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शिमला शहर में बीपीएल का सर्वेक्षण फिर लटका

शिमला शहर में बीपीएल परिवारों का सर्वेक्षण फिर लटक गया है। र

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Aug 2021 04:56 PM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 04:56 PM (IST)
शिमला शहर में बीपीएल का सर्वेक्षण फिर लटका
शिमला शहर में बीपीएल का सर्वेक्षण फिर लटका

जागरण संवाददाता, शिमला : शिमला शहर में बीपीएल परिवारों का सर्वेक्षण फिर लटक गया है। राजधानी में 2007 के बाद बीपीएल परिवारों का सर्वेक्षण किया जा रहा है। चार से पांच महीने से इस सर्वेक्षण को करने के लिए जद्दोजहद की जा रही है। पहले पार्षदों ने सीधे तौर पर ही इसे करने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद प्रशासन ने इन्हें वार्ड सभा में फैसला लेने के लिए पत्र लिखा। इसमें कई पार्षदों ने वार्ड सभा में नाम फाइनल कर प्रशासन को भेजे।

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प्रशासन की ओर से इसमें शपथपत्र, आय प्रमाणपत्र, हिमाचली प्रमाणपत्र व आधार कार्ड संलग्न करना अनिवार्य था। वार्ड से लोगों का चयन कर प्रशासन को नाम भेजे तो पार्षदों को नया फार्म दे दिया है कि अब इसे भरवाकर दोबारा से काम करना होगा।

पार्षद प्रशासन के फैसले से खासा नाराज हैं। निगम की मासिक बैठक में पार्षदों ने साफ कह दिया है कि इस तरह से प्रमाणपत्र नहीं बनाए जाते हैं तो अब तो लोग उन पर विश्वास भी नहीं करेंगे। हालांकि पहले शहर में बीपीएल की सूची तैयार करने के लिए वार्ड सभा हर वार्ड में करना अब अनिवार्य किया था। इसके लिए वार्ड में पार्षद को वार्ड सभा के सामने ही तय करने थे। पार्षदों को पहले निगम ने खुद से सूची तैयार करने के लिए कहा था। इसमें काफी पार्षदों को आपत्ति थी कि कहीं अपात्र लोग इसमें शामिल न हो जाएं और पात्र लोगों को इसका लाभ न मिल सके। इसलिए अब फैसला लिया है कि सभी पार्षदों को एक पत्र भेजा जाएगा कि वे अपने वार्ड में वार्ड सभा कर बीपीएल की सूची में लोगों को शामिल करें तथा इनके नाम भी प्रशासन को सौंपें। इसके बाद शहर के लिए नई बीपीएल की सूची तैयार की जानी प्रस्तावित है। अब पार्षदों ने यह प्रक्रिया पूरी की है तो निगम की ओर नया फार्म थमा दिया है।

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शहर में 2007 के बाद अपडेट नहीं हुई है सूची

शहर में इससे पहले 2007 में बीपीएल परिवारों की सूची तैयार की गई थी। उस समय इसकी संख्या 3000 के करीब आंकी गई थी। इसके बाद हर बार किसी विवाद के चलते यह मामला अधर में रहा। इस बार इसे सिरे चढ़ाने के लिए निगम प्रशासन ने लंबी जद्दोजहद की है। पहले पार्षदों को पूरी तरह से खुला हाथ दे दिया था कि वे अपने स्तर पर किसे बाहर करना है, किसे शामिल करना है, ये फैसला लें। इस पर पार्षदों ने आपत्ति जाहिर की थी कि वे अपने स्तर पर ही सब कुछ करेंगे तो मामले को चुनौती दी जा सकती है। अब फिर से इस मामले में विवाद होता दिख रहा है।


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