अब दो-दो हाथ दिखाएंगे ढाई लाख कर्मचारी
पारदर्शिता व आइटी के दौर में कर्मचारियों को अपने विभाग के भ्रष्टाचार को उठाना महंगा पड़ रहा है। हालात असहिष्णुता सरीखे हो चले हैं।
शिमला, जेएनएन। हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी सरकार बनाने व इसे धूल में मिलाने की हैसियत रखते हैं। करीब 70 लाख की आबादी वाले पहाड़ी राज्य में कर्मचारियों के साथ सरकार चतुराई के बजाय सख्ती बरत रही है। ऐसे में अब प्रदेश कांग्रेस सरकार कर्मचारियों के निशाने पर है। इसकी वजह यह है कि सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को कुचला जा रहा है।
पारदर्शिता व आइटी के दौर में कर्मचारियों को अपने विभाग के भ्रष्टाचार को उठाना महंगा पड़ रहा है। हालात असहिष्णुता सरीखे हो चले हैं। आवाज उठाने पर तबादले का दंश झेलना होता है और नौकरी से भी हाथ धोने पड़ रहे हैं। इससे राज्य सरकार की भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस नीति पर सवाल उठ रहे हैं। कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की है यानी जुर्म किसी का और सजा किसी और को मिल रही है।
प्रदेश में कर्मचारियों का राज्यपाल से मिलना भी गुनाह हो गया है। परिस्थितियां इस कदर बिगड़ी हैं कि राज्यपाल हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रावासों का दौरा करते हैं तो वहां सिस्टम की बदहाली से दंग रह जाते हैं। शिक्षक महासंघ के पांच नेताओं को राज्यपाल आचार्य देवव्रत से मुलाकात करना भी महंगा साबित हुआ है। आरोप है कि इन शिक्षकों ने राज्यपाल से मुलाकात करने के लिए सरकार की इजाजत नहीं ली। इस कारण इन्हें चार्जशीट किया गया है। इनमें डॉ. मामराज पुंडीर, राजेंद्र वर्मा, विनोद सूद, भीष्म सिंह व नरेंद्र कपिल शामिल हैं। इनकी तैनाती सोलन जिले में है। उच्च शिक्षा निदेशालय ने इन्हें चार्जशीट किया और संयुक्त निदेशक एमएल आजाद को जांच अधिकारी बनाया गया है।
उन्होंने 11 अक्टूबर को इन पांचों को तलब किया है। इन पर आरोप है कि ये शिक्षक 13 अगस्त को राजभवन में राज्यपाल से मिले और सरकार की शिक्षा नीति की गलत तस्वीर पेश की। शिक्षकों का कहना है कि उन्होंने इस तारीख को मुलाकात की ही नहीं। पिछले साल दो अक्टूबर को दाड़लाघाट में राज्य सम्मेलन हुआ था जिसमें राज्यपाल मुख्य अतिथि थे। डॉ. मामराज का कहना है कि तत्कालीन निदेशक दिनकर बुराथोकी ने एक्सटेंशन के चक्कर में उन्हें गलत तरीके से चार्जशीट किया। उनका कोई कसूर नहीं था।
वहीं, हिमाचल पथ परिवहन निगम के भारतीय मजदूर संघ के प्रदेशाध्यक्ष शंकर सिंह ठाकुर मुद्दों पर सरकार से टकराने का माद्दा रखते हैं। उनकी अगुवाई में 16 जून 2016 को निगम के कर्मचारियों ने हड़ताल की। इससे सरकार भी हिल गई। परिवहन मंत्री जीएस बाली की पहल पर 29 कर्मचारी नेताओं को डिसमिस कर दिया गया। इसमें से 28 ने सरकार ने लिखित माफी मांगी लेकिन शंकर सिंह मंत्री के सामने झुकने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने माफीनामा देने से इन्कार कर दिया और तय किया कि वह निगम के कर्मचारियों की मांगों को लेकर सड़क से भी संघर्ष जारी रखेंगे। सरकार ने उनकी सेवाएं बहाल नहीं की हैं।
-रमेश सिंगटा, शिमला
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