Move to Jagran APP

कभी पहला नहीं बना तीसरा विकल्प

राज्य ब्यूरो, शिमला : प्रदेश में तीसरा राजनीतिक विकल्प पहले स्थान पर नहीं पहुंच पाया। यहां कां

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Dec 2017 07:00 PM (IST)Updated: Sun, 17 Dec 2017 07:00 PM (IST)
कभी पहला नहीं बना तीसरा विकल्प
कभी पहला नहीं बना तीसरा विकल्प

राज्य ब्यूरो, शिमला : प्रदेश में तीसरा राजनीतिक विकल्प पहले स्थान पर नहीं पहुंच पाया। यहां कांग्रेस और भाजपा का ही डंका बजता रहा। 1982 और 1998 में जरूर सत्ता की चाबी तीसरे विकल्प के हाथ आई। 1998 में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस के समर्थन के कारण भाजपा पांच साल सरकार चलाने में सफल रही। 1982 में भी रोचक स्थिति पैदा हुई थी। भाजपा को पहली बार प्रदेश में 29 सीटें हासिल हुई। कांग्रेस को 31 सीटें मिली। दो सीटें कम होने के बावजूद राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दिया। तब नाहन से श्यामा शर्मा और कुटलैहड़ से रणजीत सिंह जनता पार्टी से जीते थे। फायर ब्रांड नेता श्यामा ने भाजपा को समर्थन देने के लिए डिप्टी सीएम बनाने की शर्त रखी, जबकि रणजीत सिंह को नंबर तीन का मंत्री बनाने को कहा। राज्यपाल ने सुबह भाजपा विधायकों को सरकार बनाने का न्योता दिया, लेकिन शाम होते-होते भाजपा नेता शांता कुमार ने सरकार बनाने से इंकार कर दिया। उन्होंने जोड़-तोड़ से सरकार बनाने को पूरी तरह से अस्वीकार किया। तब छह निर्दलीय प्रत्याशी भी विधायक बने थे। इनमें किन्नौर से ठाकुर सेन नेगी, सिरमौर के पच्छाद से गंगूराम मुसाफिर, शाहपुर से मेजर विजय सिंह मनकोटिया, करसोग से मनसा राम, चच्योट से मोतीराम और जोगेंद्रनगर से गुलाब सिंह ठाकुर शामिल थे। उस समय दलबदल विरोधी कानून नहीं था। बिलासपुर जिले से भाजपा विधायक गणू राम कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस की 31 सीटें अपनी थीं। बाद में कांग्रेस ने ही सरकार बनाई। तब सीपीआइ ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था।

loksabha election banner

1967 में भारतीय जनसंघ ने जीती थी 7 सीटें

1967 में भारतीय जनसंघ ने 33 सीटों पर चुनाव लड़ा और सात सीट जीतीं। उस समय सीपीआइ ने दो सीटें और 16 प्रत्याशी निर्दलीय जीते। कांग्रेस के हिस्से 34 सीटें आई। इससे पहले 1951 में बीजेएस खाता नहीं खोल पाया था। किसान प्रजा मजदूर पार्टी को तीन सीटें मिली। तब आठ निर्दलीय प्रत्याशी जीते थे। एक सीट ऑल इंडिया सोशलिस्ट फेडरेशन ने जीत थी। 1972 में भारतीय जनसंघ ने पांच सीट जीतीं। तब सात निर्दलीय जीते थे। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी। इस पार्टी ने 54 सीटें जीती। कांग्रेस केवल 9 सीटों पर जीत पाई। शांता कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। 1990 में भाजपा को 51 सीटें मिलीं। जनता दल को 11 सीट मिलीं। कांग्रेस नौ सीटें पर लुढ़क गई।

स्याह हुई संभावनाएं

1998 में पंड़ित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस पार्टी ने पांच सीटें जीतीं और उनके सहारे भाजपा ने प्रेम कुमार धूमल की अगुवाई में पहली बार पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। 1998 में भाजपा और कांग्रेस की बराबर 31- 31 सीटें आई थीं। इसके बाद से तीसरे विकल्प की संभावनाएं ही स्याह होती रही। इस बार वामपंथी दलों में से सीपीएम ने 14 सीटों और सीपीआई ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा है, जबकि दो जगह निर्दलीय को समर्थन दिया गया। इसमें से कुछ सीटों पर वामपंथी कांग्रेस और भाजपा को कड़ी टक्कर दी है। हालांकि सोमवार को यह मालूम हो जाएगा कि वाम दल इस बार विधानसभा में अपना खाता खोल पाते हैं या नहीं?


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.