विभाग का एक पत्र बना सैकड़ों की मुसीबत
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की ओर से अवैध तरीके से भवन निर्माण प
जागरण संवाददाता, शिमला : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की ओर से अवैध तरीके से भवन निर्माण पर रोक लगाए हुए अब एक साल होने वाला है, लेकिन प्रशासन के व्यवहार के कारण पुराने नक्शे के आधार डेविएशन कर चुके सैकड़ों भवन मालिकों के लिए मुसीबत बनी हुई है। एनजीटी ने ढाई मंजिल के भवनों को मंजूरी दी है। निदेशक कार्यालय टीसीपी ने सरकार को चार महीने पहले एक पत्र लिखा है, जिसमें डेविएशन के बारे आपत्तियों के बारे में पूछा गया। लेकिन आज तक इस पत्र का जवाब ही नहीं आया है। हैरानी तो इस बात की है कि इतना समय बीत जाने के बाद विभाग ने कोई आगामी कदम नहीं उठाया। वहीं, जानकारों के मुताबिक टीसीपी विभाग की ओर से जो पत्र सरकार को भेजा गया है, वह व्यवहारिक ही नहीं है।
16 नंवबर 2017 में एनजीटी ने फैसला सुनाया था। दिसंबर में सरकार ने एनजीटी के फैसले पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी। इसके बाद सारी आपत्तियों को दूर करते हुए सचिव कानून ने जनवरी 2018 में अधिसूचना जारी की, लेकिन इसके बाद निदेशक टीसीपी इस अधिसूचना से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए 10 फीसद के आसपास की डेविएशन के भवनों को मंजूरी नहीं दी जा रही है, जबकि एनजीटी के फैसले से पहले जिन लोगों ने भवन बना लिए थे, उन्हें किसी भी तरह फैसले से प्रभावित नहीं होना था। यह अधिसूचना में भी साफ कर दिया था, लेकिन फिर निदेशक कार्यालय ने पत्र लिख डाला। सवाल यह है जब सचिव कानून अधिसूचना जारी कर चुके हैं तो पत्र लिखने की नौबत क्यों पड़ी। पिछले चार माह से पत्र का जवाब क्यों नहीं मिल पाया। इस वजह से सैकड़ों भवन नियमित नहीं हो पा रहे हैं। उनके लिए विभाग कब कदम उठाएगा।
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डेविएशन पर यह है जुर्माना
एक सौ वर्ग मीटर निर्माण एरिया के लिए जुर्माना राशि 5000 प्रति वर्गमीटर है। वहीं, व्यावसायिक भवनों के लिए यह दर 10,000 रुपये प्रति वर्गमीटर एनजीटी ने तय की है। प्रदेश सरकार ने कोर्ट में विचाराधीन अधिनियम के तहत 600 रुपये आवासीय व 1200 रुपये व्यावसायिक भवन नियमित करने की दरें प्रस्तावित की थीं। जिन लोगों ने नक्शा पास करवाने के बाद भवन निर्माण के दौरान डेविएशन की थी व इच्छानुसार निर्माण करवाया था, दोनों को अवैध भवन नियमित करवाने के लिए 5000 रुपये का जुर्माना प्रति वर्ग फुट के हिसाब से चुकाना पड़ेगा।
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यह था मामला
असल में जब टीसीपी के पास एनजीटी के फैसले के बाद नक्शे आए तो डेविएशन वालों को मंजूर ही नहीं किया गया। इसी वजह से सैकड़ों भवन नियमित नहीं हो पाए। यह केवल टीसीपी एरिया में ही हैं, जबकि एमसी एरिया में ऐसा कुछ नहीं है। जो नक्शे फैसला आने से पूर्व पास हो चुके थे, उन्हें पुराने के मुताबिक डेविएशन की अनुमति दी जा रही है।
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कई बार रिटेंशन पॉलिसी
सरकार अवैध भवनों को नियमित करने के लिए अब तक छह बार रिटेंशन पॉलिसी ला चुकी है। सबसे पहले 1998 में रिटेंशन पॉलिसी लाई गई थी, जिसमें 40 प्रतिशत डेविएशन नियमित करने का प्रावधान था। 2001 में साडा एरिया घणाहट्टी, कुफरी, न्यू शिमला व शोघी के लिए रिटेंशन पॉलिसी लाई गई। 2003, 2007 व 2009 में फिर सरकार पॉलिसी लाई। मौजूदा सरकार ने वन टाइम सेटलमेंट पॉलिसी लाने का प्रयास किया, लेकिन यह न्यायालय में अटक गई। इस पर सरकार अध्यादेश लाई, जिसमें वन टाइम सेटलमेंट का रास्ता सुझाया। भवन नियमित करने के लिए लाया अधिनियम उच्च न्यायालय में विचाराधीन है।
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अभी दो दिन पहले ही बैठक हुई है। जल्द ही मामले को सुलझा लिया जाएगा। उसके बाद ही आगामी प्रक्रिया शुरू होगी। डेविएशन के नियमों का पालन तो सख्ती से किया जाएगा।
-राजेश्वर गोयल, निदेशक
टीसीपी।
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जो अधिसूचना सचिव लॉ ने जनवरी में जारी की है उसके मुताबिक ही विभाग को मंजूरी देनी चाहिए। सरकारी कार्यालयों में फाइलें कभी भी रुकने नहीं चाहिए। जब विभाग फाइलों पर कार्रवाई करेगा ही नहीं तो जनता तो कब तक इंतजार करेगी। एमसी में भी तो नक्शे पास हो रहे हैं। वहीं अगर विभाग ने पत्र लिखा है तो आज तक जवाब क्यों नहीं आया। यह सोचनीय विषय है
-राजेश वर्मा, आर्किटेक्ट।