मां-बाप ही बना रहे बच्चों को कुपोषित
मशीनी युग में रहने वाली 90 फीसदी माताओं को मालूम ही नहीं पैदा होने के बाद बच्चों को क्या दिया जाए।
शिमला, यादवेन्द्र शर्मा। मशीनी युग में रहने वाली 90 फीसदी माताओं को मालूम ही नहीं पैदा होने के बाद बच्चों को कब-कब क्या खिलाना चाहिए। पोषाहार की जानकारी न होने से बच्चों को मां-बाप ही कुपोषित बना रहे हैं। यह खुलासा अस्पताल में बच्चों के उपचार को आने वाले मां-बाप की काउंसिलिंग के दौरान हुआ है। वह यह मानते हैं कुछ भी खाए कम से कम पेट में तो जाएगा। एकल परिवार ने बच्चों को कुपोषण के गर्त में धकेल दिया है।
मां-बाप छोटे बच्चों को पैदा होते ही बिस्कुट, कुरकुरे, चिप्स की आदत डाल रहे हैं। ऐसे में बच्चों की आदतें बदल रही हैं और वह कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। बच्चों के कुपोषित होने का पता लगाने के लिए तीन मुख्य आधार हैं जिनसे पता लगाया जाता है। बच्चे का वजन और उसकी लंबाई जांची जाती है जिसके आधार पर पता चलता है कि बच्चा कुपोषण का शिकार है या फिर मोटापे से ग्रसित। एक स्वस्थ नवजात शिशु का वजन जन्म के समय 2.5 किलोग्राम या उससे ज्यादा हाता है।
बीमारियों के साथ मानसिक तौर पर अविकसित कुपोषण का शिकार बच्चों को संक्रमण का सबसे अधिक खतरा रहता है। इसके साथ मानसिक तौर पर भी पूर्ण विकास नहीं होता। ऐसे बच्चे कद काठी में कमजोर, पढ़ाई में कम ध्यान देने वाले, हर चीज में कम रुचि लेने वाले और कम बौद्धिक विकास होता है।
तीन वर्ष तक हर माह वजन और कद मापना जरूरी बेहतर विकास के लिए बच्चे के पैदा होते ही उसका वजन और लंबाई जांचना जरूरी है। तीन साल तक हर माह बच्चे का वजन और कद जांचना जरूरी है जिससे उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा सके। मुफ्त वजन की सुविधा हर सरकारी अस्पताल और आंगनबाड़ी केंद्र में उपलब्ध है। तीन से छह साल की आयु तक बच्चे का तीन महीने में एक बार वजन करवाना जरूरी है।
प्रदेश की 90 फीसदी के करीब माताएं ऐसी हैं जिन्हें पता ही नहीं होता कि बच्चों को आखिर डाइट में देना क्या है। बच्चों को शुरू में चिप्स, कुरकुरे आदि देने से वह सब्जियां और दालें नहीं खाते हैं और मां-बाप भी यही सोचते हैं कि चिप्स आदि खाने से कुछ तो पेट में जाएगा। यह सोच बच्चों को कुपोषित बना रही है। डॉ. मंगला सूद, शिशु रोग विशेषज्ञ, स्वास्थ्य विभाग