Happy Lohri 2020: जानें लोहड़ी का शुभ मुहूर्त और कैसे मनाया जाता है ये पर्व
Lohri 2020 लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी को मनाया जा रहा है क्या आप जानते हैं ये पर्व क्यों मनाया जाता है और आज इसका शुभ मुहूर्त क्या है।
शिमला, जेएनएन। शिमला में सोमवार 13 जनवरी को लोहड़ी का पर्व मनाया जाएगा। रविवार को लोगों ने इस लोहड़ी की जमकर खरीदारी की। लोहड़ी जलाने का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 40 मिनट से शाम 7 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इस दौरान लोग गली मोहल्लों और अपने घरों के आंगन में लोहड़ी जला, नाच गाकर लोहड़ी का पर्व मनाएंगे।
कब मनाया जाता है ये पर्व
लोहड़ी का पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास की अंतिम रात में मनाया जाता है। शिमला में लोहड़ी छुट्टी होने के कारण शिमला में रविवार को सुबह से ही लोगों ने जमकर खरीदारी की, बाजार लोहड़ी के सामान से सजे हुए थे। हर जगह मूंगफली, मेवे, गजक से सजी दुकाने और रेडिय़ा दिख रही थी। लोहड़ी के लिए लोगों ने खूब खरीदारी की। शिमला में हुए हिमपात के बाद पांचवें दिन भी यातायात बहाल हो जाने से यहां के लोअर बाजार में काफी लोगों ने खरीदारी की।
लोग तिल, गजक, लड्डू, मेवे की जमकर खरीदारी कर रहे थे। ठंड के मौसम में गर्म तासीर की खाद्य सामग्री लोग खूब खरीद रहे हैं। महिलाएं घर में ही व्यंजन और मिठाइयां बनाने के लिए सूखे मेवों की जमकर खरीदारी कर रही हैं।
बाजार में तिल-गुड़ से बनी मिठाईयां 200 रुपये से एक हजार रुपये प्रति किलो तक बेची जा रही हैं। मिठाईयों की रेंज में तिल-गुड़ के अलावा काजू, बादाम व पिस्ता से बनाये गये मीठे व्यंजन भी खूब बेचे जा रहे हैं। वहीं किशमिश, मूंगफली, चने और तिल से बनी गजक की भी खूब मांग है, ये 100 रुपये से 500 रुपये प्रति किलो तक बेची जा रही है। हालांकि बीते वर्ष के मुकाबले इस वर्ष महंगाई बढ़ गयी है लेकिन लोग पर्व पर खरीदारी करने में बिलकुल भी संकोच नहीं कर रहे हैं।
कैसे मनायी जाती है लोहड़ी
लोहड़ी के मौके पर लोग एक दूसरे के घर जाते हैं और नाच गाकर पर्व मनाते हैं इस दिन दुल्ला भट्टी के साथ पंजाबी लोक गीतों को गाये जाने की परंपरा है। लोग ढोल बजवाकर नाच गाना करते हैं। लकडिय़ों को घर के आगे एकत्रित कर लोहड़ी जलायी जाती है, इस अग्नि में तिल, गुड़ और मक्का की आहूति देकर पूजा जाता है। सभी नाच गाकर लोहड़ी का पर्व मनाते हैं।
सती के समर्पण का प्रतीक है ये पर्व
तत्तापानी के आचार्य जय किशन के अनुसार शास्त्रों में दर्ज एक पौराणिक कथा में बताया गया है कि राजा दक्ष की पुत्री सती ने अपने पति भगवान शंकर के अपमान से दुखी हो अपना जीवित शरीर अग्नि को सौंप दिया था। उनकी याद में ही इस पर्व पर अग्नि जलाई जाती है और इसी अग्नि में गुड़, मूंगफली, तिल समेत सूखे मेवों की आहुति दी जाती है। लोहड़ी के बाद मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है। इस दिन लोग माघी स्नान करते हैं और भगवान से सुख और समृद्धि की कामना करते हैं।
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