एक बार फिर ट्रैक पर दौड़ा भाप का इंजन
इस दौरान रेलवे स्टेशन शिमला पर अधिकारियों व कर्मचारियों ने इस धरोहर के रखरखाव व सुरक्षा की शपथ ली।
शिमला, जेएनएन। लगभग पूरी दुनिया में ट्रैक से उतर चुके सालों पुराने भाप इंजन को उत्तर रेलवे ने पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक बार फिर ट्रैक पर उतारा है। विश्व धरोहर दिवस के उपलक्ष्य पर उत्तर रेलवे ने शिमला में भाप इंजन को ट्रैक पर दौड़ाया। इस भाप इंजन की एक झलक पाने को बड़ी संख्या में पर्यटक व स्थानीय लोग एकत्रित थे। इस दौरान रेलवे स्टेशन शिमला पर अधिकारियों व कर्मचारियों ने इस धरोहर के रखरखाव व सुरक्षा की शपथ ली।
नहीं रहा इंजन में उतना दम
शिमला-कालका रेलवे लाइन बनने के बाद वर्ष 1903 में जब इस नैरोगेज लाइन पर पहली बार रेल चली थी तो केसी-520 नाम के इसी इंजन ने बोगियों को खींचा था। लेकिन, अब इसमें इतना दम नहीं है कि यह कालका से शिमला तक के करीब सौ किलोमीटर के सफर को पूरा कर सके। इस इंजन को सिर्फ अब पर्यटकों के लिए एतिहासिक धरोहर की तरह ही इस्तेमाल किया जाता है।
लोगों में भाप इंजन का क्रेज
इस स्टीम लोकोमोटिव इंजन के क्रेज का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब कभी यह ट्रैक पर नजर आया तो भारी संख्या में सैलानी और स्थानीय लोग इसकी एक झलक पाने के लिए जगह-जगह इकट़ठे हो जाते हैं।
1967 में सेवाएं कर दी थी समाप्त
रेलवे रिकॉर्ड के अनुसार इस इंजन का निर्माण नॉर्थ ब्रिटिश लोकोमोटिव कंपनी ने मात्र 30 हजार रुपये में किया था। वर्ष 1967 में जब डीजल इंजन आया तो इसे ट्रैक से हटाकर इसकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। करीब 30 साल तक यह इंजन सहारनपुर की रेलवे वर्कशॉप में पड़ा रहा। 2001 में रेलवे को जब इसे पर्यटकों के लिए चलाए जाने का विचार आया तो इसे वर्कशॉप से निकालकर रिपेयर किया गया।
इंजन के कलपुर्जे मिलने अब बंद हो गए हैं इसलिए कुछ पुर्जों को जुगाड़ से तैयार किया गया। इसके लिए इंजन को 2008 में अमृतसर की रेलवे वर्कशॉप भेजा गया। इसके बाद पांच दिसंबर 2012 को इसका ट्रायल रन किया गया। 30 मार्च, 2014 को इसे फिर ट्रैक पर उतारा गया। अब इसका उपयोग मात्र धरोहर की तरह ही किया जा रहा है।