नौ सीटों पर पांच लाख हिमाचली तय करते हार-जीत
दिल्ली विधानसभा चुनाव में हिमाचली मतदाताओं को नजरअंदाज करना सभी पार्टियों को महंगा पड़ सकता है।
प्रकाश भारद्वाज, शिमला
दिल्ली विधानसभा चुनाव में हिमाचली मतदाताओं को नजरअंदाज करना किसी भी पार्टी को महंगा पड़ सकता है। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में नौ हलके ऐसे हैं जहां हिमाचल के लोगों का राजनीतिक तौर पर प्रभाव है। ऐसे क्षेत्रों में हिमाचली मतदाताओं की संख्या 20 हजार से अधिक है। कई विधानसभा क्षेत्रों में हिमाचली मतदाताओं की संख्या 40 हजार से अधिक बताई जाती है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में नौ सीटों पर पांच लाख से अधिक हिमाचली मतदाता हार-जीत तय करेंगे। राष्ट्रीय राजधानी में स्थायी तौर पर रहने वाले हिमाचलियों की संख्या साढे आठ लाख तक है। इनमें से मतदाताओं की संख्या पांच लाख से अधिक है। बड़ी संख्या में प्रदेश के लोग केंद्रीय मंत्रालयों में नौकरी करते हैं। इसके अलावा कुछ समय से हिमाचल के युवाओं ने स्वरोजगार में वर्चस्व स्थापित किया है। मंडी, कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना जिलों के लोग पीढि़यों से दिल्ली में रह रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने हिमाचली संस्थाओं से संपर्क स्थापित करके मतदाताओं को मतदान करने के लिए प्रेरित किया था।
यहां पर हैं 20 से 40 हजार मतदाता
केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में बुराड़ी, उत्तमनगर, नई दिल्ली, शालीमार बाग, रोहिणी, भजनपुरा, लक्ष्मीनगर, आयानगर और सरोजनी नगर विधानसभा सीटों पर हिमाचली मतदाताओं की संख्या 20 हजार से लेकर 40 हजार तक है। यहां किसी भी राजनीतिक दल के लिए पहाड़ी राज्य के मतदाताओं को नजरअंदाज कर जीतना संभव नहीं है। इन मतदाताओं की विशेषता यह है कि अधिकांश किसी एक राजनीतिक दल के पक्ष में समर्थन देते हैं। ---------------
दिल्ली में हिमाचली दूसरे राज्यों की तरह संगठित नहीं हैं। यही वजह है कि नगर निगम में हमारा कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। हां, विधानसभा चुनाव में किसी भी प्रत्याशी की जीत में हमारे लोगों का योगदान रहता है। वैसे तो दिल्ली के हर हलके में प्रदेश के लोग मिल जाएंगे। लेकिन नौ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर हिमाचली जनसंख्या राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करती है। कई क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां पर हमारे 40 हजार से अधिक मतदाता हैं।
एलआर शर्मा, (हिमाचल के स्थायी निवासी) अंतरराष्ट्रीय व्यवसायी, दिल्ली