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दिल्ली पुलिस के समर्थन में उतरी हिमाचल पुलिस, 10 नवंबर को करेगी भूख हड़ताल

दिल्लीे में पुलिस कर्मियों व वकीलों के बीच चल रहे विवाद में अब हिमाचल पुलिस भी कूद पड़ी है।

By Jagran News NetworkEdited By: Published: Wed, 06 Nov 2019 06:27 PM (IST)Updated: Wed, 06 Nov 2019 06:27 PM (IST)
दिल्ली  पुलिस के समर्थन में उतरी हिमाचल पुलिस, 10 नवंबर को करेगी भूख हड़ताल
दिल्ली पुलिस के समर्थन में उतरी हिमाचल पुलिस, 10 नवंबर को करेगी भूख हड़ताल

 शिमला, जेएनएन। दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में वकीलों व पुलिसकर्मियों के बीच हुए विवाद के बाद पुलिस कर्मचारियों को देशभर से समर्थन मिल रहा है। अब हिमाचल पुलिस के कर्मचारी भी अपने सहयोगियों के बचाव में कूद पड़े है। दिल्लीं पुलिसकर्मियों के समर्थन में हिमाचल के पुलिस कर्मचारियों ने भी भूख हड़ताल करने का निर्णय लिया है। पुलिस कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए हिमाचल पुलिस के कर्मचारी 10 नवंबर को एक दिन का उपवास रखेंगे।

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यह ऐलान पुलिस कल्याण संघ के प्रदेशाध्यक्ष रमेश चौहान ने किया है। उन्होंने कहा कि संगठन के पदाधिकारी, सदस्य आठ नवंबर को दिल्ली जाएंगे। वहां पर जाकर पुलिस के आंदोलन में शामिल होंगे। वकीलों के साथ हुई हिंसक झड़प के बाद की गई कार्रवाई के विरोध में मंगलवार को दिल्ली पुलिस के जवान सड़कों पर उतर आए थे। रमेश चौहान ने दावा किया कि उपवास सभी 18 हजार कर्मी रखेंगे। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि कांस्टेबल से लेकर इंस्पेक्टर रैंक के कर्मियों पर भविष्य में अन्याय न हो। खाकी के साथ पूरे देश के जवान खड़े होंगे। बेशक घटना दिल्ली में घटी है। जब पुलिस वाले ही सुरक्षित नहीं है तो वे लोगों की सुरक्षा कैसे करेंगे?
 
10 से 14 घंटे करते हैं ड्यूटी
हिमाचल के पुलिस कर्मियों को भी वीकली ऑफ नहीं मिल पाता है। काम के बोझ तले वे कुंठा, तनाव के शिकार हो रहे हैं। पुलिस कल्याण संघ वीकली ऑफ की कानूनी जंग रहा है। अभी मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इसे लेकर संघ ने ही केस दायर कर रखा है। लंबे अरसे से न्याय की मांग की जा रही है। संघ के मुताबिक करीब 90 फीसद फोर्स को वीकली ऑफ नहीं मिल पाता है। खासकर थाने और चौकियों के हाल तो और भी बेहाल है। लोग खाकी वर्दी धारियों ने चौबीसों घंटे ड्यूटी की उम्मीद रखते हैं। अवकाश न मिलने की सूरत में इनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है। लेकिन अनुशासननात्मक फोर्स होने के कारण अपने हितों की आवाज बुलंद नहीं कर पाते हैं। इन्हें अपने अफसरों के हरेक हुक्म का पालन करना होता है।

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