रक्षाबंधन पर्व: जानिये क्या है भाई को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
रक्षा बंधन भारतीय संस्कृति और परंपराओं के अनुसार भाई बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहन भाई के हाथ में राखी बांधती है और दीर्घ आयु के लिए प्रार्थना करती है।
शिमला, जागरण संवाददाता। श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले रक्षा बंधन त्योहार के लिए शिमला में खूब तैयारियां चल रही है। बाजार राखियों से सजे हुए हैं। शिमला में आचार्य विनोद ने बताया कि रविवार को दोपहर एक बजकर 39 मिनट से शाम चार बजकर 12 मिनट तक शुभ समय रहेगा।
इस समय के बीच भाइयों को रक्षा सूत्र बांधना अति श्रेयस्कर रहेगा। हालांकि इसके बाद भी सूर्य अस्त तक समय ठीक है, क्योंकि इस समय तक सुबह से ही भद्रा काल रहेगा। हालांकि पूर्णिमा तिथि 25 अगस्त को दोपहर बाद तीन बजकर 16 मिनट पर आरंभ हो जाएगी और 26 अगस्त को पांच बजकर 25 मिनट तक रहेगी, लेकिन सुबह के समय भद्रा काल होने के कारण दोपहर बाद ही रक्षा सूत्र बांधना श्रेष्ठ है।
रक्षा बंधन भारतीय संस्कृति और परंपराओं के अनुसार भाई बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहन भाई के हाथ में राखी बांधती है और दीर्घ आयु के लिए प्रार्थना करती है। परंपराओं के अनुसार आज भी गांव में कुल का पुरोहित रक्षा बंधन के दिन रक्षा सूत्र बांध कर त्योहार मनाया जाता है। बाजारों में उमड़ी भीड़ शिमला के लोअर बाजार, राम बाजार, लक्कड़ बाजार में वीरवार को राखियों की दुकानों में भीड़ लगी रही।
महिलाएं रंग-बिरंगे धागे और स्टोन वाली राखियां खरीदते नजर आई। इस बार राखियों की कीमत बढ़ी है। इसके अलावा बच्चों के लिए कई वैरायटी में राखियां बाजारों में हैं। राखी की कीमत पांच से लेकर पांच सौ रुपये तक है। इसके अलावा बाजार रक्षा बंधन के ग्रीटिंग कार्ड और गिफ्ट से भी सज चुके हैं। घर से दूर रहने वाले भाइयों को बहनों ने डाक से राखियां भेजी। मंगलवार और बुधवार को शिमला के प्रधान डाक घर में महिलाओं की भीड़ रही।
रक्षाबंधन से जुड़े रोचक तथ्य
द्वापर युग में द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की कलाई में साड़ी के पल्लू का एक अंश बांधा था और वही उनकी कौरवों से लाज बचाने का माध्यम बना था। कहते हैं कि उसी घटना के प्रतीक स्वरूप तब से अब तक रक्षाबंधन मनाया जाता है। रक्षाबंधन का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी है। इसी दिन अमरनाथ में शिवलिंग अपना पूर्ण रूप धारण करते हैं तथा सफेद कबूतर के जोड़े के भी दर्शन होते हैं जो पुरातन काल से इसी गुफा में निवास करते हैं। कहते हैं कि जब भगवान शिव ने पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे तो वह दो कबूतर ही वहां पर थे जो की अमर कथा के प्रभाव से अमर हो गए और आज भी वह श्रावणी पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन के दिन वहां दर्शन देते हैं।
ऐसे करें पूजा
रक्षाबंधन के दिन प्रातः काल विधिपूर्वक स्नान करने पश्चात पीला कपड़ा, सूत्र व पीली सरसों, केसर, चंदन, अक्षत, सोने का तार का टुकड़ा एवं दूर्वा बांधे और कलश में रख कर रक्षा सूत्र का पूजन करें बहन अपने भाई को रक्षासूत्र अपने इष्टदेव के सामने बांधे। भक्त अपने भगवान को, जिनके पास कोर्इ वाहन है तो वह उसे, छात्र अपनी पुस्तक और लेखनी, कर्मचारी अपने अपनी रोजी के माघ्यम, ग्वाल अपनी गौशाला की दीवार, व्यापारी अपने व्यापार स्थल और तकनीशियन को अपनी मशीन पर रक्षा सूत्र बांधें।