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तीन सौ साठ दिन का सफेद हाथी

कांग्रेस ने हिमाचल में दूसरे विधानसभा परिसर की जरूरत महसूस की लेकिन इस मुद़दे को भावनात्‍मक बना दिया गया।

By BabitaEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 09:16 AM (IST)Updated: Thu, 13 Dec 2018 09:16 AM (IST)
तीन सौ साठ दिन का सफेद हाथी
तीन सौ साठ दिन का सफेद हाथी

शिमला, नवनीत शर्मा। कुछ सवाल जायज होते हैं और समय की स्याही से लिखे जाते हैं लेकिन बहुत बार नीयत के हाथ उन्हें हाशिए पर धकेल देते हैं। यह सोचे बगैर कि हाशिये पर वही लिखा जाता है जो मुख्य कथ्य की तरह अहम होता है... कई बार उससे भी अधिक महत्वपूर्ण होता है। कांग्रेस ने इस छोटे से राज्य में दूसरे विधानसभा परिसर की जरूरत महसूस की और इस मुद्दे को भावनात्मक बना दिया। तब का विपक्ष इसे पैंतरा भी कहता था लेकिन सच यह है कि भाषा और भंगिमा भूमिका के साथ ही बदल जाती हैं। क्योंकि जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा जिला कांगड़ा है, सर्वाधिक पंद्रह विधायक भी यहीं से हैं, इसलिए त्रिगर्त के गर्तों को पाटने की कोशिश जरूरी प्रतीत हुई होगी।

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रिकॉर्ड समय में बने तपोवन विधानसभा परिसर में विधायिका आने लगी। धौलाधार से संवाद करते वातावरण में एक भवन तैयार हो गया। लेकिन इस विशाल, दिव्य और भव्य भवन की सूरत और सीरत जाने क्यों तीन सौ साठ दिन के हाथी से मिलती है। यह आंकड़ा कुछ कम या अधिक भी हो सकता है क्योंकि कई बार सत्र चार दिन का होता है और कई बार छह दिन का। पांच का भी होता है। 

बाकी सारा साल इसके फव्वारे रौनक के इंतजार में धैर्य धरे बैठे रहते हैं। सरकारी गाड़ियों की चहल पहल, कोट की बात मानती टाई और प्रदेश का भविष्य फाइलों में थामे अफसरों की दौड़ धूप चंद दिन ही दिखाई देती है।

लेकिन क्योंकि सबके पास विवेक है, कोई निजी सोच और अनुभव भी होता है, इसलिए हर पक्ष में एक विपक्ष होता है और हर विपक्ष में एक पक्ष होता है। प्रदेश के पर्यावरण पर रहम खाकर कागजों का खर्च बचाने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष बृज बिहारी लाल बुटेल ने सबसे पहले इस बात को कहने की हिम्मत की कि यह सफेद हाथी है। उनकी बात उनकी सरकार ने कितनी सुनी, यह इतिहास है। सुनी जानी चाहिए थी बुटेल की बात। एक सुशिक्षित और सुलझे हुए राजनेता का बयान था।

त्रासदी यह भी है कि हर अच्छे बयान को उनका निजी विचार कह दिया जाता है और संगठन या सरकार अपने लिए सुरक्षित रास्ता ढूंढ़ लेते हैं। उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि यहां के परिसर का उपयोग केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए किया जा सकता है। उनकी बात कितनी सुनी गई, इस पर कोई संशय नहीं है। सुनता भी कौन जब हिमाचल को अब भी हिमाचल या प्रदेश के लिहाज से नहीं अपितु शिमला, कांगड़ा या मंडी या हमीरपुर के तौर पर देखा जाता है। केंद्रीय विश्वविद्यालय इसका जीवंत उदाहरण है।

इसी फसाद में केंद्रीय विश्वविद्यालय हवा में रहा है। इसके बाद कांगड़ा के सांसद शांता कुमार भी दूर की कौड़ी लाए जब उन्होंने कहा कि यह पुरानी गलती को सुधारने का सबसे अच्छा समय और तरीका है कि विधानसभा भवन को केंद्रीय विश्वविद्यालय के सुपुर्द किया जाए। लेकिन इस पर कोई बात सिरे नहीं चढ़ी। हर अच्छी बात बयान बन कर रह जाती है।

अब यह वक्त की सरकार को देखना चाहिए कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक राय बनाई जाए। कम से कम इसके उपयोग और सदुपयोग पर बात तो शुरू हो। शांता अगर इसे गलती बता रहे हैं तो गलती दुरुस्त करने में डर या देर क्यों? कांगड़ा के साथ भावनात्मक लगाव की अभिव्यक्ति विकास के रास्ते झलकनी चाहिए।

सरकारें शीतकालीन प्रवास के जरिये भी नब्ज छू सकती हैं, छूती आई हैं, छूनी ही चाहिए। अब तो जनमंच भी है। वहां भी सरकार और अधिकारी आते ही हैं। अब ई विधान अकादमी की चर्चा है। इससे फिर भी एक सार्थक कदम माना जा सकता है वरना जहां सन्नाटा चिंघाड़ता हो, जहां खामोशी शोर मचाती हो, जिस सरकार पर कर्ज लगातार बढ़ रहा हो, वहां सरकार को इस अभ्यास से बचना चाहिए अथवा नहीं, इस पर अवश्य चिंतन करना चाहिए। सरकार राष्ट्रीय राजमार्गों पर काम शुरू करवाए, सड़कों की हालत ठीक करवाए, स्वास्थ्य सुविधाएं उचित हों, यह सब शिमला से भी हो सकता है। या फिर इस भवन के उपयोग की अवधि बढ़ाई जाए। केवल चार या पांच दिनों के लिए कोई कर्जदार प्रदेश चार से पांच करोड़ रुपये इसी कसरत पर खर्च करे,  यह उचित तो नहीं ही है। आठ लाख बच्चों के लिए वर्दी का फैसला शिमला में भी हो सकता था, दोनों विभागों की खींचतान में फटी वर्दी को पैबंद लगाने का काम जरूरी तो नहीं कि धर्मशाला से ही हो। कुछ प्रतीक केवल प्रतीक होते हैं।

वे प्रतीक रहें लेकिन अपनी उपयोगिता के साथ। पहले से रफू की तलाश में भटकती जेब को और बेजार करने वाले प्रतीक किस काम के हैं, ये हुक्मरानों के साथ विपक्ष को भी सोचना चाहिए। हाथी पालना अच्छी बात है लेकिन उसके लिए संसाधन न जुटें तो वह बोझ बन जाता है। उम्मीद है, तीन सौ साठ दिन के हाथी के भविष्य का फैसला नीति नियंता और प्रदेश का भाग्य लिखने वाले अवश्य ही आपसी संवाद में कर लेंगे ताकि हाशिये रोशन हो सकें :

तुम्हें चमकना है तो लिखो हमको सफहों पर

हमारे होने से होते हैं हाशिये रोशन


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