अपनी सांस के लिए गुब्बारों में हवा भरता बचपन
14 नवंबर यानी चाचा नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सुमन भट्टाचार्य, शिमला
14 नवंबर यानी चाचा नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी मौके पर प्रदेशभर में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। स्कूलों और अन्य संस्थानों में बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम होंगे। उन्हें उपहार और मिठाई दी जाएगी। लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी हैं, जिनके लिए बाल दिवस के कोई मायने नहीं हैं। उन्हें इस दिन भी पेट भरने के लिए सोचना पड़ेगा। गुब्बारों में सांस भरनी होगी तभी गुजारा हो पाएगा।
अन्य राज्यों से शिमला आए कई बच्चे पेट भरने के लिए शहर में गुब्बारे बेचने पर मजबूर हैं। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि एक बालक अपने बराबर दूसरे बालक को गुब्बारे बेच रहा है। हाथ में गुब्बारे लिए इन बच्चों की उम्र सात से बारह वर्ष के मध्य है। इस उम्र में बच्चे दुनियादारी से बेफिक्र खेलकूद और पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं, लेकिन ये बच्चे इस उम्र में आटे-दाल से लेकर घर के किराये तक की चिंता में पिस रहे हैं।
गुब्बारे बेचते यह बच्चे दूसरे राज्यों से आकर परिवार सहित शिमला में बस गए हैं। कुछ तो ऐसे भी हैं जो काम की तलाश में अपने रिश्तेदारों के यहा आए हुए हैं। अन्य बच्चे छोटी उम्र में जहा स्कूल बैग लिए स्कूल जाते दिखते हैं, वहीं यह बच्चे ज्यादातर रिज मैदान, माल रोड और लेडीज पार्क में स्कूल बैग की जगह गुब्बारों व खेल के सामान का बैग कंधों पर लादे रहते हैं।
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मैले कपड़ों में छुपा बालपन
इन बच्चों के मैले कपड़ों में अभी भी कहीं एक मासूम बालपन जी रहा है। एक छोटा हाथ जब दूसरे छोटे हाथ में गुब्बारा थमाता है तब पलभर के लिए आइसक्रीम को ललचाई नजरों से देखता है।
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बाल दिवस भी अन्य दिनों की भाति ढल जाएगा
इन बच्चों के लिए बाल दिवस भी अन्य दिनों की भाति यूं ही गुब्बारा बेचते हुए निकल जाएगा। इन बच्चों को शायद ही बचपन बीत जाने से पहले बाल दिवस का तात्पर्य समझ आ सकेगा।