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निष्पक्ष जांच भी हमारा मौलिक अधिकार : हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने शिमला के दीपक प्रोजेक्ट के बहुचर्चित टेलीफोन एक्सचेंज घोटाले से जुड़े मामले में व्यवस्था दी है कि लोकतान्त्रिक देश में आरोपी का निष्पक्ष ट्रायल ही नहीं बल्कि निष्पक्ष जाँच का अधिकार भी मौलिक अधिकार है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने सीबीआई द्वारा जाँच के समय एकत्रित किये गए दस्तावेजो को चालान के साथ पेश न करने और उन्हें प्रार्थी को न दिए जाने के मामले की सुनवाई के पश्चात् उक्त निर्णय सुनवाया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Sep 2019 08:32 PM (IST)Updated: Mon, 02 Sep 2019 08:32 PM (IST)
निष्पक्ष जांच भी हमारा
मौलिक अधिकार : हाईकोर्ट
निष्पक्ष जांच भी हमारा मौलिक अधिकार : हाईकोर्ट

विधि संवाददाता, शिमला : लोकतांत्रिक देश में आरोपित का निष्पक्ष ट्रायल ही नहीं बल्कि निष्पक्ष जांच का अधिकार भी मौलिक अधिकार है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला के दीपक प्रोजेक्ट के बहुचर्चित टेलीफोन एक्सचेंज घोटाले से जुड़े मामले में यह व्यवस्था दी है।

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न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने सीबीआइ द्वारा जांच के समय एकत्रित किए गए दस्तावेजों को चालान के साथ पेश न करने और उन्हें प्रार्थी को न दिए जाने के मामले की सुनवाई के बाद उक्त निर्णय सुनाया। सीबीआइ ने जाच के समय प्रार्थी के खिलाफ कुछ दस्तावेज एकत्रित किए थे। लेकिन इन्हें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत अदालत के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट के साथ संलग्न नहीं किया। प्रार्थी ने सीबीआइ अदालत से गुहार लगाईं थी कि चार्ज के समय इन दस्तावेजों को अदालत के समक्ष पेश कर इनका अवलोकन किया जाए। मामले का निपटारा करते हुए न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि हम स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं। निष्पक्ष ट्रायल ही नहीं बल्कि निष्पक्ष जांच भी हमारा मौलिक अधिकार है। अंग्रेजों के जमाने में नहीं जी रहे हम

न्यायालय ने कहा कि हम अंग्रेजों के जमाने में नहीं जी रहे हैं जिसमें अभियोजन पक्ष अपनी सहूलियत के हिसाब से अदालत के समक्ष दस्तावेज पेश करे। जो दस्तावेज अभियोजन पक्ष के हित में हो, उसे तो अदालत में पेश किया जाए और जो जांच के समय दोषी के पक्ष में मिले हों, उन्हें अदालत से छिपाया जाए। अदालत ने सीबीआइ की इस कार्यप्रणाली पर कड़ी प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज की। हाईकोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी से आशा की जाती है कि वो निष्पक्ष जाच करे। जांच से संबंधित सभी दस्तावेज अदालत के समक्ष पेश करें। यदि जांच एजेंसी ऐसा नहीं करती तो उस स्थिति में अदालत जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली को सुधारने से संबंधित आदेश पारित कर सकती है। न्यायालय ने प्रार्थी कंपनी की याचिका को स्वीकार करते हुए उक्त निर्णय सुनाया है।


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