अनदेखी से बदहाल हुआ 300 साल पुराना मंदिर
भवन की हालत इतनी खस्ता, मंदिर में नहीं करता कोई प्रवेश, प्रदेश सरकार व भाषा संस्कृति विभाग से मंदिर कमेटी लगा चुकी है गुहार ।
मझेवटी, अतुल कश्यप। उपमंडल रामपुर के मझेवटी में स्थित देवता साहब गणेश का मंदिर कहीं अनदेखी के चलते इतिहास के पन्नों में सिमट कर न रह जाए। करीब तीन सौ साल पुराना मंदिर का जर्जर भवन बदहाली के आंसू बहा रहा है। मंदिर की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि मंदिर में अंदर जाने से भी लोग कतराने लगे हैं। जबकि मंदिर कमेटी प्रदेश सरकार और भाषा एवं संस्कृति विभाग से मंदिर के जीर्णोद्धार की गुहार लगा चुकी है।
मंदिर भवन की खस्ताहाल देखकर ग्रामीणों ने जीर्णोद्धार के लिए 15 लाख रुपये एकत्र की और मंदिर कमेटी के पास करीब दस लाख रुपये जमा किए हैं। लेकिन इतनी राशि होने के बावजूद मंदिर का काम शुरू नहीं हो रहा है, क्योंकि यह राशि भी ऊंट के मुंह के जीरे समान प्रतीत हो रही है और ग्रामीण भी मंदिर के नए भवन का काम शुरू नहीं करवा पा रहे हैं। इसके बाद मंदिर कमेटी ने प्रदेश सरकार व भाषा एवं संस्कृति विभाग से सहायता की गुहार लगाई थी। लेकिन वहां से भी कोई संतोषजनक जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है।
मंदिर कमेटी के महासचिव होशियार सिंह ने बताया कि मंदिर के तहत आठ पंचायतों के 21 गांव आते हैं। इनकी देवता साहब गणेश में अपार आस्था है। इसे देखते हुए लोगों ने मंदिर निर्माण के लिए दान दिया था। लेकिन यह कम पड़ रहा है। मंदिर भवन कई स्थानों से टूट चुका है और इसमें एक फीट चौड़ी दरार भी पड़ चुकी है। ऐसे में मंदिर के साथ लगते घरों को भी नुकसान होने का अंदेशा बना हुआ है। इस कारण मंदिर के अंदर किसी भी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान न करवाकर बाहर ही आयोजित किया जाता है। गणेश देवता का यह एकमात्र मंदिर है जहां वे रथ रूप में भी स्थापित हैं।
मंदिर निर्माण की अनुमानित लागत 75 लाख के आसपास आ रही है। धन मुहैया करवाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री ने भी आश्वासन दिया था। लेकिन आचार संहिता लगने के बाद काम आगे नहीं बढ़ पाया और वर्तमान मुख्यमंत्री से भी मंदिर कमेटी ने मदद की गुहार लगाई थी, जिस पर कमेटी ने भाषा एवं संस्कृति विभाग से आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाने की मांग की थी। जिस पर अभी तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला है। उन्होंने क्षेत्र की जनता आज भी प्रदेश मुख्यमंत्री से आर्थिक सहायता मिलने की उम्मीद लगाए बैठी है ताकि इस ऐतिहासिक धरोहर को पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रखा जा सके।