

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धवाला ने दिया कमेटी गठित करने का सुझाव

रमेश धवाला ने कहा कि कर्मचारी सेवानिवृत्ति के दो साल बाद ही 60 फीसद पैसा निकाल सकता है। इससे पहले नहीं, जबकि 40 फीसद पैसों में से उसे डेढ़ से दो हजार के बीच पेंशन मिल पाती है। उन्होंने पेंशन से जुड़े मामलों पर कमेटी गठित करने का सुझाव दिया।

20 हजार दिहाड़ीदारों के बारे में क्या सोचा

रमेश धवाला ने कहा कि 2003 से पहले नियुक्त 20 हजार दिहाड़ीदारों को पेंशन देने के लिए सुप्रीमकोर्ट का आदेश आया है। इनके बारे में सरकार क्या सोच रही है? उन्होंने कहा कि हरियाणा में पेंशन पुरानी प्रणाली से मिल रही है।

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सिंघा ने उठाया सवाल

माकपा विधायक राकेश सिंघा ने अनूपूरक सवाल के दौरान कहा कि पेंशन कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा से जुड़ा मसला है। त्रिपुरा में आज तक पुरानी पेंशन मिल रही थी। अब भाजपा की सरकार आई है, आगे क्या होगा वह नहीं जानते, लेकिन यह कर्मचारियों को हक है। विधायकों को पेंशन मिलती है तो फिर कर्मचारियों को भी मिलनी चाहिए। यह राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में आता है, इस कारण इस बारे में कमेटी गठित करें। इसके लिए संसाधन जुटाए जा सकते हैं।

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80 हजार से अधिक कर्मी

प्रदेश में जिन कर्मचारियों, अधिकारियों को पुरानी योजना से पेंशन नहीं मिल रही है, उनकी तादाद काफी ज्यादा है। ऐसे कर्मचारियों को सेवानिवृत्त होने पर अभी डेढ़ से दो हजार, अधिकारियों को चार हजार तक ही पेंशन मिल रही है। कर्मचारी वेतन का दस प्रतिशत नई पेंशन योजना (एनपीएस) में जमा करवाता है। उतना ही पैसा सरकार जमा करवाती है। एनपीएस कर्मचारी महासंघ के पूर्व सलाहकार एलडी चौहान के मुताबिक इस पैसे से बुढ़ापे में कोई गुजारा संभव नहीं है।

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खाली है सरकार का खजाना

प्रदेश सरकार का खजाना खाली है। सरकार पर 45 हजार से अधिक का कर्जा है। इसकी ब्याज चुकाने के लिए सरकार के पास पैसे नहंीं है। इसी साल के उठाए कर्ज के ब्याज चुकता के लिए करीब तीन हजार करोड़ चाहिए। अगर कर्मचारियों की पेंशन बहाल होती है तो उससे हजारों करोड़ का अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ेगा।


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