नोटिस जारी करने से पूर्व मामले का निरीक्षण करें अधीनस्थ न्यायालय
प्रदेश उच्च न्यायालय ने आधारहीन दीवानी दावा दायर करने पर प्रतिवादी को कॉस्ट लगाई है।
जागरण संवाददाता, शिमला : प्रदेश उच्च न्यायालय ने आधारहीन दीवानी दावा दायर करने पर प्रतिवादी मदन लाल शर्मा पर 25000 रुपये की कॉस्ट लगाई है। न्यायालय ने रजिस्ट्रार (रूल्स) को आदेश जारी किए कि वह यह सुनिश्चित करें कि प्रदेश के न्यायालयों में दायर किए जाने वाले सभी वाद, याचिका व आवेदन बिना किसी प्रावधान के दर्ज न हों।
न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने आदेश में स्पष्ट किया कि अधीनस्थ न्यायालयों का दायित्व है कि वे किसी भी मामले पर नोटिस जारी करने से पूर्व निरीक्षण कर लें कि मामला कानून के प्रावधानों के अनुरूप बनता है या नहीं ताकि दूसरे पक्ष को बेवजह लंबे समय तक मुकदमेबाजी में न फंसना पड़े। न्यायालय ने यह आदेश आइएएस अधिकारी मानसी सहाय द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के बाद पारित किया। उन्होंने सिविल कोर्ट बिलासपुर द्वारा सिविल सूट में पारित आदेश को चुनौती दी थी। इसके तहत मदन लाल शर्मा द्वारा दायर दीवानी मुकदमे में उन्हें नोटिस जारी किए गए थे। प्रतिवादी ने सिविल सूट के मुताबिक सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मानसी सहाय के समक्ष तीन अपील दाखिल की थीं। उपायुक्त बिलासपुर के पद पर रहते हुए उन्होंने बतौर अपीलेट अथॉरिटी अपीलों पर फैसला पारित करना था। सिविल सूट में दिए तथ्यों के अनुसार अपीलेट कोर्ट ने मदन लाल शर्मा को अधिवक्ता नियुक्त करने से मना कर दिया था। इस कारण उसने प्रार्थी के खिलाफ एक लाख का डैमेज सूट दाखिल किया था। सिविल जज बिलासपुर ने सिविल सूट पर मानसी सहाय को नोटिस जारी किया। इससे असंतुष्ट मानसी सहाय ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल की थी। प्रार्थी के अनुसार उनके खिलाफ सिविल सूट मेंटेनेबल नहीं था। सिविल सूट में कोई भी प्रोविजन अंकित नहीं किया गया था। न्यायालय ने प्रार्थी की याचिका को मंजूर करते हुए प्रतिवादी पर 25000 रुपये की कॉस्ट लगाई है क्योंकि न्यायालय के अनुसार प्रतिवादी ने बेवजह प्रार्थी को मुकदमेबाजी में घसीटने की कोशिश की थी।