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शिक्षा विभाग के अधिकारियों व कर्मियों से सीबीआइ की पूछताछ

छात्रवृत्ति घोटाले को लेकर सीबीआइ ने शिक्षा विभाग पर शिकंजा कसना आरंभ कर दिया है। 34 तरह की छात्रवृत्तियों के संबंध में जल्द ही फाईलों के असल राज खुलेंगे। छात्रवृत्तियां फाईलों पर कैसे स्वीकृत होती थी इसके बारे में जांच चल रही है। सूत्रों के अनुसार महकमे की मिलीभगत के सुबूत सामने आ रहे हैं। इन सुबूतों के सिलसिले में सीबीआइ ने छात्रवृत्ति में कार्यरत रहे मुलाजिमों से शिमला शाखा में पूछताछ की है। ये वे अधिकारी और कर्मी हैं जिनकी तैनाती 2013 से 2017 के बीच रही है। इन पर भी जांच एजेंसी को घोटाले में संलिप्त होने का शक है। पूछताछ के आधार पर आरोपितों की पहचान की जाएगी।

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Jul 2019 06:24 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jul 2019 06:24 PM (IST)
शिक्षा विभाग के अधिकारियों व
कर्मियों से सीबीआइ की पूछताछ
शिक्षा विभाग के अधिकारियों व कर्मियों से सीबीआइ की पूछताछ

राज्य ब्यूरो, शिमला : छात्रवृत्ति घोटाले में सीबीआइ ने शिक्षा विभाग पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। अब 34 तरह की छात्रवृत्तियों के संबंध में फाइलों के असल राज जल्द खुलेंगे। छात्रवृत्तियां फाइलो में कैसे स्वीकृत होती थीं, इस संबंध में जांच हो रही है। सूत्रों के अनुसार विभाग की मिलीभगत के सुबूत सामने आ रहे हैं। इन सुबूतों के सिलसिले में सीबीआइ ने छात्रवृत्ति शाखा में कार्यरत रहे शिक्षा विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों से शिमला शाखा में पूछताछ की है।

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जिन अधिकारियों व कर्मियों से पूछताछ की गई है, उनकी तैनाती वर्ष 2013 से 2017 के बीच रही है। जांच एजेंसी को इन पर भी घोटाले में संलिप्त होने का शक है। पूछताछ के आधार पर आरोपितों की पहचान की जाएगी। अभी तक की जांच से पता चला है कि निजी शिक्षण संस्थानों के प्रबंधकों ने सरकारी तंत्र से जुड़े अधिकारियों व कर्मचारियों से सांठगांठ की। इस कारण इन संस्थानों के दस्तावेजों की ठीक ढंग से जांच पड़ताल नहीं हुई। शिक्षा विभाग के ही संयुक्त नियंत्रक रैंक के एक पूर्व अधिकारी की कार्यप्रणाली भी जांच के दायरे में हैं। आरोप है कि उन्होंने शिकायतों की परवाह नहीं की। विद्यार्थियों के अभिभावकों को दाल में काला होने का अंदेशा कई वर्ष पूर्व लग रहा था। लेकिन संबंधित अधिकारियों ने इसका संज्ञान नहीं लिया बल्कि शिकायतों की लीपापोती में लगे रहे। क्या है मामला

हिमाचल सरकार ने घोटाले की जांच शिक्षा विभाग की कमेटी से करवाई थी। जांच में पता चला कि छात्रवृत्ति की कुल रकम का करीब 80 फीसद बजट मात्र 11 फीसद निजी संस्थानों के विद्यार्थियों को दिया गया है। वर्ष 2013-14 से 2016-17 तक 924 निजी संस्थानों के विद्यार्थियों को 210.05 करोड़ रुपये और 18682 सरकारी संस्थानों के विद्यार्थियों को मात्र 56.35 करोड़ रुपये छात्रवृत्ति के दिए गए। आरोप है कि इन संस्थानों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर छात्रवृत्ति की मोटी रकम डकारी। जनजातीय क्षेत्रों के विद्यार्थियों को कई वर्षों तक छात्रवृत्ति नहीं मिल पाई। ऐसे ही एक छात्र की शिकायत पर इस फर्जीवाड़े से पर्दा उठा था। छात्रवृत्ति की जो राशि प्रदेश के विद्यार्थियों को मिलनी थी, उसे देशभर के अलग-अलग क्षेत्रों में गलत तरीके से बांटे जाने का आरोप है।


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