पंचायत चुनाव में मतदान के लिए अधिक उत्साह
यादवेन्द्र शर्माशिमला हिमाचल प्रदेश में पंचायत चुनाव में मतदान करने के प्रति लोगों में ज्यादा उत्
यादवेन्द्र शर्मा,शिमला
हिमाचल प्रदेश में पंचायत चुनाव में मतदान करने के प्रति लोगों में ज्यादा उत्साह रहता है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में 57 से 76 फीसद तक मतदान होता है, जबकि पंचायत चुनाव में 75 से 90 फीसद तक मतदान होता है। इसका कारण स्थानीय लोग चुनाव में हिस्सा लेना और उनके सीधे संपर्क में रहना होता है। पंचायत के लिए स्थानीय प्रतिनिधि व रिश्तेदार मतदान करवाने के लिए जोर लगाते हैं। इसी का परिणाम है कि पंचायत में मतदान प्रतिशतता अधिक रहती है। महिलाओं की पंचायत चुनाव लड़ने की प्रतिशतता 50 फीसद से अधिक रहती है इसलिए महिलाएं अधिक संख्या में मतदान करती हैं।
विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मत प्रतिशतता को बढ़ाने के लिए हस्तियों से मतदान के लिए अपील करवाता है। इसी का परिणाम है कि बीते वर्षों के दौरान मत प्रतिशतता के पुराने रिकार्ड टूटे हैं और सबसे अधिक मतदान हुआ है। पंचायत चुनाव के आंकड़े
वर्ष,पंचायत,वार्ड,पंचायात समिति,जिला परिषद,मतदन की तिथियां,मत प्रतिशत
1995,2922,18264,1661,252,1,2 व 4 दिसंबर,..
2000,3037,18546,1658,251,13,15 व 17 दिसंबर,..
2005,3243,---,1676,251,18,20,22 दिसंबर,89
2010,3243,19417,1681,251,28, 30 दिसंबर व 01 जनवरी,75.24
2015,3226,20413,1673,250,01,03,05 जनवरी,82.10
2020,3615,21384,1792,249,17,19 व 21 जनवरी,.. मतदान प्रतिशतता
वर्ष, विधानसभा,लोकसभा
1993-95,71.72,57.58
1998-99,71.23,65.32
2003-04,74.51,59.71
2007-09,71.61,58.35
2012-14,73.51,65.19
2017-2019,75.57,71 ऐसे हुआ पंचायतों का विस्तार
-1954 में केवल 132 पंचायतें थीं।
-1959 में पंचायतों की संख्या 497 हो गई।
-1962 में पंचायतें बढ़कर 638 हो गई।
-1 नवंबर, 1966 को पंजाब के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल में मिलाने के बाद ग्राम पंचायतों की संख्या 1695 हो गई।
-23 अप्रैल,1994 को राज्य चुनाव आयोग का गठन
-2005-2006 में 206 नई ग्राम पंचायतों का गठन किया गया।
-2010 में पंचायतों की संख्या 3243 हो गई।
-17 पंचायतों का विलय नगर पालिकाओं में होने से पंचायतों की संख्या 3226 रह गई हैं। .....................
पहली बार वार्ड सदस्यों ने चुने थे उपप्रधान
-केवल एक ही बार हुई सीधे न चुने जाने की व्यवस्था
-2008 में सरकार ने उपप्रधानों की अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को लिया वापिस पंचायती राज प्रणाली में ऐसा पहली बार हुआ कि उपप्रधानों का चुनाव जनता ने नहीं किया। पंचायत उप प्रधानों का चुनाव जनता द्वारा चुने हुए पंचायत सदस्यों यानी पंचों द्वारा किया गया। इस तरह की व्यवस्था को प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं के 2005 में हुए चुनाव के दौरान लागू किया गया। पंचायती राज प्रणाली में मात्र उपप्रधान का ही पद था जिसके लिए प्रत्यक्ष चुनाव नहीं हुए। हालांकि लोगों के विरोध के बाद 2008 में इस तरह से उपप्रधानों के चुनाव की प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया।
राज्य चुनाव आयोग ने 2005 में तीसरा पंचायती राज संस्थाओं का आम चुनाव करवाया। इसके लिए 3243 पंचायतें थीं। प्रदेश सरकार ने इन चुनाव से पूर्व पंचायती राज अधिनियम 1994 की धार में संशोधन कर उपप्रधानों के जनता द्वारा सीधे चुने जाने को समाप्त कर दिया। नई व्यवस्था को लागू कर वार्ड पंचों के चुने जाने के बाद उनमें से उप प्रधान को चुनने की व्यवस्था को लागू किया। इसके बाद 2010 के पंचायती राज संस्थाओं के आम चुनाव में इस प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया और तब से अब उप प्रधानों का सीधे मतदाता ही मत डाल चयन करते हैं।
.......
2005 में इन पदों के लिए हुआ चुनाव
-3243 पंचायत प्रधान।
-1676 पंचायत समिति सदस्य।
-251 जिला परिषद सदस्य।
..................... आरक्षण का लाभ तभी जब उसी जाति में जन्म हो
राज्य ब्यूरो, शिमला : शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव लड़ने के लिए आरक्षित वर्ग में तभी चुनाव लड़ा जा सकता है, जब जन्म से उसी जाति में हुआ है। यही कारण है कि आरक्षित श्रेणी से चुनाव लड़ने वाली महिलाओं को अपने मायके से जाति प्रमाणपत्र प्राधिकृत अधिकारी यानी तहसीलदार और नायब तहसीलदार से लेकर नामांकन दाखिल करने के समय लगाना होता है। चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार पिता की जो जाति होगी वही बच्चों की जाति मानी जाएगी।
आरक्षित श्रेणी से संबंध रखने वाली युवती द्वारा सामान्य श्रेणी के युवक से विवाह करने के बाद भी वह आरक्षित श्रेणी से चुनाव लड़ सकती है। इसके लिए मायके से जाति प्रमाणपत्र प्रमाणित किया होना चाहिए। इसके अलावा शपथपत्र भी देने होते हैं। नामांकन के लिए जरूरी
-न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष होनी चाहिए।
-आयु प्रमाणपत्र जिससे न्यूनतम आयु का पता चले।
-आरक्षित वर्ग से चुनाव लड़ने के लिए संबंधित आरक्षित श्रेणी का प्रमाणपत्र।
-मतदाता सूची में नाम दर्ज होना चाहिए।
-सरकारी भूमि पर कब्जा न किए जाने का शपथपत्र।
-पंचायत से एनओसी की कोई देनदारी जैसे टैक्स या अन्य कर न हो।
-बैंकों या अन्य देनदारियों को लेकर डिफाल्टर न हो।