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सतलुज नदी पर बनेगा हिमाचल का पहला फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट

Floating solar power plant हिमाचल की सतलुज नदी पर पहला फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट बनाया जाएगा इसके लिए एनटीपीसी ने प्रक्रिया शुरू कर दी है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 26 Sep 2019 09:02 AM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2019 09:02 AM (IST)
सतलुज नदी पर बनेगा हिमाचल का पहला फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट
सतलुज नदी पर बनेगा हिमाचल का पहला फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट

शिमला, यादवेन्द्र शर्मा। Floating solar power plantहिमाचल में पहला फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट सतलुज नदी पर बनाया जाएगा। इसे बिलासपुर में सतलुज नदी पर बने कोल डैम के जलाशय में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) लगाएगा। इसके लिए एनटीपीसी ने प्रक्रिया शुरू कर दी है।

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एनटीपीसी इससे पहले केरल के कायाकुलम में 100 मेगावाट का फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लगा चुका है। इसकी सफलता के बाद कौल डैम परियोजना के जलाशय में 100 एकड़ क्षेत्र में 15 मेगावाट क्षमता का फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट बनाया जा रहा है। इस पर करीब 65 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है। फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट से कोल डैम और सतलुज नदी पर कोई प्रभाव नहीं होगा। प्लांट इस तरह लगाया जाएगा जिससे डैम व नदी की खूबसूरती और बढ़ेगी। प्रदेश में इस तरह का प्रयोग पहली बार किया जा रहा है। 

एनटीपीसी ने पनविद्युत परियोजना के क्षेत्र में 800 मेगावाट की कौल डैम परियोजना से शुरूआत की थी।एनटीपीसी अपनी परियोजनाओं के परिसर और आवासीय छतों पर सोलर पैनल के जरिए एक हजार मेगावाट बिजली पैदा कर रही है।  

फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट को ग्रीन एनर्जी का लक्ष्य पूरा करने के लिए लगाया जा रहा है। इसके लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता नहीं होगी।

-आनंद कुमार गुप्ता, निदेशक (वाणिज्य) एनटीपीसी

सबसे बड़ा फ्लोटिंग प्लांट

देश के सबसे बड़ा फ्लोटिंग प्लांट केरल के वायनाड में है। वायनाड के बाणासुर सागर बांध पर बने इस प्लांट में 1938 सोलर पैनल लगे हैं। इसे बनाने में कुल 9.25 करोड़ रुपये की लागत आयी है। इस पूरे प्लांट में 18 फ्लोटिंग प्लेटफॉर्म है। प्लांट में बनने वाली बिजली अंडरग्राउंड वॉटर केबल्स के जरिए घरों तक पहुंचेगी। आपको बता दें कि तिरुवनंतपुरम की एड टेक सिस्टम कंपनी ने इस प्लांट को बनाया है। 

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फ्लोटिंग प्लांट के फायदे

फ्लोटिंग प्लांट की सबसे बड़ी खासियत यह है किबांध में पानी के घटते बढ़ते स्तर के बावजूद यह खुद अपनी जगह बनाकर बिजली का निर्माण करता रहेगा। यही नहीं, पानी के बीचों-बीच होने केकारण जमीन पर लगने वाले प्लांट की तुलना में इसके पैनल पर कम धूल जमेगी। इससे बिजली निर्माण में कोई रुकावट नहीं आएगी।

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