डाकखर्च के 150 करोड़ बचाने पर फैसला आज
हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल की मंगलवार को होने वाली बैठक में एक अहम प्रस्ताव आएगा। इसके तहत शिक्षा विभाग सालाना 150 करोड रुपये बचाएगा।
प्रकाश भारद्वाज, शिमला
हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल की मंगलवार को होने वाली बैठक में एक अहम प्रस्ताव लाया जाएगा। मंत्रिमंडल की मंजूरी मिली तो शिक्षा विभाग में सालाना डाकखर्च (पोस्टेज) के 150 करोड़ रुपये बचेंगे। इसके साथ शिक्षक शिक्षा का स्तर बढ़ाने की ओर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
हिमाचल में शिक्षा विभाग में सालाना 150 करोड़ रुपये डाकखर्च होता है। एक सरकारी पत्र को भेजने पर चार रुपये खर्च होते हैं। लेकिन दो पत्रों को एक पत्र का कंप्लायस माना जाता है। प्रदेश में दो शिक्षा निदेशालय, 12 उपनिदेशक कार्यालय और 15824 सरकारी स्कूल हैं। इनमें से एक दिन में न्यूनतम दो चिट्ठियां निकलती हैं। आकलन किया गया है कि एक वर्ष में महज 200 कार्यदिवस लिए जाएं तो पत्र व्यवहार पर खर्च न्यूनतम 150 करोड़ रुपये होगा। इस प्रकार के खर्च को कैसे रोका जा सकता है, यदि सरकार यह निर्णय लेती है तो महज सात करोड़ रुपये खर्च करके प्रदेश सरकार मोटी रकम बचा सकती है। इस प्रकार का प्रस्ताव शिक्षा विभाग की राज्य परियोजना अवलोकन नवीन प्रयास इकाई की ओर से तैयार किया गया है। अभी शिक्षा विभाग की कार्यक्षमता 20 प्रतिशत आंकी जाती है। डाकखर्च बंद होने के बाद ऑनलाइन प्रणाली लागू होने से कार्यक्षमता 90 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। सफल रही पायलट परियोजना
एकीकृत परस्पर परियोजना अवलोकन प्रणाली के तहत पायलट परियोजना को मंडी जिला में सफलता मिलने के बाद शिक्षा विभाग उत्साहित है। योजना के तहत यूनिक आडेंटिफिकेशन कोड वर्चुअल आइडी बन जाएगी। नासा व देश के 50 सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों ने 85 लाख रुपये खर्च कर अपना क्लाउड स्पेस लिया। ऐसा करने से मंडी के स्कूली विद्यार्थियों का क्लाउड में डाटा रहेगा। इसके आधार से लिंक होने के कारण शिक्षा विभाग के पास हर बच्चे की संपूर्ण जानकारी रहेगी। पत्र व्यवहार पर करोड़ों का कागज खर्च
एक पत्र पर कार्रवाई होने तक 32 लाख रुपये खर्च होते हैं। शिक्षा सचिव से पत्र प्रतियों में होता हुआ संबंधित स्कूल तक पहुंचता है। पत्र व्यवहार करने पर 3.20 करोड़ रुपये का कागज खर्च होता है। ऑनलाइन सिस्टम से कागज का खर्च बचेगा। पत्र भेजने में जो ऊर्जा खर्च होती है, उससे छुटकारा मिलेगा। 2500 करोड़ रुपये देगा विश्व बैंक
वर्ष 1992 में ब्राजील में अर्थ समिट हुई थी। इसके प्रावधान के मुताबिक किसी भी देश का कोई भी सरकारी विभाग पूरी तरह से ऑनलाइन ऑपरेटिंग सिस्टम लागू करता है तो उसे विश्व बैंक से 2500 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे।