हिमाचल में पांच से 35 सेंटीमीटर तक गिरा भूजलस्तर
गिरते जलस्तर को उठाने और वर्षा जल संचय के लिए प्रदेश सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी नतीजे संतोषजनक नहीं हैं।
शिमला, यादवेन्द्र शर्मा। हिमाचल प्रदेश में अन्य राज्यों की तरह जलस्तर में लगातार गिरावट आ रही है। यह गिरावट पांच से 35 सेंटीमीटर तक दर्ज की गई है। जलस्तर में गिरावट वर्षा व बर्फबारी सहित जल के जरूरत से ज्यादा मात्रा में दोहन, औद्योगीकरण व बढ़ती आबादी के कारण है। हिमाचल की कालाअंब घाटी में स्थिति और भी ज्यादा खराब है। हालांकि वर्षा न होने के दौरान यह गिरावट ज्यादा दर्ज की गई है। प्रदेश का सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग का हाइड्रोलॉजी विभाग इस पर शोध कर रहा है। जलस्तर में आ रही लगातार गिरावट का ही नतीजा है कि 70 फीसद परंपरागत जलस्रोत सूख चुके हैं।
गिरते जलस्तर को उठाने और वर्षा जल संचय के लिए प्रदेश सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी नतीजे संतोषजनक नहीं हैं। पहाड़ से बहते वर्षा के जल को नहीं रोका जा सका है। जलस्तर को उठाने के लिए प्रदेश के चार विभाग योजनाओं को संचालित कर रहे हैं। इनमें ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज, वन, कृषि और सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य शामिल हैं। इन विभागों में समन्वय की कमी की कारण करोड़ों रुपये व्यय करने के बाद भी कुल वर्षा का दस से 13 फीसद वर्षा जल ही जमीन के अंदर जा रहा है। बाकी पानी वैसे ही बह रहा है जो तबाही का कारण बन रहा है।
31 की जरूरत, मिल रहा 13 फीसद पानी केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक सिंचाई के लिए सबसे ज्यादा 91 फीसद भूमिगत जल का दोहन किया जाता है। बाकी का इस्तेमाल घरेलू और औद्योगिक जरूरतों को पूरा करने के लिए होता है। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार वर्षभर में होने वाली कुल वर्षा का कम से कम 31 फीसद पानी धरती के भीतर रिचार्ज के लिए जाना चाहिए।
उसी स्थिति में बिना हिमनद वाली नदियों और जलस्नोतों से लगातार पानी मिल सकेगा। लेकिन एक शोध के मुताबिक कुल बारिश का औसतन 13 फीसद पानी ही धरती के भीतर जमा हो रहा है। 1997 में देश में जलस्तर 550 क्यूबिक किलोमीटर था, लेकिन ताजा अनुमान के मुताबिक 2020 तक यह जलस्तर गिरकर 360 क्यूबिक किलोमीटर रह जाएगा।
सात घाटियों के आधार पर हो रहा निरीक्षण प्रदेश में सात घाटियों के आधार पर करीब 77 स्थानों पर सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग का हाइड्रोलॉजी विभाग निरीक्षण कुओं से अध्ययन कर रहा है। इन सात घाटियों में पांच जिलों के क्षेत्रों को ही मॉनिटर किया जा रहा है। इनमें ऊना में 21, मंडी में सात, कांगड़ा 25, सोलन 14 और सिरमौर में 10 स्थानों पर निरीक्षण किया जा रहा है। प्रदेश की सात सात घाटियों में इंदौरा, नूरपुर, बल्ह, पांवटा, कालाअंब, नालागढ़ और ऊना शामिल हैं। हर छह घंटे के बाद वहां से रिपोर्ट आती है कि जलस्तर की क्या स्थिति है। यह निगरानी मैदानी क्षेत्रों में ही की जा रही है, पहाड़ी क्षेत्रों में इसका कोई पैमाना नहीं है। भूजलस्तर में लगातार कमी आ रही है। सात घाटियों के आधार पर निगरानी की जा रही है। कालाअंब घाटी में स्थिति सबसे खराब है। वहां उपलब्ध जल से अधिक मात्रा में दोहन किया जा रहा है।
जलस्तर बढ़ाने की दिशा में कुछ विशेष प्रभाव नहीं पड़ रहा है।
-अनिल बाहरी, प्रमुख
अभियंता, आइपीएच विभाग
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