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नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल के खिलाफ एफआइआर दर्ज, जानिए पूरा मामला Shimla News

FIR against brekal company नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल के खिलाफ शनिवार को एफआइआर दर्ज की गई है।

By Edited By: Published: Sat, 03 Aug 2019 10:38 PM (IST)Updated: Sun, 04 Aug 2019 12:01 PM (IST)
नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल के खिलाफ एफआइआर दर्ज, जानिए पूरा मामला Shimla News
नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल के खिलाफ एफआइआर दर्ज, जानिए पूरा मामला Shimla News

शिमला, राज्य ब्यूरो। नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल के खिलाफ शनिवार को एफआइआर दर्ज की गई है। विजिलेंस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन यूनिट (एसआइयू) ने शिमला स्थित अपने थाना में यह एफआइआर दर्ज की। इससे अब ब्रेकल कंपनी प्रबंधन की मुश्किलें और बढ़ेंगी। आरोप है कि ब्रेकल ने फर्जी दस्तावेज देकर बड़ा पावर प्रोजेक्ट हासिल किया था। सरकार ने पिछले साल सितंबर में मामला दर्ज करने की अनुमति दी थी। इस मामले में पूर्व भाजपा सरकार के कार्यकाल में प्रारंभिक जाच हुई थी।

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ब्रेकल कंपनी और जंगी थोपन पावर प्रोजेक्ट का विवाद पुराना है। वर्ष 2006 में सरकार ने 960 मेगावाट क्षमता का जंगी थोपन पावर प्रोजेक्ट ब्रेकल को आवंटित किया था। बिड में रिलायंस कंपनी दूसरे स्थान पर रही थी। ब्रेकल ने 260 करोड़ रुपये अपफ्रंट मनी जमा नहीं करवाई। आरोप लगे कि ब्रेकल ने प्रोजेक्ट हासिल करने के लिए फर्जी दस्तावेज दिए। सत्ता परिवर्तन के बाद तत्कालीन धूमल सरकार ने इस मामले में विजिलेंस जाच के आदेश दिए। इस बीच रिलायंस ने हाईकोर्ट पहुंच कर यह प्रोजेक्ट अपने लिए मागा। लेकिन ब्रेकल ने कोर्ट से 260 करोड़ रुपये जमा करवाने के लिए समय मागा। इसके बाद यह राशि जमा नहीं हुई। इस मामले में कैबिनेट ने विशेष कमेटी बनाई।

कमेटी ने आवंटन रद करने से इंकार किया। पूर्व वीरभद्र सरकार ने प्रोजेक्ट रिलायंस को देना चाहा था। लेकिन ब्रेकल की तरह उसका टर्नओवर भी काफी कम था। बाद में अडानी ने 260 करोड़ रुपये व 20 करोड़ रुपये जुर्माना भी जमा करवाया। जयराम सरकार ने अडानी को 280 करोड़ रुपये वापस देने से इंकार कर इस प्रोजेक्ट को सतलुज जलविद्युत निगम को सौंप दिया था। यह प्रोजेक्ट अब 960 मेगावाट की जगह 780 मेगावाट का होगा।

विजिलेंस ने हाल ही में प्रश्नावली सरकार को भेजी थी। उसका उत्तर आते ही एफआइआर दर्ज की गई है। -अनुराग गर्ग, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, विजिलेंस

क्या है मामला

ब्रेकल कॉरपोरेशन कंपनी ने छह हजार करोड़ रुपये की परियोजना हासिल करने के लिए दी गई निविदा में कहा था कि कंपनी 12 फरवरी 2005 को बनी थी। जाच में सामने आया कि कंपनी 13 फरवरी 2006 को बनी थी। ब्रेकल ने दावा किया था कि मैसर्स एसएनसी-लावालिन की उनके साथ तीस फीसद की भागीदारी है। लेकिन कंपनी ने जाच में इस इस तरह की भागीदारी से इंकार कर दिया था। ब्रेकल ने निविदा दस्तावेजों में कहा था कि मैसर्स स्टेंडर्ड बैंक की उनके साथ 45 फीसद की हिस्सेदारी हैं। प्रारंभिक जाच में स्टेंडर्ड बैंक ने इस तरह की भागीदारी से इंकार कर ब्रेकल के दावे को झूठा करार दिया था। ब्रेकल ने इस प्रोजेक्ट का आवंटन हो जाने के बाद 21 मई 2008 को सरकार को दिए जवाब में माना था कि उसने 49 फीसद हिस्सेदारी मैसर्स अडानी पावर को हस्तातंरित करने की सहमति दी है। ऐसा करना आवंटन की शर्तो और प्री इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट के अपनियमों के खिलाफ था। इस प्रोजेक्ट के लिए अपफ्रंट मनी व जुर्माने के तौर पर 280 करोड़ रुपये अडानी पावर के खाते से जमा हुए थे। अब अडानी पावर इस पैसे को वापस मांग रहा है। निविदा शर्तों के मुताबिक यह पैसा जब्त हो चुका है। जांच में ब्रेकल कंपनी का अस्तित्व नीदरलैंड में होने का दावा भी संदेहास्पद था। सूत्रों के अनुसार आयकर विभाग की ओर से 23 मई 2008 को सरकार को मिली रिपोर्ट में यह कहा गया था कि यह कागजी कंपनी है।

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