सिविल अस्पताल ठियोग के आवासीय परिसर में जलाई दवाएं
मरीजों को छोटी सी बीमारी के लिए भी अस्पतालों में दवाएं मयस्यर नहीं हो पा रही हैं। जबकि ठियोग के सिविल अस्पताल के आवासीय परिसर में लाखों की कीमत की दवाएं जला दी गईं। इन्हें एक्सपायरी डेट का बताया गया। इस संबंध में पुलिस ने कानूनी कारवाई आरंभ कर दी है। जांच के बाद ही पता चल सकेगा कि ये दवाएं एक्सपायरी थी कि नहीं? इसे लेकर स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिर इन दवाओं को जलाने की नौबत क्यों आई। विभाग ने जांच बैठाने की बात कही है। जांच में पता चलेगा कि इसके पीछे कौन लोग असल में जिम्मेवार हैं।
सुनील ग्रोवर, ठियोग
सिविल अस्पताल ठियोग के सरकारी आवासीय परिसर में दवाएं जलाने का मामला सामने आया है। क्षेत्र की 50 पंचायतों के लोगों की सेहत सुधारने के लिए इन दवाओं को आवंटित करने की बजाय इन्हें आग के हवाले किया गया। अस्पताल में रोजाना 250 से 300 मरीज ओपीडी में आते हैं। लेकिन अस्पताल के आवासीय परिसर में आग भी लगी और धुआं भी उठा। केवल दवाएं ही नहीं जली, जहरीला धुआ उठा। जनता को सेहत के प्रति जागरूक करने वाला महकमा खुद बेपरवाह बना रहा।
बताया जा रहा है कि लाखों की कीमत की ये दवाएं एक्सपायरी डेट की थीं। हालांकि अभी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पा रही है। पूरे मामले को लेकर पुलिस में शिकायत हुई है। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। जली हुई दवाएं कब्जे में ले ली हैं। यह सरकारी आवास अस्पताल परिसर की पिछली तरफ और छैई धाला आवासीय कॉलोनी में है। वहां इन दवाओं को जलाए जाने के बाद चारों तरफ बदबू फैली। आस्था फाउंडेशन के चेयरमैन बीआर भारद्वाज के अनुसार उनका आवास इस भवन के बिलकुल सामने है। यह घटना शुक्रवार दोपहर दो बजे की है जब सरकारी आवास की चिमनी से बदबूदार धुआं निकलता देखकर अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर को इसकी सूचना दी गई। उन्होंने आवास में कूड़ा जलाने की बात कही। लेकिन दो घंटे बीत जाने के बाद भी धुआं निकलना बंद नहीं हुआ और बदबू आने लगी। आस्था फाउंडेशन के उपाध्यक्ष सुशील शर्मा ने इस संबंध में पुलिस को सूचित किया। पुलिस की मौजूदगी में इस आवास का दरवाजा खुलवाया गया। वहां अस्पताल का चतुर्थ श्रेणी कर्मी लाखों रुपये की दवाइयां जला रहा था। क्या हैं आरोप
आस्था फाउंडेशन के उपाध्यक्ष सुशील शर्मा का आरोप है कि अस्पताल प्रशासन के इशारे पर ही इन दवाइयों को जलाया गया। उन्होंने कहा कि आवासीय कॉलोनी में दवाइयों को जलाना गैरकानूनी है। इस कारण आसपास के वातावरण में संक्रमण फैल सकता है। उन्होंने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया कि विभाग निजी दुकानदारों को फायदा पहुंचाने के लिए मरीजों को दवाइयां उपलब्ध नहीं करवाता है। इस कारण मरीजों को महंगी दवाइयां मजबूरन निजी दुकानों से खरीदनी पड़ती हैं। ठियोग पहुंचने पर होगी जांच
मुझे इस मामले की जानकारी नहीं है। मैं शहर से बाहर था। ठियोग अस्पताल पहुंचने के बाद ही इस मामले की जांच की जाएगी।
दलीप टेक्टा, प्रभारी, सिविल अस्पताल ठियोग जांच के बाद सामने आएगी असलियत
अस्पताल के आवासीय परिसर में दवाएं जलाई गई हैं। दवाएं लाखों की थीं या ज्यादा की, एक्सपायरी डेट की कितनी थीं, इसकी जांच की जा रही है। लेकिन दवाएं जली हैं जिन्हें कब्जे में लिया गया है। इस मामले में किसकी मिलीभगत है, इसका पता जांच पूरी होने के बाद चलेगा।
लायक राम चौहान, अतिरिक्त एसएचओ, ठियोग दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो
दवाएं जलाना गंभीर मामला है। कई बार दवाओं का स्टॉक देरी से आता है। यह लापरवाही का मामला है। इसमें दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
सत्यवान पुंडीर, संयोजक, जनस्वास्थ्य अभियान बीएमओ करेंगे मामले की जांच
इस संबंध में जानकारी नहीं है। अगर दवाएं जलाई गई हैं तो यह गंभीर मामला है। बीएमओ को मामले की जांच का आदेश दिया है।
नीरज मित्तल, सीएमओ शिमला
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अब सेहत के सवाल पर गड़बड़झाले की बू
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नोट : कृपया खबर में 16 अप्रैल को शिमला पुलआउट के पेज चार पर प्रकाशित सेहत के सवाल पर सोया सरकारी तंत्र खबर की क्लीपिंग लगा लें।
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-बड़ा सवाल : क्यों आने दी दवाएं जलाने की नौबत
-मरीजों को क्यों नहीं दी गई दवाएं
-बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए हो रहा संघर्ष
-ऐसे में मरीजों की सेहत कैसे सुधरेगी
रमेश सिंगटा, शिमला
बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने की आस में मरीज अस्पताल आता है। लेकिन इलाज के नाम पर अस्पतालों में सुविधाएं ज्यादा नहीं हैं। आलम यह है कि मामूली बीमारी के लिए दवाएं खुले बाजार से लेनी पड़ती हैं। सिविल अस्पताल ठियोग के आवासीय परिसर में दवाएं जलाने के मामले ने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी है। बड़ा सवाल यह है कि दवाएं जलाने की नौबत क्यों आने दी और ये दवाएं मरीजों को क्यों नहीं दी गई? जब लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पाने के लिए सड़कों पर संघर्ष करना पड़ रहा हो, दवाएं जलाने के मामले में गड़बड़झाले की बू आ रही है। ऐसे में मरीजों की सेहत कैसे सुधरेगी। बेशक स्वास्थ्य विभाग इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा हो लेकिन इससे शक तो पैदा हो ही रहा है। -क्या उठे सवाल
- दवाएं क्यों जलाई गईं?
-चतुर्थ श्रेणी कर्मी क्या अपने स्तर पर अकेला ऐसा कर सकता है? जागरण ने उठाया था मुद्दा
सिविल अस्पताल ठियोग की व्यवस्थागत खामियों का मुद्दा दैनिक जागरण ने प्रमुखता से उठाया था। 16 अप्रैल को सेहत के सवाल पर सोया सरकारी तंत्र शीर्षक से खबर प्रकाशित की गई थी। दवाएं जलाने के मामले से तंत्र की लापरवाही सामने आई है।